सिटी स्टारः डिस्ट्रॉफी बीमारी से पीड़ित कानपुर के देवांग बने CA

  • Sonu
  • Saturday | 20th January, 2018
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संक्षेप:

  • हाथ से निवाला नहीं खा सकते देवांग
  • फिर भी क्लियर किया ये टफ Exam
  • किसी कोचिंग में नहीं मिला एडमिशन

कानपुरः `जहां चाह है, वहां राह है।` ये लाइन इस युवक के उपर बिल्कुल फिट बैठती है, जिसने तमाम शारीरिक परेशानियों के बावजूद वो कर दिखाया, जो शायद ज्यादातर फिजिकली फिट नौजवान भी नहीं कर पाते। बुधवार को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स फाइनल एग्जाम का रिजल्ट जारी किया गया। वहीं, कानपुर के देवांग अग्रवाल ने इस क्वालीफाई कर लिया, जो मांसपेशीय दुर्विकास (मस्कुलर डिस्ट्राफी) नाम की बीमारी से ग्रसित हैं।

कानपुर के बर्रा-4 के रहने वाले 23 साल के देवांग के माता-पिता डॉक्टर हैं और बड़ा भाई अमेरिका के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए कर रहा है। लेकिन, देवांग को मस्कुलर डिस्ट्राफी नाम की ऐसी गंभीर बीमारी है, जिसकी वजह से पूरा शरीर काम नहीं करता। इसके बावजूद भी देवांग ने ऐसा कमाल कर दिखाया है, जिसकी वजह से उनके माता-पिता को आज उन पर गर्व है।

`कई देशों के डॉक्टर्स को दिखाया`

देवांग की मां डॉ. मनीषा अग्रवाल ने बताया कि "देवांग का जन्म भी नॉर्मल बच्चों की तरह हुआ था, लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ा होता गया, उसके बॉडी पार्ट्स ने काम करना बंद कर दिया। हमने देवांग को हर बड़े डॉक्टर को दिखाया। यहां तक की उसे अमेरिका, इंग्लैंड और कई यूरोपीय देश भी ले गए। लेकिन, इस लाइलाज बीमारी का कोई हल नहीं निकला।

`नॉर्मल बच्चों की तरह हुआ था जन्म`

डॉ. मनीषा ने बताया, "हमने देवांग को कभी इस बात का अहसास नहीं होने दिया कि वो किसी बीमारी से ग्रसित है। भले ही वो नॉर्मल बच्चों की तरह बहुत कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मेरा बेटा मानसिक रूप से बहुत स्ट्रॉन्ग है। मैं भाग्यशाली हूं कि ईश्वर ने मुझे ऐसा बेटा दिया है। ईश्वर इस तरह के टास्क हर किसी को नहीं देता। अगर ईजी टास्क होगा तो उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस टफ टास्क को पूरा करना मुझे अच्छा लगता है। उन्होंने बताया "मेरा बेटा शरीर पर बैठी मक्खी भी नहीं हटा सकता है लेकिन दिमाग से वह बहुत स्ट्रांग है। जिसका रिजल्ट आप सबके सामने है।

`क्लास 10 के बाद बढ़ने लगी परेशानियां`

देवांग के पिता डॉ. एके अग्रवाल ने बताया कि "मेरा बेटा दुनिया की सबसे घातक बीमारी से लड़ रहा है। इसके बावजूद भी मैं उसे सेल्फ डिपेंडेंट बनाने के प्रयास में जुटा हूं। उन्होंने बताया, "देवांग ने 2011 में हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली। इसके बाद उसकी परेशानियां काफी बढ़ गईं। जब वो 12वीं में पहुंचा तो उसके हाथों ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद मैंने CBSE के चेयरमैन विनीत जोशी से विनती की तब जाकर देवांग को एक राईटर प्रोवाइड कराया गया। 12वीं में देवांग ने 97 प्रतिशत नंबर लाकर सिटी टॉप किया था।

`किसी कोचिंग में नहीं मिला एडमिशन`

इसके बाद देवांग ने क्राइस्टचर्च कॉलेज से बीकाम किया। "देवांग CA बनाना चाहता था। इसके लिए कोचिंग की जरूरत थी। मैंने कई कोचिंग में जाकर बात की, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। फिर मैंने देवांग को किताबें लाकर दीं और उसे इंटरनेट से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। इसका नतीजा आप सबके सामने है।

`इस वजह से नहीं मिली बैंक की जॉब`

डॉ. एके अग्रवाल ने बताया, "6 महीने पहले देवांग के लिए ICICI बैंक से जॉब का ऑफर आया था। जब मैं उसे लेकर इंटरव्यू के लिए पहुंचा तो वो लोग तीसरी मंजिल पर बैठे थे और उस बिल्डिंग में लिफ्ट भी नहीं थी। "मैंने इंटरव्यूवर से नीचे चलकर इंटरव्यू लेने के लिए आग्रह किया, लेकिन वो लोग नहीं माने और वो नौकरी दूसरे को मिल गई।

`पैरेंट्स ने हमेशा किया मोटिवेट`

देवांग ने बताया कि "मैं इस बीमारी से ग्रसित हूं, लेकिन मेरे पैरेंट्स ने कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया। मेरे पैरेंट्स हमेशा मुझे मोटीवेट करते रहे और मेरी मदद करते हैं। "मैं किताब के पन्ने नहीं पलट सकता, हाथ से निवाला भी नहीं खा सकता, लेकिन लैपटॉप ऑपरेट कर सकता हूं। "मैं 9 महीने की पढ़ाई के बाद CA का एग्जाम क्वालीफाई कर लिया। "मस्कुलर डिस्ट्राफी से पीड़ित जितने भी लोग हैं, मैं उनसे यही कहना चाहूंगा कि वो अपने आप को किसी से कमजोर न समझें। एक पॉजिटिव सोच के साथ जीने का प्रयास करें।

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