Gorakhpur : चुनौतियों से लड़कर माधवी सिंह बनीं ले.कर्नल

  • Pinki
  • Monday | 16th October, 2017
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संक्षेप:

  • 1998 में माधवी का पहली बार लेफ्टिनेंट में हुआ सलेक्शन
  • कुछ अलग करने के जुनून ने बनाया उच्च सैन्य अधिकारी
  • गोरखपुर की माधवी सिंह शहर से निकलकर बनी पहली ले. कर्नल

गोरखपुरः एक नये परिवेश में चुनौती पूर्ण कैरियर अपनाकर भारतीय सेना की गोवा में कार्यरत ले.जनरल माधवी सिंह बनी शहर की सिटी स्टार। माधवी सिंह को जहां सैन्य परिवार का सदस्य होने का गौरव प्राप्त है, वहीं उन्हें मात्र गोरखपुर ही नहीं बल्कि संभवत: पूरे गोरखपुर, बस्ती मंडल की सेना में पहली महिला उच्चाधिकारी होने का भी गौरव प्राप्त है। सन् 1998 में माधवी का भारतीय थल सेना के सिग्नल कोर में पहली बार लेफ्टिनेंट के लिए सलेक्शन हुआ। जब वह दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर में एमएससी गणित की छात्रा थीं तो उस वक्त न तो उन्होंने और न ही उनके शिक्षक दंपत्ति माता-पिता ने ही कभी सोचा था कि उनकी नियुक्ति सेना में होगी।

सामान्य विज्ञापन रिक्तियों के लिए किये जाने वाले आवेदन पत्रों की तरह उन्होंने जीवन में कुछ नया करने की लालसा लिए इस पद के लिए आवेदन किया था। लेकिन माता-पिता के आशीर्वाद व स्वयं की मेहनत का परिणाम था कि माधवी को लिखित और साक्षत्कार के बाद प्रशिक्षण तक का बुलावा आ गया। चेन्नई स्थित सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण लेने के बाद उनकी पहली नियुक्ति उग्रवाद प्रभावित राज्य नगालैंड में हुई। नियुक्ति के बाद जब वे पहली बार अपने घर गोरखपुर स्थित पैडलेगंज आईं तो पिता तत्कालीन अध्यापक महाराणा प्रताप इण्टर कालेज व माता मंजू सिंह तत्कालीन अध्यापिका के लिए यह केवल एक बेटी के रूप में ही नहीं बल्कि एक सैन्य अधिकारी के रूप में भी थी।

गोरखपुर में ही जन्मी, पली, बढ़ी और पढ़ी पूर्वांचल की यह पहली बेटी जिले के खजनी तहसील के उनवल राज परिवार की भी सदस्य है। ले. जनरल माधवी सिंह ने दूरभाष पर हुई बातचीत के दौरान बताया कि शैक्षणिक काल से ही कुछ अलग करने का जज्बा होने की वजह से भारतीय सेना जैसी रोमांचक एवं कठिन व्यवसाय का चयन किया। उन्होंने कहा वैसे तो अब सेना में पूर्वांचल की लड़कियां भी आने लगी हैं, फिर भी अभी उनकी संख्या नाम मात्र ही है। जरूरत है कि लड़कियां झिझक मिटाते हुए इस दिशा में और उत्साह से आगे आएं। प्रशिक्षण से लेकर अब तक का अपना अनुभव शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि ओ.टी.ए में 6 माह का प्रशिक्षण काल था जो अपने तरह का एक अलग और काफी रोमांचक अनुभव है।

इस दौरान एक कैडेट से शारीरिक और मानसिक रूप से कठिन श्रम कराया जाता है, जिससे कैडेट में सहन शक्ति, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता, रचनात्मक सोच तथा एक दूसरे को सहयोग करने की भावना विकसित होती है। एक जिम्मेदार और प्रोफेशनल अधिकार बनने का प्रयास और उसके अनुरूप माहौल अकादमी प्रदान करती है। सबसे ज्यादा महत्व कैडेट की दिनचर्या में समय का होता है। सारे कार्यों के लिए समय निर्धारित रहता है और उसी के अनुसार चलना होता है। व्यक्ति प्रबंधन और समय प्रबंधन हर संस्था के लिए महत्वपूर्ण है।

ले.ज. माधवी के मुताबिक, प्रशिक्षण के बाद पहली नियुक्ति उग्रवाद प्रभावित राज्य नगालैंड स्थित कोर में हुई, जहां उन्होंने उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में स्थित सेना की विभिन्न टुकडिय़ों के मध्य सुचारू संचार व्यवस्था स्थापित करने का कार्य किया। इस दौरान वह मेरठ और रांची में भी तैनात रहीं। तदंतर उनकी नियुक्ति स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में हुई, जहां उन्होंने विशिष्ट आयुधों एवं तरीकों जैसे पैराजांपिंग एवं माइक्रोलाइट, एयर क्राफ्ट डड़ाने का व्यवहारिक ज्ञान एवं प्रशिक्षण प्राप्त किया। माधवी ने सेना की विशेषीकृत संचार यूनिटों जैसे वायरलेस एक्सपेरिमेंटल यूनिट, सेना मुख्यालय एवं सेना की स्ट्राईक फार्मेशन में भी कार्य किया।

इसके अलावा, गोरखपुर स्थित 45 यूपी बटालियन एनसीसी के प्रभारी अधिकारी के तौर पर भी प्रशंसनीय कार्य करते हुये उन्होने स्थानीय छात्र, छात्राओं को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनके कार्यकाल में गोरखपुर ग्रुप मुख्यालय विभिन्न क्रियाकलापों में प्रदेश के प्रथम तीन स्थानों में रहा। वर्तमान में उन्नीस साल के सेना के अनुभव के साथ वह सेना के प्रशिक्षण केन्द्र में बतौर संचार अधिकारी कार्यरत हैं एवं साइबर सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मसलों की निगरानी रखती है।

उन्होंने बताया कि इस दौरान मुझे आन ग्राउण्ड बहुत कुछ सिखने को मिला और आज भी मिल रहा है। एक सैन्य अधिकारी को हर समय अपने कार्य और व्यवहार के प्रति हमेशा सजग व सतर्क रहना होता है, क्योंकि आप अपने अधिनस्थों के लिए खुद एक उदाहरण होते हैं। भारतीय सेना ऐसे अनेक मौके प्रदान करती है जहां अपनी प्रतिभा का समुचित उपयोग किया जा सके।

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