शोर्ट फिल्म के बादशाह एसके प्रसाद से ख़ास बातचीत 

  • Sonu
  • Saturday | 15th July, 2017
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संक्षेप:

  • शुरू से ही था कथा लेखन का शौक
  • किसी ने नहीं दिया मौका
  • हर फिल्म समाज को देती है सन्देश

लखनऊ: कुछ साल पहले एक समय था कि जब उत्तर प्रदेश बहुत ज्यादा विकसित नहीं था और यहां पर न ही शोर्ट फिल्मों को कोई जानता था. अगर वर्तमान की बात करें तो उत्तर प्रदेश के हर जिले में शोर्ट फिल्म के निर्माता बैठे हुए है. लेकिन जब कोई नहीं जानता था तब उस समय एक व्यक्ति लखनऊ में लाखों की भीड़ में थे जो शोर्ट फिल्म को प्रदेश में बढ़ावा देने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे थे. आज वह लखनऊ में शोर्ट फिल्म निर्माता के नाम से जाने जाते हैं उनका नाम है एसके प्रसाद NYOOOZ से ख़ास बातचीत की.

NYOOOZ: आपको पटकथाएं लिखने का शौक कहां से आय?

एसके प्रसाद: लिखने की कला मुझे अपने पिता सुर्यानंद सुर्याकार से मिली है जो भोजपुरी भाषा के एक अच्छे लेखक एवं कवि हैं. उन्होंने न केवल दो हज़ार भोजपुरी गीत लिखे हैं बल्कि भोजपुरी भाषा के शब्दकोष का लेखन भी किया है.  

NYOOOZ: क्या आपको पटकथाएं लिखने का शौक शुरू से ही था, जरा अपनी यात्रा के बारे में बताएं?

एसके प्रसादः मुझे लिखने का शौक शुरू से ही था यह एक बात सच है. मैंने शुरूआती दौर में अपनी कहानियां लेकर बड़े-बड़े पटकथा लेखकों के पास गया लेकिन किसी ने मुझे काम तो नहीं दिया बल्कि सलाह जरूर दे डाली कि कुछ ऐसा करो जिससे मज़ा आये. बस फिर मैंने सोचा कि अब कुछ ऐसा करता हूं जिससे कुछ अलग दिखे. तो बस मैंने यही सोचा और आज तक अलग ही करने की सोचता रहता हूं. 

NYOOOZ: आप ने अपने कैरिअर की शुरुआत कहां से की थी और आप कैसी फिल्मों के निर्माण में दिलचस्पी रखते हैं?

एसके प्रसादः मैं सभी फ़िल्में समाज के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर बनाता हूं. मेरा मानना है कि शोर्ट फिल्म ऐसी हो जिससे कोई कुछ सीखे या किसी को कोई जानकारी मिले.

सबसे पहली फिल्म मैंने आतंकवाद पर बनाई जिसका नाम था ‘दा बीस्ट’ और हमारी यह फिल्म बहुत ही कम दामों में तैयार हो गयी थी. यह शोर्ट फिल्म तैयार करना मेरे लिए अनूठा प्रयोग था मेरे लिए.

NYOOOZ: आज तक आपने समाज के किन-किन प्रमुख परेशानियों पर फ़िल्में बनायीं हैं? 

एसके प्रसादः मैंने अभी तक वैश्यवाद, बाजारवाद, हिन्दू मुस्लिम एकता, राजनीती में युवाओं की भूमिका, राष्ट्रवाद, लिविंग रिलेशनशिप पर शोर्ट फ़िल्में तैयार की जिससे समाज में लोगों तक मैसेज पहुंचा.

NYOOOZ:  आपकी प्रार्थमिकता पैसा है या समाज में सन्देश देना?

एसके प्रसादः मेरा मानना है कि जब तक दूसरों तक कोई सन्देश न पहुंचे तब तक फिल्म का कोई मतलब नहीं. आपको एक बात साफ़ तरह से बता देता हूं कि मेरी प्रार्थमिकता कभी पैसा नहीं रही बल्कि मैंने पिछले 10 सालों में 28 फिल्मों की पटकथा लिखी हैं और सभी समाज में एक अच्छा सन्देश देने वाली हैं उसमे मेरा पर्सनल बेनिफिट कही नहीं है.

NYOOOZ: आपकी इस पहल से समाज में सन्देश के अलावा क्या दूसरों को कुछ फायदा हुआ या सिर्फ़ आपको ही फायदा मिला?

एसकेप्रसाद: मेरे द्वारा स्थापित किया गया सार्थक एंटरटेनमेंट में सिर्फ लोगों तक सन्देश ही नहीं पहुंच रहा बल्कि लोगों को रोजगार भी मिला है और उन लोगों को अपना टैलेंट दिखने का मौका मिला यह उनके लिए सबसे बड़ा फायदा है.

जिनको चांस नहीं मिल पा रहा था कभी उनको भी मेरी इस पहल से चांस मिला है. मेरे साथ काम करने वाले प्रोडूसर, एक्टर सभी यही बात कहते हैं.

NYOOOZ:  आप लोगों को क्या सन्देश देना चाहेंगे?

एसके प्रसादः लोग अक्सर कहते हैं कि डायरेक्टर बनना है तो मुंबई जाओ मैंने इस प्रथा को तोड़ने की कोशिश की है और यह कोशिश जारी रहेगी. मैं सबसे कहना चाहता हूं जो फिल्म और डायरेक्शन की दुनिया में जाना चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश सिर्फ फिल्म की शूटिंग तक ही न जाना जाये बल्कि आप सभी के फिल्म निर्माण से इसे एक अलग रूप में भी जाना जाये. क्योंकि उत्तर प्रदेश में भी बहुत सी संभावनाएं फिल्म के क्षेत्र में छुपी हुई हैं.

NYOOOZ: सब का कहना होता है कि अगर फिल्म के क्षेत्र में उतरना है तो पैसा अधिक होना चाहिये?

एसके प्रसाद: ये सब कहने की बाते हैं अगर आप समाज में अच्छा सन्देश देना कहते हैं तो कम पैसे में भी काम चल सकता है. सच तो ये है कि जो काम पैसे से किया जाना था वो मैंने अपने अथका प्रयास से कर दिखाया. मैंने अपनी शोर्ट फिल्म की शुरुआत बहुत ही कम लागत से की लेकिन फिल्म ने सामाज में सन्देश  दिया और लोगों ने मेरी सराहना की जो मेरे लिए बड़ी जीत है.

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