इलाहाबाद कल आज और...इलाहाबादी ‘चौकड़ी’ ने बनाई बम्बइया ‘चाण्डाल चौकड़ी’

  • Hasnain
  • Monday | 16th October, 2017
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संक्षेप:

  • सिविल लाइन्स क्षेत्र का अधिकांश इलाका जौनपुर जिले के जमींदार स्वतंत्र कुमार सिंह के परिवार का था।
  • इलाहाबादी चौकड़ी ने जब कथानक को जन्म देने की ठानी, तो आपातकाल की घोषणा चल रही थी।
  • ठाकुर स्वतंत्र कुमार सिंह ने इलाहाबादी ‘चौकड़ी’ के बीच बम्बई में फिल्म ‘चाण्डाल चौकड़ी’ बनाने की घोषणा की।

--वीरेन्द्र मिश्र

‘चौकड़ी’। हर समय-स्थान-क्षेत्र-काल-कुम्बे में होते ही होते हैं। कार्यक्षेत्रों में भी इनकी पहचान सिर चढ़ कर बोलती है। कई बार वह ‘चौकड़ी’ ऐसा कमाल भी कर दिखाती है कि ‘अजूबा’ खुद-ब-खुद हो जाता है। उन्हें पता भी नहीं होता है। कभी-कभी तो बुद्धिमता से अकबर-बीरबल का कथानक जन्म लेता है, तो कभी ‘तेनालीराम’ का चरित्र खुलकर बोलने लगता है। यहीं नहीं कई-कई जगह ‘अहं’ से भरे-पूरे शेखचिल्ली बने व्यक्ति का जोर भी खुलकर मुखर होने लगता है, जो हर दम नई कहानी लिखने में कोई गुरेज नहीं करते।

आज हम बात कर रहे हैं, वैदिक सिटी इलाहाबाद के एक ऐसी ‘चौकड़ी’ की, जो ज्ञान-विज्ञान और सम्मान में किसी से कम नहीं थी, बल्कि सम्पन्नता और विरासत की पहचान से भी जुड़ी रही हैं। इलाहाबाद सिविल लाइन्स  क्षेत्र का अधिकांश इलाका (दक्षिण क्षेत्र का) जौनपुर जिले के जमींदार रहे कर्मठ किसान और सम्पन्नता की पहचान से भरे-पूरे स्वतंत्र कुमार सिंह (ठाकुर) के परिवार का रहा है। 

आपको बता दें, जब सिविल लाइन्स के ‘प्लाजा सिनेमा’ हाल का दूसरा चरण ‘किंग्स कम्पनी’ के बगल में आरम्भ हुआ, तो सिनेमा हाल की जिम्मेदारी ठाकुर स्वतंत्र सिंह के अनुज मुन्ना सिंह के कंधे पर आ गई।

ठाकुर स्वतंत्र सिंह कला, लेखन कलात्मक फिल्मों के शौक में भी शुमार करते थे। वक्त के साथ उन्होंने अपनी रिहायिश जुहू तारा रोड, बम्बई में भी बना लिया था, परन्तु जौनपुर - इलाहाबाद से नाता यथावत बना रहा। ठाकुर साहब के पिता श्री खादी के कुर्ता-धोती में पूरे खानदान के साथ इलाहाबाद में रहते रहें। स्वतंत्र सिंह की अपनी अलग पहचान बनी रही है।

ठाकुर स्वतंत्र सिंह के साथियों में दया सरन सिन्हा। ओ.पी. भार्गव। लल्लू संजीवन और विजय शर्मा के साथ कैलश गौतम जैसे हास्य कवि व्यंग्यकार लेखक प्रस्तोता भी रहे। सभी में गहरी मित्रता थी। अचानक उस चौकड़ी ने एक दिन फिल्म बनाने का निर्णय कर लिया। अब क्या था, काम चल पड़ा और ठाकुर एस.के . सिंह प्रोड्यूसर बन गये।

इस इलाहाबादी चौकड़ी ने जब कथानक को जन्म देने की ठानी, तो उस काल में आपातकाल की घोषणा चल रही थी। ‘इन्दिरा गांधी’ की सत्ता लोलुपता ने देश को आपातकाल की भयावह स्थितियों से जूझने के लिए, दंश झेलने को मजबूर कर दिया था। पूरा देश ‘चाण्डाल चौकड़ी’ की पीड़ा से कसमसा रहा था।

संजय गांधी की नीतियां। विद्या चरण शुक्ला, ओम मेहता अकबर डम्पी जैसो के साथ खुलकर अपना रंग जमाने में जुटी थीं। आम जनता ‘चाण्डाल चौकड़ी’ शब्द की ताकत को भी तब बखूबी समझ चुकी थी।

बस! ठाकुर स्वतंत्र कुमार सिंह ने इलाहाबादी ‘चौकड़ी’ के बीच बम्बई में फिल्म ‘चाण्डाल चौकड़ी’ बनाने की घोषणा कर दी। 

उस फिल्म में असरानी। जरीना वहाब। रीमा लागू। रहमान खान। जॉनी वॉकर जैसे कलाकारों के साथ जुहू तारा रोड स्थित बी.आर. चोपड़ा के स्टूडियो के ठीक बगल के ‘आशा’ कॉलोनी में प्रोडक्शन डिजाइन करा दिया। शूटिंग चल पड़ी ‘चाण्डाल चौकड़ी’ बम्बई में रंग जमाने लगी। वक्त ने करवट ली। इलाहाबाद में भी नई जागृति आ चुकी थी। उसी समय मराठी भाषा में भी फिल्म बन चुकी थी।

ओ.पी. भार्गव की ‘बेबी ऑस्टीन’ गाड़ी ’यू.पी.जे. - 454’, जो हैण्डिल लगाकर स्टार्ट होती थी और बीच सडक़ पर दौड़ती, तो कौतूहल भरी नजरें घूर-घूर कर देखती मुस्कुराती रहतीं। कभी उस गाड़ी का ब्रेक फेल हो जाता, तो कभी वह ज्यादा सवारी 4-5 होने पर बीच सडक़ पर ही रुक जाती, तो बिना पांचवे को उतारे न चलती, तो न चलती। मान मनौवल करने यानी थोड़ा सुस्ताने के बाद ही चलती। लेकिन उस सवारी की अलग मस्ती होती। कभी गंगा किनारे बांध पर दौड़ती, चाह कर भी ढलान की तरफ नहीं उतरने दिया जाता था। क्योंकि गई तो भी वापस उस चढ़ाई को ‘बेबी ऑस्टीन’ नही चढ़ पाती।

कभी आनन्द भवन के अहाते में पहुंच कर ठहरती, तो कभी चन्द्रशेखर आजाद पार्क की ढालान पार कर भरद्वाज आश्रम चौक पहुंच जाती। जब डिफेंस एरिया में ‘मैक फर्सन लेक’ के पास की सडक़ों पर तो धड़ल्ले से दौड़ती, तो बैठने वाले जरुर बदलते रहते थे, किन्तु चालक ओ.पी. भार्गव ही होते थे, क्योंकि ‘जेहिकर बंदरिया उहैसे नाचै’

उस दिन जब सर्किट हाउस के पास स्थित आकाशवाणी पहुंची, तो वहां से उस गाड़ी में व्यंग्यकार कैलाश गौतम भी सवार हो गये। ठहाकों के दौर के साथ धूप-छांव की मस्ती, मुंशी प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय के घर के बाहर रुक गई, सभी अमृत राय जी से मिले और वहां से सीधे सिटी कॉफी हाऊस के पेड़ों की झुरमुठ के नीचे जाकर ठहरी जहां मशहूर रंगकर्मी सुकेश सान्थाल की अपलक निगाहों ने करीब बुला लिया। बस वहीं फिल्म ‘चाण्डाल चौकड़ी’ बनाने का निर्णय ठाकुर स्वतंत्र कुमार सिंह ने उजागर कर लिया। कॉफी की चुस्की, साहित्यकारों की मस्ती और सृजनशील जनों की पौ बारह हो गई थी। पूरे शहर में खूब चर्चा हो रही थी।

बम्बई पहुंचकर ठाकुर साहब ने जब फिल्म निर्माण की घोषणा की, तो कलाकारों में असरानी। जरीना वहाब। रीमा लागू। रहमान खान सहित तमाम कलाकार आशा कॉलोनी, जुहू तारा रोड इकट्ठा होने लगे। मजे की बात ये भी रही उसी समय बी.आर. चोपड़ा स्टूडियो में रवि चोपड़ा ‘बर्निंग ट्रेन’ को भी अन्तिम रुप दे रहे थे। मल्लिका साराभाई भी तब सक्रिय रहीं, परन्तु वहां भी चर्चा ‘चाण्डाल चौकड़ी’ की ही होती रहती थी। कारण स्पष्ट था कि आपातकाल की घोषणा में ‘चाण्डाल चौकड़ी’ नाम सर्वाधिक चर्चित हो गया था। और स्वतंत्र कुमार की फिल्म का निर्माण आगे बढ़ चला, जो बाद में प्रदर्शित नहीं हो सकी। कारण क्या था, फिर कभी। आज यहीं तक।

(अगले अंक में एक और खास कहानी होगी। इन्तज़ार कीजिए...)

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