इलाहाबाद कल आज और...हरी नमकीन और लस्सी की मिठास

  • Hasnain
  • Monday | 21st August, 2017
  • local
संक्षेप:

  • यहां भोला पहलवान के परिवार जनों की दुकानें हैं। रबड़ी, मलाई, स्वादिष्ट दही आज भी मिलता है कि जीभ चाटती रह जाये।
  • खुशहाल पर्वत क्षेत्र में जगह-जगह कुएं भी खोदे गए थे। अब निशान गायब हो रहे है या फिर ढके-तापे पहचान को मोहताज है।
  • लाल डिग्गी के पास के बाशिंदों की वंशज है, उन्हें गर्व होगा कि उनके मुहल्ले में दो-दो महान हस्तियों को `भारत रत्न` मिल चुका है।

--वीरेन्द्र मिश्र

चौक का क्षेत्र अर्वाचीन हो रहा है। आधुनिकता के बावजूद भी `लाल डिग्गी` क्षेत्र में लोकनाथ मंदिर के करीब खेमामाई मंदिर तक खाने-पीने की नायाब चीजों की लोकप्रियता दूर-दूर तक होती गई है। जो भी चौक पहुंचे लोकनाथ की लस्सी न पिये मलाईदार, कैसे हो सकता है? फ्रूट क्रिम न खाये ये हो सकता है?

यहां भोला पहलवान के परिवार जनों की दुकानें हैं। रबड़ी, मलाई, स्वादिष्ट दही आज भी मिलता है कि जीभ चाटती रह जाये।

आचार, पापड़, इमरती, और ताजा सब्जी-तरकारी मुख्य चौक से नीचे ढलान तक दोना, पत्तल, मिट्टी के बर्तन और लोकनाथ के आगे भी गंगादास चौक तक मन-माफिक घी तेल सहित हर चीज मिल सकती है। यहां हर गल्ली की अपनी कहानी है।

चौक इलाहाबाद में `हरी नमकीन` भण्डार के समोसा, दालमोट नमकीन, खस्ता,पापड़ी का तो कोई जबाव ही नहीं। अब तो वहां `हरी के मसालों` खासकर `दमालू मसाला` तो देश-विदेश में भी जाता है। यही आलम यहां की इमरती और दूसरी नमकीन का भी है।

परंतु भारती भवन के ढलान पर महामना जी का बनाया पुरातन भारती पुस्तकालय, जिन्होंने कभी देखा, पढ़ा है। आज अपनी मौजूदगी पर हजार आंसू बहाता जान पड़ता है, जबकि कभी अपने आप में पढ़ने वालों से यह पुस्कालय गुलजार रहता रहा है।

सुनित व्यास जैसे सेवक की मौजूदगी तक यह संचालित होता रहा। लोकनाथ की गल्लियों में ही सत्य प्रकाश मालवीय जैसे नेता भी स्थापित हुए। यहीं `संस्कृत धर्म ज्ञानोपदेश पाढशाला` है, तो लड़कियों की पढ़ाई का `गौरी पाढ़शाला` भी है। जहां की प्रवक्ता सुधा कपूर आज ब्रह्माकुमारी की श्रेष्ठ सेविका है।

खुशहाल पर्वत क्षेत्र में पं. बालकृष्ण जैसे महान साहित्यकार का जन्म भी हुआ था। उन्होंने `प्रदीप` पत्र निकाला था। 576 नम्बर घर उन्हीं का था। अब उनके वंशज है।

खुशहाल पर्वत क्षेत्र में जगह-जगह कुएं भी खोदे गए थे। अब निशान गायब हो रहे है या फिर ढके-तापे पहचान को मोहताज है।

रंजन की बात करें। हास्य कवि कैलाश गौतम ने कभी अपने व्यंग्य में व्यक्त किया था कि अपनी पत्नी को लेकर वह खुशहाल पर्वत घुमने गए थे, तो पत्नि बेचारी! चौंके बिना नहीं रही, क्योंकि सिर्फ और सिर्फ गली-कूंचे में ही वे टहलते रहे। वहां तब वास्तव में पर्वत का कहीं नाम-ओ-निशान नहीं था। सोचिये तब कैसा अद्भूुत दृश्य रहा होगा?

राजर्षि टण्डन की जन्म स्थली वाली जगह पर भी कुआं था। उन्हीं के सहयोग से बना गौरी पाठशाला। आज डिग्री कॉलेज में परिवर्तित हो चुका है। छोटी गल्लियों के भीतर। और तो और आयुर्वेद जगत के महान वैद्य तिवारी की वैद्यशाला भी उचंवा पर स्थापित है। जहां भी कुआं है। किंतु नाम भर का है।

वहीं पास में लोकनाथ की गल्ली खुशहाल पर्वत पर कल्याण चन्द मोहिले उर्फ छुन्नन गुरु का भी निवास था। जो प्राय: नेहरु जी की विरोध करते रहे। उन्हें काला झण्डा दिखाते थे। अब उनके वंशज है। सारस्वत खुशहाल पर्वत में परिवार भी राजनीति की दहलीज पर स्थापित था। उनके अनुज कुन्नन गुरु तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार भी बने थे।

यहां चौक क्षेत्र में पंजाब और हिमाचल प्रदेश से कपूर परिवार भी आकर बसा, उन्हीं में गोपाल दास कपूर ने `डांडी` में अपना भट्टा खोला, खूब चला था।

दीनानाथ कपूर साइकिल व्यापारी का परिवार आज भी यहीं है। वहीं सावंलदास खन्ना का परिवार भी बसा,जिनमें खन्ना भण्डार के झब्बू-बसंत सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। गोपाल दास कपूर की सन्ततियों में आज सौरज हाईटेक डॉक्टर बनकर इपनी विद्या से मिर्जापुर क्षेत्र में प्रचार-प्रसार और सेवा कर रहे हैं।

खुशहाल पर्वता का एक कोना गंगादास चौक में मिलता है। जहां डॉ. रतन कपूर यही खेमामाई मंदिर के पास गंगादास चौक में रहते रहे। जिन्होंने `होमियोपैथी` चिकित्सा के क्षेत्र में विश्व में स्थान बनाया। वह `अखिल भारतीय होमियोपैथी डॉक्टर्स संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे थे`। होमियोपैथी चिकित्सा बढ़ाने में उनका योगदान कभी न  भुलाने वाला रहा है।

हाईटेक डॉक्टर की श्रेणी में यही हरी नमकीन के ठीक बगल में डॉ. बी बी अग्रवाल भी हुए है। जिन्होंने बच्चों की चिकित्सा में वत्सल नर्सिंग होम से अपनी पहचान बनाई है। डॉ. आर के कपूर पुराने रेडियोलॉजिस्ट हुए, जो कभी इकलौते `किंग कंपनी` लैब चलाते थे। वह गौरी पाठशाला के ठीक बगल में ही रहते रहे। डॉ. रतन कपूर और डॉ. आर के कपूर। यहां के निवासी गोपालदास कपूर भट्टावाले के कुटुम्बी रहे है।

खुशहाल पर्वत का कोना-कोना अनेकानेक विभूतियों विद्वानों की पहचान से जुड़ा रहा है। यहीं काशी से ज्वैलर्स पहुंचे तो राजस्थान से नग और स्वर्ण व्यापारी पहुंचे। जिन्होंने जेड़ियन टोला, जीरो रोड के पास बसा दिया। वहां राजस्थान से पहुंचे नगों के व्यापारी जमते गये। आज भी उनकी नक्कासी की तूती बोलती है।

राजर्षि टण्डन की जन्म स्थली के बगल में ऑल इंडिया रेडियो के श्रेष्ठ उद्घोष हरि मालवीय भी रहते थे और यही उपन्यासकार पत्रकार प्रदीप सौरभ का बचपन बीता है। पूरा क्षेत्र ब्राहम्ण,वैश्य,केसरवानी, अग्रवाल, खत्री,कायस्थ,जैसे परिवार के हुनरमंद और ज्ञानी-विज्ञानी जनों का कुनबा तब वहां बसता गया था।

`पत्थरचट्टी रामलीला` की चौकियां आज भी जब यहां से गुजरती हैं तो कहना ही क्या। और भारत मिलाप पर तो हिन्दू-मुसलमान की एकता का यहां पर्याय भी बन जाता है। क्योंकि शहर कोतवाली-मस्जिद और गिरजाघर के ठीक सामने सदियों से परंपरा में होता ढल चुका है। सभी मिल-जुलकर खुशियां मनाते हैं।

बहुत कम लोगों का पता होगा कि मध्य प्रदेश से चौरसिया कुनबा भी यहां कभी आकर बसा था। उन्हीं में से हरि प्रसाद चौरसिया जैसी विश्व प्रसिद्ध बांसुरी वादक नकिले और स्थापित हैं।

आज कलात्मक वैभव से पं. हरि प्रसाद चौरसिया कहकर उन्हें संबोधन किया जाता है। देश के श्रेष्ठ बांसुरी वादक के रुप में वह स्थापित है। लता मंगेश्कर के कितने ही गानों में वह बांसुरी बजा चुके है। यश चोपड़ा की फिल्म `सिलसिला` में शिव शर्मा के सन्तूर  के साथा उनकी बांसुरी ने जो मन्जिल तय की उसका कोई सानी नहीं है।

गौरी पाढशाला के करीब ही प्रेम कपूर जैसी महान शख्शियत भी जन्मी और अंतिम समय तक रहीं, जो फिल्म जगत में पहुंच बनाने में कामयाब हुई। उन्होंने `बदनाम बस्ती` और `काला गुलाब` यादगार फिल्में बनाई थी। उन्होंने श्याम बेनेगल के साथ मिलकर वर्तमान आनन्द भवन में नेहरु फिल्म का निर्माण भी किया था। उसके बाद ही श्याम बेनेगल ने `डिस्कवरी ऑफ इंडिया` बनाई थी।

यहीं चौक-चौराहे के स्वर्ण व्यापारी कवि नारायण प्रसाद अग्रवाल हैं, जिन्होंने अपनी पहचान के कई मिल के पत्थर गाड़े हैं। उनकी कविताओं।गीतों।भजन को पं. भीमसेन जोशी से लेकर भारत रत्न कोकिल कंठा लता मंगेश्कर तक स्वर देने में गर्व का अनुभव करती रही है। आज भी नारायण प्रसाद फिल्मों में गीतकार के रुप में सक्रिय हैं।

उनके परिवार जनों की आभूषण की दुकान ठीक चौक-चौराहे पर यथावत है। चौक भारती-भवन की तरफ बढ़ने पर ज्योति पुरवार की पुरानी दुकान है। और आगरावासी मातादीन की पुरानी दुकान `गजक-रेबड़ी` का स्वाद आज भी बढ़ाती आ रही है। अब यहां निराला चाट वाले ने निराला मिठाई की दुकान को लोकप्रिय बना दिया है।

प्रतिद्वंदी प्रतियोगिता का युग है, प्यारे! कुछ बनना है, तो कुछ करना होगा। कहने का आश्य ये है कि यहां क्या नहीं है।

प्राचीनतम लाल डिग्गी क्षेत्र और आधुनिकतम चौक क्षेत्र एक ऐसा स्थान बना हुआ है, जहां हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई चारों धर्मों के बाशिंदों की पहचान जुड़ी हुई है। यहीं लोकनाथ शिव मंदिर, जमा मस्जिद-बड़ी मस्जिद, पक्की संगत गुरुद्वारा और ऐतिहासिक शहीदी नीम वृक्ष के टीक नीचे लाल गिरजाघर बना हुआ है। राजर्षि टण्डन और महामना जी के जीवन पर फिल्म निर्माण के दौरान मैंने स्वयं वहां की सबसे ऊंची अट्टालिमा से चौक को दूरदर्शन के लिए फिल्माया था, तो अद्भुत दृश्य था।

आज तो सिर्फ यादें है। यहां के बशिंदों की अपनी पहचान है। जो भी जहां भी है उन्हें अपने मुहल्ले पर गर्व होने का अहम भी है।

नई पीढ़ी बेजान होकर सब कुछ `मोबाईल-गूगल` बाबा में खोजती है, जबकि स्वंय के खोजने की जरुरत है कि जो भी लाल डिग्गी के पास के बाशिंदों की वंशज है, उन्हें गर्व होगा कि उनके मुहल्ले में दो-दो महान हस्तियों को `भारत रत्न` मिल चुका है। पं. मदन मोहन मालवीय जी के नाम पर तो इस मुहल्ले को आज `मालवीय नगर` के नाम से भी जाना जाता है।

और भी न जाने कितनी अनकही-अनसुनी कहानियां है। शेष फिर...

(अलगे अंक में आप पढ़ेंगे विशेष अनकही-अनसुनी कहानी। इंतजार कीजिए....)

 

 

 

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