सिटी स्टार: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आकर ध्रुव हर्ष को मिली नई राह

  • Hasnain
  • Saturday | 27th January, 2018
  • local
संक्षेप:

  • NYOOOZ ने की ध्रुव हर्ष से खास बातचीत
  • इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से ध्रुव हर्ष ने की ग्रेजुएशन
  • एमए करते हुए हर्ष ने लिखा अपना पहला नाटक

 

इलाहाबाद: 27 साल के ध्रुव हर्ष उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से ताल्लुक रखते हैं। केंद्रीय विद्यालय से अपनी पढ़ाई करने के बाद इन्होंने इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से इंग्लिश और अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया। फिर इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इंग्लिश में स्नातकोत्तर की उपाधि ली। इसके बाद ध्रुव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही The Mahabharata in the Contemporary Indian English Novel टॉपिक पर पीएचडी की।

NYOOOZ से खास बातचीत में ध्रुव हर्ष ने अपने इस सफर की बातों को साझा किया...

सवाल: आप इलाहाबाद से कैसे जुड़े हुए हैं?

ध्रुव हर्ष: इलाहाबाद से मेरा गहरा रिश्ता है। जिस तरह से बच्चा अपनी मां से जुड़ा होता है, उसी प्रकार का नाता मेरा इलाहाबाद से है। इलाहाबाद ने मुझे बनाने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मैंने इलाहाबाद में लगभग 10 साल तक अपना वक्त गुजारा, जिसमें से इविंग क्रिश्चियन कॉलेज में ग्रेजुएशन करने के समय में तीन साल तक लॉज में रहा, मुझे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉलैंड हॉल होस्टल में रहने का मौका मिला। हॉस्टल में रहते हुए काफी अच्छा समय बिता।

सवाल: क्या आपका हमेशा से फिल्म मेकिंग की तरफ ही झुकाव था? अगर नहीं तो आपके क्या प्लान्स थे?

ध्रुव हर्ष: मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं पता था क्योंकि स्कूल में मैं औसत छात्र था, उस दौरान तो मैं ख्वाब में भी फिल्म मेकिंग के बारे में नहीं सोच सकता था। उस वक़्त मेरे दिमाग में कुछ और थे लेकिन ग्रेजुएशन में आने के बाद चीज़े बदली और जब तक मेरा ग्रेजुएशन खत्म हुआ मुझे चल चुका था कि मुझे बहुत सारा साहित्य पढ़ना है ताकि मैं एक अच्छा कहानी वक्ता बन सकूं। उसके बाद से मैंने पीछे नहीं देखा।

सवाल: आज आप जिस मुकाम पर है, उस मुकाम को पाने में इलाहाबाद का क्या योगदान है?

ध्रुव हर्ष: अंतर्मुखी होने के कारण मैं ज्यादा किसी से बात नहीं करता था और अपनी काबिलियत को अपने तक ही सीमित रखता था। अवध के एक छोटे गांव से होने के कारण मुझे स्कूल और कॉलेज में कभी भी अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिला लेकिन विश्वविद्यालय में आने के बाद मैंने अपनी शैक्षिक उत्कृष्टता से सबका ध्यान अपनी ओर केंद्रित किया। साहित्य में रुचि होने के कारण मैंने एक भी दिन अपनी कक्षा बंक नहीं की। मैंने Shakespeare, Marlowe to Bernard Shaw, Chaucer to Eliot, Keats to Tennyson, W.H. Auden to modern Dylan Thomas, Lawrence to Rushdie को पढ़ा और सभी लेखक मुझे आज भी याद है। कॉलेज में रहते हुए मैं कविताएं लिखता था लेकिन किसी को दिखाता नहीं था। परंतु विश्वविद्यालय में दाखिले के बाद मुझे एक अलग अनावरण का एहसास हुआ। एमए में रहते हुए मैंने अपना पहला नाटक लिखा। उसके बाद मैंने पांच नाटक लिखे, दो शार्ट मूवीज बनाई। एक कविता की किताब प्रकाशित की और थीसिस के साथ देश भर में घुमा। इसके बाद दुनिया से रूबरू होते हुए, मेरी Jean-luc Godard, David Lynch, Stanley Kubrick, Krzysztof Kieslowski जैसे फिल्मकार और कहानी वक्ताओं से मुलाकात हुई। इसके बाद मैंने इलाहाबाद में काफी लोगों से जुड़ा जैसे की थिएटर आर्टिस्ट, कवि, लेखक, इतिहासकार इत्यादि।

सवाल: जब भी कोई इलाहाबाद का जिक्र करता है तो सबसे पहले आपके दिमाग मे क्या आता है?

ध्रुव हर्ष: बेशक मेरे जीवन को तराशने वाला अंग्रेजी का विभाग, जहां से मेरी काफी यादें जुड़ी हैं और दूसरा अपने दोस्तों के साथ बैठकर सामाजिक और दार्शनिक मुद्दों पर बहस करना। मुम्बई में ये सब मुझे काफी याद आते हैं। मेरे होस्टल के दोस्त धीरज सिंह, मनीष सिंह, अमित तिवारी, शिवम, दीपांकर, सौरभ इनके अलावा मेरी कुछ पसंदीदा जगह जैसे माही कैफे, लक्ष्मी कैंपस, विभाग की सीढ़ियां और हॉलैंड हॉल हॉस्टल का 28 नंबर का कमरा, ये सभी मुझे काफी याद आते हैं।

सवाल: आपके हिसाब से इलाहाबाद के युवा अपने प्रतिभा का किस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं?

ध्रुव हर्ष: अच्छा अनावरण, अवसर और अपने रुची के अनुसार काम। क्योंकि आप अपने हिसाब से जगह चुनते है न कि जगह आपको।

सवाल: तीन ऐसी चीज़ें जो आपको संगम नगरी में अच्छी और बुरी लगती हैं।

ध्रुव हर्ष: मेरे हिसाब से मुझे इलाहाबाद की गर्मजोशी जो कि आपको हर इंसान, यहां की राजनीति और बौद्धिकता में भी देखने को मिलेगा। इलाहाबाद से मुझे कोई शिकायत नहीं है।

सवाल: हमारे पाठकों को अपने नए योजना के बारे में कुछ बताएं?

ध्रुव हर्ष: हाल ही में मैंने हर्षित नाम की फ़िल्म का पोस्ट प्रोडक्शन का काम खत्म किया है। ये 25 मिनट की फ़िल्म है जो कि शेक्सपियर के हैमलेट नाटक से प्रेरित है। इस फ़िल्म में सत्यजीत दुबे, नताशा राणा, दीक्षा जुनेजा, और अभिषेक पांडेय मुख्य भूमिका में हैं। मेरा पूरा प्रयास रहा है कि मैं शेक्सपियर के इस नाटक के सभी पहलू जैसे प्यार, वासना, लालच और काव्य का खास ध्यान रखूं। मेरा दूसरी फिल्म एक डाक्यूमेंट्री ड्रामा है। ये फ़िल्म कोलकत्ता में हाथ से रिक्शा खींचने वालों के बारे में है। जिसका शीर्षक "Colonial Hangover vs Penuary of Barefooted Flesh" है। इस फ़िल्म को बनने में 18 दिन लगे और फिर हम मुम्बई आ गए। मेरे दोस्त सुरभि भट्टाचार्जी जो कि कोलकत्ता की ही रहने वाली हैं और साथ में जादवपुर विश्वविद्यालय से रिक्शा वालों पर अनुसंधान कर रही है, के साथ मैंने इस फ़िल्म को बनाया।

सवाल: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए कैसा अनुभव था?

ध्रुव हर्ष: मुझे याद है कि मेरा वेशभूषा काफी अलग हुआ करता था। मैं जीन्स के ऊपर कुर्ता पहनता था साथ में कोल्हापुरी चप्पल और कंधे पर खादी का थैला। मतलब एक कवि की तरह। मैं लड़कियों को प्रभावित करने के लिए काफी बार अपने अध्यापकों से कक्षा में चर्चा करता था।

सवाल: आप नए उभरते फिल्मकारों को सही राह पर जाने के लिए क्या संदेश देंगे?

ध्रुव हर्ष: सिनेमा आपकी पहुंच और इंसान की प्रकृति का अध्ययन है। बस अपनी पहचान को साफ रखें और अपने आप से सच रहें और इसी काल के साथ अपने सफर का शुभारम्भ करें। जिंदगी ही सबसे बेहतरीन अध्यापक है और जिज्ञासा बेहतरीन स्कूल, ये आप पर निर्भर करता है कि आप किस नजरिये से इसे देखते हैं।

सवाल: आप इलाहाबाद शहर से अभी किस प्रकार से जुड़े हैं?

ध्रुव हर्ष: मैं सभी थिएटर के निर्देशकों, कवि , लेखक, अध्यापकों और दोस्तों से जुड़ा हुआ हूं, और कई बार उनकी राय भी लेता हूं।

सवाल: आप इलाहाबाद के युवाओं को इस संगम नगरी को सहेजने के लिए क्या संदेश देंगे?

ध्रुव हर्ष: वैसे तो में संदेश नहीं देता लेकिन ये जरूर कहूंगा की जो भी इस संगम नगरी में पढ़ने के लिए आता है उसे शहर के इतिहास और इतिहासकारों के बारे में जानना चाहिए। इलाहाबाद की संस्कृति काफी मजबूत है। हमे इस पर गर्व होना चाहिए और इसे फिर से नई शुरुआत करनी चाहिए ताकि और निराला, फ़िराक़, महादेवी और पंत पैदा हो सके।

सवाल: आप इलाहाबाद को अपना रिटायरमेंट घर बनाने चाहेंगे?

ध्रुव हर्ष: मेरा रिटायरमेंट के कोई प्लान नहीं है जब तक मेरे शरीर में इस कार्य को करने की क्षमता है। परंतु यहां के लोगों के लिए थिएटर जरूर बनाऊंगा साथ ही फिल्म स्क्रीनिंग भी करवाऊंगा।

सवाल: इलाहाबाद के कुछ ऐसे पल जो आप हम से साझा करना चाहेंगे?

ध्रुव हर्ष: वैसे तो कई हैं लेकिन एक बार मैं और मेरा दोस्त मनीष डिपार्टमेंट की सीढ़ियों में कुछ लड़कियों से बात कर रहे थे कि अचानक प्रॉक्टर वहां पहुंच गए। उन्होंने हम से पूछा कि आखिर हम लोग कैंपस के अंदर क्या कर रहे हैं। तो इस बात पर मनीष ने कहा की सर हम साहित्य के छात्र हैं, हम शेक्सपियर और कीट्स जैसे साहित्यकारों को पढ़ते हैं, तो और हम से क्या उम्मीद करते हैं।

सवाल: आप अपने परिवार वालों के बारे में कुछ बताएं?

जवाब: मेरा जन्म शिव रतन सिंह के परिवार में हुआ। उनके नाम पर ही मेरे गांव का नाम रखा गया है। मेरे पिता श्री अजय सिंह शहर के सम्मानित व्यापारी हैं और मेरी मां श्रीमती शकुंतला सिंह गृहणी हैं। मैं घर के पांच बच्चों में से चौथे नंबर पर हूं और बाकी चार बहनें हैं।सामंतवाद से सख्त नफरत होने के कारण ही मैंने इलाहाबाद आकर अपना उपनाम सिंह से लेकर हर्ष कर दिया।

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