इलाहाबाद कल आज और....व्यंजनों के स्वाद में बदलता बहादुरगंज

  • Hasnain
  • Monday | 17th July, 2017
  • local
संक्षेप:

  • बहादुरगंज इलाका पुरातन को बिसरा कर हो रहा हाइटेक।
  • यहां भट्ठी में चढ़ी दूध की कड़ाही होती जा रही है बड़ी।
  • दूध-मलाई बेचने वाले ‘नाटेलाल’ की नई पीढ़ी ने किया कमाल।

 

 

--वीरेन्द्र मिश्र

अरे! ससुरा इलाहाबाद तो बदल गया।

जो कल पसरा था, आज वहा चहल-पहल है। साहित्य कला और गायन वादन ने पलायन का रुख अख्तियार कर अपनी नई पहचान को सुदूर पहुंच कर बनाना शुरू कर दिया है। यहां बहादुरी का जो सहज परचम रहा वह अब ‘पाक विधा’ की निपुणता में भी होता जाना पड़ता है।

महानगरों का भागम भाग  भरी जिंदगी का ठाठ यहां भी पायदान-दर-पायदान चढ़ लेना पड़ता है, जो गली कूचे के घरों में आम होता था। वह अब सड़कों पर लगने वाले बाजार-हाट में स्वाद बढ़ाने लगा है।

वैदिक शहर इलाहाबाद का बहादुर गंज इलाका अब पुरातन को बिसरा कर उसी में नवीनता का बाना ओढ़ रहा है, ऐसे में जो परिदृश्य उभरते है। उनमें ‘चुगली’ करना, ‘जुगाली करना और `मुंह चिढ़ाना’ देखा जा सकता है।

प्यारे ये नई पीढ़ी है, समय की पाबंद बनने की खातिर जुगाड़ तंत्र को अंजाम देना, शगल बनता जा रहा है। चिन्ता की बात नहीं है।

फिर भी कैसा अद्भुत नजारा बहादुर गंज का होता है ‘राम भवन’ से ‘मनमोहन’ तक और ‘मानसरोवर’ से टण्डन तक चौराहों की शक्ल और पहचान बदल रही है।

ये पूरा इलाका खान-पान के स्वादिष्ट व्यंजनों की ऐसी ठेला-खोखोदारी में तब्दील हो रहा हैं कि यहां भट्ठी में चढ़ी दूध की कड़ाही बड़ी होती जा रही है और तौर-तरीकों के मायने भी यहां बदलते जा रहे हैं।

कल तक चोर गली में शंकरगढ़ की कोठी के करीब छोटी भट्ठी में दूध-मलाई बेचने वाले ‘नाटेलाल’ की नई पीढ़ी ने तो कमाल ही कर दिया है। ‘राम भवन` चौराहे पर `नाटे फ्रूटक्रीम’ का स्वाद सिर चढ़कर बोल रहा है कि लोग सुलाकी लाल की `बालूसाही` को भूल गये हैं।

नाटे लाल की राम भवन चौराहे पर फ्रूटक्रीम खाने की प्राय: लोग सलाह देते हैॆ। देर रात 11-12 बजे तक वहां परिवार के परिवार जनों की भीड़ अपनी बारी का इंतज़ार करती रहती है। नाटे लाल मालिक है, तो उनकी दुकान तीन कोनों। खासकर ‘ईशान कोण’ की ओर मुंह खोलकर ऐसे खुलती है कि नीचे ऊपर बैठने के बाद गाड़ी, बाइक और रिक्शा पर बैठे-बैठे लोगों का स्वाद बनता रहता है।

कमोवेश बहादुर गंज चौराहे का तो अब हुलिया ही बदलता जा रहा है। शाम ढले यहां दुनिया कैसी आबाद और मस्ती, चटखारे लेती स्वाद बनाती दिखती है। कहना मुश्किल है। मेला की भीड़ का शक्ल दिखता है।

ऊंचे भवनों में जो लक्ष्मण बाजार बना था। कैसेट गाना बजाना से भले ही कल तक वह सजा रहता रहा हो, किन्तु आज उसके किनारे-किनारे छोटे-छोटे ठेला, खोखा की उन दुकानों से हर शाम सज जाती है, जहां लोग भाग कर अब ‘सिविल लाइन्स’ इलाके सा स्वाद लेने और बनाने पहुंचते हैं।

यहां शुद्ध वेज का खानपान अब ऐसा सजता है कि लोग ‘नॉनवेज’ खाना भूलने लगे हैं। ‘सोया-चाप’ हो अथवा ‘सोया टिक्का’, ‘सत्तू परांठा’ हो अथवा ‘पनीर रोल’ सब कुछ बहतरीन स्वाद वाली ताजा-तरीन गरमारगम सुविधानुसार मिलती है।

दूसरे छोर पर दूध, दही मलाई-रबड़ी की मिठास का तो कहना ही क्या? बड़ी कड़ाही और कुल्हड़ में दूध पीने का इंतज़ार। रहा सवाल  `आमलेट-पाव’ का साथ गरमागरम चाय का, तो उसका दरकार खुलकर बोलती है और चाट-पकौड़ी की दुकानों का तो कुछ कहना ही नहीं है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रवासों के विद्यार्थी हों अथवा मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज के लड़के-लड़कियां अक्सर यहां की शाम को मनमोहक बना देते हैं और जाते-जाते नाटे की कुल्फी और फ्रूटक्रीम उनकी शाम की कहानी ही बदल देता है।

यहां बहादुरगंज का पूरा चौराहा इन दिनों प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बने और युवा जुझारू नेता में शुमार करते नन्द गोपाल नन्दी की पहचान से व्यवस्थायें भी अब कहीं अधिक बेहतर अंजाम पा रही हैं।

हम ये कह सकते है कि ‘मनमोहन’ की दुकानें अब भवनों की दुकानों को मुंह चिढ़ाती हैं और चटोरे इलाहाबादियों के जीवन के मकसद को भी साकार कर रही है, जो जुगाली करती जान पड़ती है।

आइये थोड़ा आगे बढ़ते हैं।

यहां जो ‘मानसरोवर सिनेमा’ था और चल रह है। कभी आजादी के तुरन्त बाद, जब ताराचन्द बड़जात्या की फिल्म ‘दोस्ती’ प्रदर्शित हुई थी, तो उसकी आपार सफलता का आलम जानने के लिए वह स्वयं यहां आये थे। फिर तो एक से बढ़कर एक फिल्मों का सिलसिला यहां चलता रहा था।

परन्तु आज तो दोयम दर्जे की फिल्मों के सहारे बस ये सिनेमा हॉल चल रहा है।

यहीं ‘यूनाइटेड ट्रान्सपोर्ट’ की देखरेख कभी राष्ट्रपति का सम्मान पाने वाले जगदीश गुलाटी ने आरम्भ की थी।

जगदीश भाई ‘अग्रवाल कॉलेज’ में विद्यार्थी थे और उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन से राष्ट्रपति भवन में सम्मान गौरव हासिल किया था। वक्त ने करवट बदली। नई पीढ़ी की दरकार जब बढ़ी, तो जगदीश गुलाटी ने ट्रान्सपोर्ट सेवा से जुदा ‘यूनाईटेड भारत’ अखबार निकाला, जिसके सम्पादक गोपाल रंजन नार्दने इण्डिया पत्रिका ग्रुप वाले को बनाया गया। फिर अखबार की दुनिया से आगे बढ़कर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी कदम बढ़ाया।

इलाहाबाद शहर में पहला प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज खोला वह भी त्रिवेणी संगम के आगे गंगा के किनारे ‘यूनाईटेड इंजीनियरिंग एण्ड रिसर्च कॉलेज’ स्थापित किया। जहां के विद्यार्थी आज ‘हाइटेक’ होकर देश के विविध भागों में पहुंच रहे है। जगदीश गुलाटी की नई पीढ़ी गौरव गुलाटी ने तो तो ज्ञान के कई मायनों को ‘हाइटेक’ बनाते हुए नई पहचान दे दी है।

परन्तु बहादुर गंज आजादी की लड़ाई के दिनों के बहादुर जनों की कभी जो बसी रही अथवा मुहल्ला रहा है, उसमें चाहे जेलर साहब हों अथवा ठाकुरदीन जमींदारी का रौब या फिर भार्गव प्रेस के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता, परन्तु ये पूरा बहादुरगंज आज अपनी अलग पहचान अंजाम दे चुका है।

देखिये कल क्या होता है।

(अगले अंक में आप पढ़ेंगे चौंकाने वाली अनकही-अनसुनी कहानी, इंतज़ार कीजिए...)

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