- दुनिया के पांच सबसे बड़ी मस्जिद का दर्जा
- ये भूलभुलैया के नाम से भी जाना जाता है
- बिना किसी सहारे खड़ी विश्व की सबसे बड़ी संरचना
By: अश्विनी भटनागर
लखनऊः काम के बदले अनाज योजना का शायद यह सबसे बड़ा उदहारण है जो रहस्य और रोमांच का अदभुत केंद्र भी बन गया है। यहां दीवारों के कान है और चारों दिशाये खुली होने के बाद भी इसमें जाने वाला दिशाहीन हो जाता है। यह मजहब से जुड़ा है और इंसानी बेहतरी के लिये इसे बनवाया गया था। वास्तव में लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा नवाबी ज़माने की वो मिसाल है जिसमें नेक नियति का संगम वास्तु कला की भव्य परिकल्पना के साथ बड़ी सहजता से होता है।
बड़े इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1784 में कराया था और इसके आर्किटेक्ट किफ़ायत उल्लाह थे जिनका ताजमहल के वास्तुकार परंपरा से संबंध थे। इमामबाड़े का निर्माण का कारण अवध में आये सूखे के हालात थे। लोग त्राहि त्राहि कर रहे थे। कहते है कि हालात इतने ख़राब हो गये थे कि अमीर परिवार भी रोटी के लिये मोहताज़ हो गये थे।
अवध के चौथे नवाब आसफ़ुद्दौला ने खैरात बाटने की बजाय इमामबाड़े का निर्माण शुरू कराया था। काम लगातार चलता रहे और लोगों को राहत पहुंचती रहे के लिये नवाब साहब दिन में निर्माण करवाते थे और रात में उसे ढाह देते थे। दिन में आम लोग काम करते थे और रात के अंधेरे में संभ्रांत परिवारों के लोग राहत कार्य का हिस्सा बनते थे। नवाब की राहत योजना इतनी प्रभावी थी कि जिसको न दे मौला उसको दे आसफ़ुद्दौला आज भी कहा जाता है। रोचक बात यह है कि जब नवाब साहब ने यह जुमला सुना तो उन्होंने विनम्रता से कहा था “जिसको न दे मौला, उसको क्या दे आसफ़ुद्दौला।“
बड़ा इमामबाड़ा विशाल और भव्य संरचना है जिसे असाफाई इमामबाड़ा भी कहा जाता हैं। इस संरचना में गोथिक-यूरोपियन प्रभाव के साथ राजपूत और मुग़ल स्टाइल का मिश्रण दिखाई देता है। वास्तव में वास्तु कला के हिसाब से बड़ा इमामबाड़ा एक दिलचस्प इमारत है जो की न तो मस्जिद है और न ही मक़बरा, फिर भी दोनों है। आसफ़ुद्दौला यही दफ़न है। इमामबाड़े की मजलिसे भी बेहद मशहूर है। इसके कक्षों का निर्माण और वॉल्ट के उपयोग में सशक्त इस्लामी प्रभाव दिखाई देता है।
बड़ा इमामबाड़ा एक विहंगम आंगन के बाद बना हुआ एक विशाल हॉल है, जहां दो विशाल आर्च वाले रास्तों से पहुंचा जा सकता है। इमामबाड़े का केन्द्रीय कक्ष लगभग पचास मीटर लंबा और सोलह मीटर चौड़ा है। इस स्तंभहीन कक्ष की छत पंद्रह मीटर ऊंची है। यह हॉल लकड़ी, लोहे या पत्थर के बीम के बिना खड़ी विश्व की सबसे बड़ी रचना है। छत को किसी बीम या गर्डर के उपयोग के बिना ईंटों को आपस में जोड़ कर खड़ा किया गया है जो की एक अद्भुत उपलब्धि है। ईंटों को धान की भूसी से जोड़ा गया है।
अपने सलाहकार के परामर्श से आसफ़ुद्दौला ने सुनियोजित तरीके से बड़े इमामबाड़े का निर्माण कराया था। सबसे पहले शाही बाग और पंच महल का निर्माण करवाया गया था। इनका निर्माण इसलिए जरूरी था क्योंकि बाकी निर्माण के लिए पानी की भरपूर व्यवस्था हो सके। बावड़ी सीधे गोमती नदी से जुड़ी है और स्वयं में अद्भुत संरचना है।
अनुमान है कि इमामबाड़े को बनाने में पांच लाख रुपए की लागत आई थी। इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब हर साल इसकी साज सज्जा पर 5 से 6 लाख रुपए खर्च करते थे। इमामबाड़े में एक खूबसूरत मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में ऊंची मीनारें हैं जो इसकी भव्यता में चार चांद लगाती हैं।
इसके बनने के बाद में इमामबाड़े के मुख्य भवन के निर्माण का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ था। इमामबाड़े का सेंट्रल हॉल दुनिया में सबसे बड़ा गुंबदकार छत वाला हॉल है। नवाब साहब इसका इस्तेमाल अपने दरबार की तरह से करते थे जहां जनता की समस्याएं सुनी जाती थी। अब इसका इस्तेमाल शिया मुसलमान नवाज़ अजादारी के लिए करते हैं।
इमामबाड़ा की वास्तुकला पाकिस्तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती जुलती है और इसे दुनिया के पांच सबसे बड़ी मस्जिद का दर्जा मिला हुआ है।
इमामबाड़े में तीन विशाल कक्ष हैं जिनकी दीवारों के बीच छुपे हुए लम्बे गलियारे हैं। इस घनी, गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती है। इसमें एक हज़ार से अधिक छोटे-छोटे रास्तों और 869 दरवाजों का जाल है जिनमें से कुछ के सिरे बंद हैं और कुछ प्रपाती बूंदों में समाप्त होते हैं। कुछ अन्य प्रवेश या बाहर निकलने के बिन्दुओं पर समाप्त होते हैं।
इस की दीवारों की भी कुछ अलग संरचना है। कई दीवार इस तरह से खोखली बनाई गई है कि एक कोने पर खड़े व्यक्ति यदि कोई बात करता है तो दूसरे छोर पर खड़े व्यक्ति को स्पष्ट सुनाई देता है। एक तरह से यहां की दीवारों के कान हैं।