इलाहाबाद कल आज और...विकास के नये सोपान-नये युग के नये आयाम

  • Hasnain
  • Monday | 23rd October, 2017
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संक्षेप:

  •  पं. नेहरू प्रधानमंत्री के रूप में जब भी इलाहाबाद पहुंचते तो काला झण्डा दिखाते थे छुन्नन गुरु।
  • यहीं पर हुआ था दो भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन का जन्म।
  • लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था कच्छपुरवा रेलवे स्टेशन को इलाहाबाद जक्शन का नाम।

--वीरेन्द्र मिश्र

इलाहाबाद की राजनीतिक परिधि में देश के पहले प्रधानमंत्री बने पं. जवाहर लाल नेहरू और अहियापुर मुहल्लावासी कल्याण चंद मोहिले यानी छुन्नन गुरु के बीच वैचारिक भेद अद्भुत मोड़ पर टकराते रहे। सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस की तब टक्कर होती रहती थी। जब भी पं. नेहरू प्रधानमंत्री के रूप में इलाहाबाद पहुंचते, छुन्नन गुरु उन्हें काला झण्डा जरूर दिखाते। वहां की जनता भी उनका ही साथ देती थी, क्योंकि वह दमदार समाजसेवी थे और उन्हें किसी का भी डर नहीं सताता था। छुन्नन गुरु अहियापुर मुहल्ला खेमा माई मन्दिर के पास खुशहाल पर्वत पर रहते थे और पं. नेहरू की बचपन की रिहायिश मुहम्मद अली पार्क के करीब मीरगंज मुहल्ले में थी। बाद में वह आनन्द भवन पहुंच गये थे।

यह वही जगह है, जहां दो भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन का भी जन्म हुआ था। पूरा क्षेत्र दमदार सेवकों सेनानियों की जन्मस्थली रही है। पं. बाल कृष्ण भट्ट जी भी यहीं के थे।

लोकनाथ व्यायामशाला में कुश्ती लड़ने वालों में महामना मदन मोहन मालवीय जी के समय छुन्नन गुरु भी शामिल रहें। पुरुषोत्तम दास टण्डन जी भी वहां से जुड़े बताये जाते रहे। बाद में उस अखाड़े में भोला पहलवान ने पैठ जमाई, तो जीवन पर्यन्त वह जमे रहे।

छुन्नन गुरु की खास विशेषता थी टोला-मोहल्ला का कोई भी जाना-अन्जाना उनके घर रात-विरात कभी भी पहुंचता, वह मुंह में पान दबाते, अपना डण्डा लेते और चल पड़ते। फरियादी की मदद के लिए फिर तब तक नहीं लौटते जब तक कि वह उसे संतुष्ट न करा देते अथवा उसका कष्ट निवारण नहीं करवा देते। शायद यही चाहत रही है, तब उनके चाहने वालों की आज उनकी प्रतिमा चौक में घण्टाघर चौक पर लगी है, परन्तु दु:ख इस बात का रहेगा कि सत्य प्रकाश मालवीय और सुनीत व्यास जैसे सुधी सेवकों के जाने के बाद कोई भी उनकी सुध लेने वाला नहीं है। नहीं पीढ़ी में झब्बू खन्ना जैसे नेताओं और ज्योति पुरवार जैसे समाज सेवकों को इस ओर जागृति अभियान अवश्य छेड़ना चाहिए, ताकि हाईटेक युग की पीढ़ी अपने शहर के उन ‘लखौरी ईटों’ की दीवार से मजबूत नींव वाले पुरखों की ताकत और सेवा भावना का अहसास होता रहे।

हालांकि वर्तमान बंगाल के महामहिम राज्यपाल डॉ. केशरीनाथ त्रिपाठी भी इलाहाबाद वासियों के जीवन में उसी तरह से सक्रिय सेवक के रुप में प्राय: नई ऊर्जा भरते रहे है। उनके ही प्रयासों से यमुना किनारे मनकामेश्वर के पास सरस्वती घाट का जीर्गाेद्वार कराया जा सका था। यही त्रिवेणी पुष्प की परिकल्पना की नींव रखकर उसे साकार कर दिखाने का उनका प्रयास भी कई मानदण्डों पर नई पीढ़ी को जोड़कर सक्रियता की सड़क पर दौड़ाता है। कैसी अद्भुत बात मानी जायेगी कि उसी त्रिवेणी पुष्प में वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में गंगा-यमुना के जीवों का अमयारण्य बनाने की योजना अंजाम देने की तैयारी है ताकि डॉल्फिन, कच्छप (कछुआ) की नर्सरी से इन जीवों को समाप्त होने से बचाया जा सके।

वैसे इलाहाबाद शहर के श्रेष्ठ नेताओं में प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह इलाहाबाद के थे जरूर परन्तु उनका रुझान जीवन भर विदेशी परिधि में ही ज्यादा रहा। अथवा देश के अन्य भागों में ज्यादा रहा। यह जरूर कहा जा सकता है कि वह कूटनीतिज्ञ थे। परन्तु डॉ. लाल बहादुर शास्त्री जी के प्रति पूरे शहर का जनमानस गर्व करता रहा है। उनको अपना यहां के लोग सर्वप्रिय नेता मानते रहे हैं। यहां की आम जनता उनको भरपूर प्यार करती थी। पूरा देश याद करता है, बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इलाहाबाद का जो ‘कच्छपुरवा’ रेलवे स्टेशन था। उसको ‘इलाहाबाद जक्शन’ का नाम देकर सुख-सुविधाओं से जोड़ने वाले शास्त्री जी ही थे। यही शिक्षा के विविध आयामों को बढ़ाने में भी उनका योगदान कई दशक बीत जाने के बाद भी यादगार बना हुआ है।

इलाहाबाद को बनारस से जोड़ने का शानदार ब्रिज की परिकल्पना उन्हीं की देन रही। जो उनके शरीर शान्त होने के बाद आरम्भ हो सका। उसी ‘शास्त्री ब्रिज’ ने आज कई आयाम जोड़े हैं।

ऐसे ही इलाहाबाद के प्रतिष्ठित नेताओं में हेमवती नन्दना बहुगुणा का नाम भी यादगार पन्नों में शामिल है। अपने क्षेत्र की जनता को, उनके नाम से पुकारने जानने वाले रहे हैं - बहुगुणा जी।

यमुनापार क्षेत्र एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट से इमिलिया और पाण्डु प्रतापपुर तक जाने की कोई सड़क पांच दशक पहले तक तब नहीं थी। पूरा ‘तरहरा क्षेत्र’ त्राहि-त्राहि करता रहता था। घण्टे भर की यात्रा नदी-नाला पार करते-करते दिन में पूरी होती थी। बहुगुणा जी ने इस समस्या का समाधान ढूंढा था। वहां तक सड़क और पुल बनवा कर जनसेवा पूरी की थी। उन्होंने घूरपुर से पाण्डु-प्रतापुर तक सडक़ पहुंचा दी थी।

बहुगुणा ने महाभारत कालीन पाण्डु प्रताप पुरुवार गांव तक बनवाने का बीड़ा उठाया और अपने काल में ही पूरा करवाकर दिखाया। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव के पिता पाण्डु का वनवास यहीं इसी गांव में बीता वर्णित बताया जाता है। प्रतापपुर यमुना किनारे विहार अमयारण्य में शामिल रहा है। कई वर्षों तक कुन्ती के साथ पाण्डु यही रहे और दुर्वास ऋषि ने नियोग से पाण्डु पुत्रों का जनम करवाया था। तभी उनको पांच पाण्डव पुत्ररत्नों की प्राप्ति हो सकी थी।

यहां मन्दररिया पहाड़ी के नीचे, जहां से ‘पाण्डु-प्रतापपुर’ और इमिलिया देवी की ओर सड़क मुड़ती है। वहीं लालापुर भट्टपुरा है। यह क्षेत्र भी महर्षि वाल्मीकि की जन्मस्थली रहा हैं। यहीं मनकामेश्वर पहाड़ है, जिसको पंचपुरवा गांव के बाशिन्दों ने ही तोड़-फोड़कर वृक्ष विहीन बना दिया है। वह पहाड़ आज भी पर्यटन नहीं ‘तीर्थ स्थल’ के रुप में हैं। वहां उस पहाड़ की कोख में भगवान मनकामेश्वर का मन्दिर है, डॉ. मुरली मनोहर जोशी के साथ गांव के कुछ सजग प्रहरियों की मदद से जीर्णोद्धार कराया जा चुका है। जरुरी है, तो लालापुर गांव को प्राण प्रतिष्ठित कराने की। परन्तु चौंकाने वाला तथ्य है। गांव आज ‘हाईटेक’ है।

यहां कम्प्यूटर-टेलीफोन सभी सुविधायें उपलब्ध है। परन्तु व्यवस्थित नहीं है। क्योंकि आवागमन का साधन अभाव आज भी बरकरार है।

परन्तु लिहाज से ये क्षेत्र अनुकर्णीय होकर भी पिछड़ा ही रहा है। यही नहीं सिद्धपीठ इमिलियन देवी के मन्दिर तक के आवागमन की सड़क व्यवस्था बहुगुणा की ही देन रही। परन्तु परिवहन व्यवस्था का आज भी अभाव है। बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को प्रतापपुर से नहर निकलवाने का जो संकल्प आरम्भ करवाया उसे प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पूरा करवाया था।

यही नहीं इसी क्षेत्र से मेगास्टार अमिताभ बच्चन लोकसभा का चुनाव जीते और बहुगुणा को परास्त किया था, तो तमाम जद्दोजहद के बाद भी यमुना पर पुल नहीं बन सका था। अपने आप में आधुनिकतम पुल बनवाने का निर्णय अमिताभ बच्चन की झोली में ही जाता है। जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने इस यमुना पुल को पूरा करवाकर आम जनता के लिए सुलभ कराया है। परन्तु दु:खद पहलू यह भी जरूर माना जायेगा कि इसे क्षेत्र के विकास में नई पीढ़ी के लिए विद्यालयों की जो शृंखला डॉ. जोशी ने लोकार्पित करने का निर्णय किया था। वह शिलान्यास के बाद भी आज तक नहीं पूरा किये जा सके हैं।

बावूजद इसके अमिताभ बच्चन ने राजनीति से मुंह मोड़कर नई डगर पर कदम क्या बढ़ाये, तरक्की के न जाने कितने सोपान आज चढ़ चुके हैं। परन्तु अपने उस क्षेत्र की जनता के लिए जो ‘मोबाइल अस्पताल’ का सिलसिला उन्होंने यमुनापार क्षेत्र की जनता के लिए किया था। वह सब न जाने कब से बन्द हो चुकी है, उनकी सुधि लेने वाला भी कोई नहीं है।

यहां यह बात भी अनुकर्णीय मानी जायेगी कि यही ‘लोक’ में प्रचलित हास-परिहास पर आधारित - ईर-बीर-फत्ते एक ठौ रही ईर और इक ठौ रही बीर... वाला गाना भी इसी यमुनापार क्षेत्र की उपज रहा है।

कहने का आशय यह है कि ये वो शहर है, जिसकी तरक्की की आधार शिला में डॉ. लाल बहादुर शास्त्री का योगदान शामिल रहा, परन्तु वक्त के साथ ‘हाईटेक शहर’ के रुप में स्थापित होने की पहचान निश्चित ही डॉ. मुरली मनोरहर जोशी के नाम रखी जा सकती है।

डॉ. केशरी नाथ त्रिपाठी ने, जो त्रिवेणी पुष्प की परिकल्पना में ‘चार धाम की यात्रा’ का ताना-बाना बुना था, वह आज भी पूरा नहीं हो सका है, क्योंकि त्रिवेणी पुष्प जरुर है। परन्तु त्रिवेणी तट पर वह परिकल्पना साकार नहीं हो सकी है, जिसकी दरकार जानकारों आज भी है।

बहुगुणा जी की पुत्री रीता बहुगुणा जोशी प्रदेश की वरिष्ठ मंत्री ने विकास की नई कहानी की आधार रचना तैयार करवाई है। अब अमृत कलश अनुरूप संग्रहालय बनवाने का निर्णय किया है।

ताजा घटनाक्रमों में यहां के युवा प्रतिभा सम्पन्न नेता और प्रादेशिक मंत्री नन्द गोपाल नदी की पहल से त्रिवेणी पुष्प में विकास की नई कड़ी जोड़ने का प्रयास भी आरम्भ हो चुका है।

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की पहल पर आगामी अर्धकुम्भ की तैयारी को आधुनिकतम व्यवस्थाओं से संवारने के प्रयास आरम्भ करवा दिये गये है।

मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ सन्त परम्परा पीठ से हैं, तो उनके प्रयासों से आगामी अर्धकुम्भ तक इलाहाबाद का कायाकल्प अवश्यम्भावी है, जो आरम्भ हो चुका।

त्रिवेणी पुष्प के पास ‘कछुआ और डॉल्फिन’ की नर्सरी स्थापित किये जाने का प्रयास हो रहा है, ताकि गंगा-यमुना में इन जलधारी जीवों का जीवन नये पायदान पर चढ़ सके। ‘हाईटेक शहर’ में यमुना उस पार छिवकी स्टेशन स्थापित हो चुका है। जहां महामना रेलगाड़ी बनारस से आकर गुजरात जाने आने के पहले रुकती है।

कहने का आशय है, गुलाब के फूलों की बगिया के रूप में प्रतिष्ठित इस क्षेत्र का कायाकल्प अवश्यम्भावी है। यही नहीं ‘महर्षि स्मारक स्थली’ के सामने त्रिवेणी तट पर अरैल क्षेत्र में पक्का घाट भी बनाये जाने की तैयारी है। पूरा वैदिक शहर ‘हाईटेक होगा’ नये पायदान पर चढ़ेगा। निश्चित ही कुछ नया ही होगा। आज की यात्रा यहीं तक...

(अगले अंक में फिर भेंट होगी, नई कहानी के साथ इन्तज़ार कीजिए।)

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