गाजियाबाद: स्लम एरिया में बच्चों को शिक्षित कर रहे ये बैंक मैनेजर

  • Pinki
  • Thursday | 1st February, 2018
  • local
संक्षेप:

  • बैक मैनेजर तरूणा विधेय बच्चों को दे रही शिक्षा
  • निर्भेद फाउंडेशन के तहत 1752 बच्चों को संवारा भविष्य
  • बैचमेट के साथ से बना कारवां

गाजियाबाद के बैंक में बतौर मैनेजर काम करने वाली मेरठ की तरुणा विधेय स्लम एरिया के बच्चों को शिक्षा मुहैया कराकर एक नई मिसाल पेश कर रही हैं। इसके लिए तरुणा ने अपने एक बैचमेट और रेलवे अफसर सुशील कुमार के साथ निर्भेद फाउंडेशन बनाया है। अब यह संस्था स्लम एरिया के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रही हैं। निर्भेद फाउंडेशन के इस अभियान के तहत गाजियाबाद के विजयनगर और ट्रांस हिंडन में चार जगहों पर खुले आसमान के नीचे 1752 बच्चों का भविष्य संवारा जा रहा है।

ये स्लम एरिया में पहले जाकर बच्चों का सर्वे करते हैं। इसके बाद वहां पर स्कूल की शुरुआत करते हैं। सभी लोग कामकाजी हैं इसलिए शिफ्ट के हिसाब से बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। तरुणा विधेय उत्तरप्रदेश के मेरठ शहर की रहने वाली हैं। तरुणा के पिता रजाई-गद्दे का व्यवसाय करते हैं। तीन भाई-बहन में तरुणा सबसे छोटी हैं। तरुणा बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थी। बचपन से ही तरुणा के अन्दर कुछ अलग करने का जज्बा था। वही जज्बा आज तरुणा को गरीब बच्चों की मदद के लिए प्रोत्साहित करता है।

तरुणा ने बातचीत के दौरान बताया कि उनके पापा की छोटी सी दुकान थी। हम तीन भाई बहन की पढ़ाई का खर्च निकाल पाना काफी मुश्किल होता था, लेकिन किसी तरह से पिताजी ने हम तीनों भाई-बहन को पढ़ाया। लिमिटेड इनकम में तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च और परिवार को चलाना पापा के लिए किसी संघर्ष से कम नही था। लेकिन, शुरू से ही उनका लक्ष्य था कि मेरे बच्चे आगे चल कर कुछ बनें। बस इसी लक्ष्य के साथ वो अपने काम में लगे रहते थे। उनका यही संघर्ष आज हम तीनों भाई-बहन के लिए इंस्पिरेशन बन गया।

तरुणा को 2012 में गाजियाबाद के एक बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर जॉब मिली। नौकरी करते हुए तकरीबन दो साल बीत गए। स्कूल और कॉलेज के दिनों में उन्होंने देखा था कि कैसे गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे पैसे के आभाव में अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने बताया कि एक दिन मैं बैंक के एक क्लाइंट से मिलने गई थी। उनके घर जाने का रास्ता एक बहुत बड़े स्लम एरिया से होकर जाता था। मैंने रुक कर वहां रहने वाले बच्चों को देखा तो मुझे लगा कि शायद मेरी जिन्दगी का मकसद अब मिल गया है। उसी दिन से मैं स्लम एरिया में विजिट करने लगी। मेरा पहला काम होता था ऐसे बच्चों को चिन्हित करना जो किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पाते।

मैंने ऐसे कई बच्चों को चिन्हित किया और अपने सोसाइटी में ही बुलाकर उन्हें पढ़ाने लगी, जहां मैं रहती थी। दो बच्चों से मैंने जो सफर शुरू किया था वह धीरे-धीरे 50 बच्चों तक पहुंच चुका था। तरुणा ने कहा कि मैं बैंक से शाम 5 बजे वापस आती थी तब बच्चों को पढ़ाती थी, लेकिन बच्चों की संख्या काफी ज्यादा हो चुकी थी। इसका सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोग और सोसाइटी प्रबन्धन विरोध करता था। हांलाकि, मैंने उन्हें मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने सोसाइटी में बच्चों के आने पर रोक लगा दी। इसके बाद मैं खुद स्लम एरिया में जाकर खुले आसमान के नीचे बच्चों को पढ़ाने लगी।

तरुणा का कहना है कि मेरे एक बैचमेट सुशील कुमार रेलवे में सेक्शन ऑफीसर हैं। उन्हें भी ऐसे कामों में काफी रूचि थी। एक दिन मैंने उनसे मुलाकात करके अपनी इस मुहीम के बारे में चर्चा किया। उन्होंने मेरा साथ देने के लिए हामी भर दी। इसके बाद तो मानो कारवां सा बन गया। हमने एक संस्था निर्भेद फाउंडेशन की नीव रखी।

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