मध्य प्रदेश में महेश्वर: अहिल्या बाई होलकर की कुशल शासन कला , धार्मिकता और बुद्धिमत्ता का जीता जागता एक शहर

सैर सपाटा 

मध्यप्रदेश राज्य के खरगौन जिले में स्थित महेश्वर एक बहुत ही शान्त कस्बा है। महेश्वर का पूर्व नाम महिष्मति है आज का महेश्वर एक विकसित पर्यटन स्थल है, मध्यप्रदेश शासन द्वारा पवित्र नगरी का दर्जा प्राप्त है | लेकिन वस्तुतः महेश्वर देवी अहिल्या बाई होलकर की कुशल शासन कला , धार्मिकता और बुद्धिमत्ता का जीता जागता गवाह है।

ऐतिहासिक ज्ञान देने के लिए देवी अहिल्या का राजवाड़ा है, 2 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को सुरक्षा देने वाला 500 फुट ऊंचा किला है । महेश्वर का अपना पौराणिक महत्व है सहस्त्रार्जुन से लेकर मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के शास्त्रार्थ की दास्तां है महेश्वर वायु पुराण नर्मदा पुराण स्कंद पुराण इत्यादि में वर्णित महिष्मति नगरी आज आज का महेश्वर है।

यह स्थान विरासत के मामले में बहुत धनी होने के साथ-साथ अपने शानदार हथकरघा वस्त्रों के लिये भी प्रसिद्ध है जिससे यहाँ के पर्यटन को बढ़ावा मिलता है। यह मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक रूप से सबसे समृद्ध स्थानों में से एक है।

नौका विहार के लिए सुंदर नौकाएं हैं, स्वच्छ और पवित्र नर्मदा नदी है , स्नान के लिए सुंदर व्यवस्थित घाटों की श्रंखला है। अनेकानेक शिवालय और मंदिरों की श्रंखला के कारण ही महेश्वर को गुप्तकाशी भी कहा जाता है। 17वीं शताब्दी में हैदराबादी बुनकरों द्वारा प्रारंभ की गई माहेश्वरी साड़ी आज भी साड़ियों का एक बड़ा ब्रांड है और महेश्वर इन माहेश्वरी साड़ियों के निर्माण और व्यवसाय का बड़ा केंद्र है।

महेश्वर कैसे पहुँचें

महेश्वर अपने जिला मुख्यालय खरगोन से लगभग 40 किलोमीटर है | जबकि मध्य भारत के मुख्य व्यवसायिक केंद्र इंदौर से 90 किलोमीटर है |
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के पश्चिम में महेश्वर लगभग 55 किलोमीटर है, जबकि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन से इसकी दूरी लगभग 150 किलोमीटर है |

सड़क मार्ग : महेश्वर सड़क मार्ग से बहुत ही सुविधा पूर्ण रूप से जुड़ा हे | मुंबई -आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से मात्र 20 KM दूर है | यहाँ पहुचने वाले सभी रास्ते अच्छे बने हुए है |

हवाई मार्ग : समीपस्थ हवाई अड्डा इन्दौर है जो महेश्वर से लगभग 95 किलोमीटर है | यह हवाई अड्डा " देवी अहिल्याबाई होलकर इंटरनेशनल एअरपोर्ट " देश के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा है |

रेल मार्ग : सीधे तौर पर महेश्वर रेलवे से पर जुड़ा हुआ नहीं है, समीपस्थ रेलवे स्टेशन बड़वाह (इन्दौर-खंडवा रूट) लगभग 40 किलोमीटर दूर है | वर्तमान में वेज परिवर्तन के कारण यह रेल रूट भी अभी बाधित है | अतः रेल से आना भी इन्दौर

होल्कर वंश का 2500 साल पुराना इतिहास

लगभग 2500 साल पुराने इस शहर को होल्कर वंश में 1818 तक अपनी राजधानी रखा था।
अहिल्या बाई का जन्म महाराष्ट्र के चौंडी गांव में मालको जी शिंदे के यहाँ हुआ (31 मई 1725), उनकी तेजस्विता और भक्ति भाव को देखकर मल्हारराव होल्कर ने उन्हें अपनी पुत्रवधू बनाया और वे खंडेराव होल्कर की धर्मपत्नी बनकर महेश्वर आ गई | समय के साथ अहिल्या बाई राजकाज , युध्द कौशल और अर्थ व्यवस्था के सूत्र आत्मसात करती चली गई | राजमाता अहिल्याबाई होल्कर का जीवन उतार चढ़ाव और चुनोतियों भरा रहा और वे भक्तिभाव के साथ कर्मवीरों की तरह जीवन में लड़ती रही और आगे बढती रही | उनके पति खंडेराव एक युद्ध में मरे गए , उनके ससुर मल्हारराव होल्कर ने उन्हें संघर्ष के साथ जीने की शिक्षा दी | लेकिन कुछ समय बाद मल्हारराव होल्कर भी नहीं रहे | अहिल्या बाई की दो संताने थी पुत्र मालेराव व पुत्री मुक्ताबाई | एकमात्र पुत्र मालेराव भी राज काज सम्हालने के एक वर्ष के अंदर ही स्वर्ग सिधार गए | और अंततः राजकाज देवी अहिल्याबाई के हाथों में आया और वे लगभग २९ वर्षों तक अपने सुशासन से इतिहास बनाती गई |

महेश्वर का पौराणिक इतिहास

महेश्वर का पौराणिक महत्व और इतिहास महेश्वर के अत्यंत गौरवशाली पौराणिक इतिहास के कारण ही देवी अहिल्या ने महेश्वर को राजधानी बनाया था |

इसके पूर्व महत्वपूर्ण इतिहास में यह शहर पंडित मंडन मिश्र वह उनकी धर्मपत्नी विदुषी भारती देवी की विद्वता से प्रकाशित हुआ करता था व जाना जाता था | फिर इसी स्थान पर जगतगुरु आदि शंकराचार्य से उनके शास्त्रार्थ का गवाह बना व सनातन धर्म को उत्तम दिशा दी । कुछ मतों में बालक शंकर के शंकराचार्य बनने का स्थान भी यही है , जब उन्होंने शास्त्रार्थ में पंडित मंडन मिश्र व उनकी धर्मपत्नी विदुषी भारती देवी को पराजित किया था | वेद, पुराण उपनिषद, ( वायु पुराण, नर्मदा पुराण , स्कंद पुराण इत्यादि में वर्णित महिष्मति नगरी ही महेश्वर हे | 
हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन उसकी 500 रानियों की कथा बड़ी रोचक हे राजा सहस्त्रार्जुन बड़े ही बली थे उनके हजार हाथ थे जिनसे वे नंदा की धारा को रोकने की सामर्थ्य रखते थे, लंका के राजा रावण से उनका युध्ध हुआ था | सहस्त्रार्जुन ने रावण को हराकर कैद कर लिया था | इस इतिहास में यहां रावणेश्वर महादेव का मंदिर बना और विश्वविख्यात राज राजेश्वर महादेव का मंदिर भी है ।
देवाधीदेव महादेव की पुत्री माँ नर्मदा के पवित्र तट पर बसे महेश्वर को अपनी विलक्षणता के कारण ही गुप्तकाशी के नाम से भी जाना जाता है।

महेश्वर और इसके आस-पास के पर्यटक स्थल

विरासत में समृद्ध आकर्षण के स्थानों में महेश्वर पर्यटन के विभिन्न विकल्प उपलब्ध रहते हैं। चाहे वे किले हों, घाट हों, महल हों, मन्दिर हों या अन्य आकर्षण हों, पर्यटक भारी संख्या महेश्वर में रूक कर आनन्द लेते हैं। महेश्वर की विरासत की उच्च श्रेणी की अनोखी वास्तुकला से अक्सर पर्यटक आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

महेश्वर के पास के दर्शनीय जगहें

नर्मदा घाट

नर्मदा घाट होल्कर राज्य की तत्कालीन शासक महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 18वीं सदी में बनवाया था। ऐसा विश्वास है कि नर्मदा नदी भारत की सभी पावन नदियों में सबसे पवित्र है। ऐसी भी कहावतें हैं कि जब गंगा नदी अपने आप को मैला महसूस करती है तो वह एक काली गाय के वेश में आकर नर्मदा में अपने आप को साफ करती है।

नर्मदा घाट यहाँ पर पवित्र स्नान के लिये आने वाले भक्तों से भरा रहता है। इस घाट से नदी का स्वरूप देखते ही बनता है। चूँकि यह नदी पूरे राज्य से होकर गुजरती है इसलिये इस नदी को मध्यप्रदेश वासियों के दिलों से अलग नहीं किया जा सकता।

अपने आप में अनोखा होने के साथ ही नर्मदा घाट प्रचीन काल से महेश्वर का पवित्र भाग रहा है। महेश्वर आने वाले पर्यटक इस तथ्य से अवश्य आश्चर्यचकित होते हैं कि नर्मदा में स्नान को भक्ति और पवित्र क्रिया मानने वाले हजारों लोग रोज यहाँ आते हैं।

अहिल्या बाई या होल्कर किला

प्राचीन भारतीय निर्माण कला , युद्ध कौशल और रक्षा निति का एक उत्तम उदाहरण हे महेश्वर का किला | लगभग २ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सुरक्षा देने वाले इस किले के निर्माण का समय 4थी से 5वीं शताब्दी के मध्य का आंका जाता है | किले के वर्तमान स्वरुप का निर्माण 17 से 18 शताब्दी के मध्य का माना जाता है | अब यह किला अनेक स्थानों से टूट फुट गया है , अनेक स्थानों पर किले की नीव दीवारे गायब है , पर आज की स्थिति बताती हे की यह किला निर्माण के समय में अति सुद्रढ़ रहा होगा |

छोटे बड़े पांच मुख्य द्वार, अन्य किलों की भाति इसमें बड़े दरवाजे द्वारपालों के कक्ष और लगभग बीस बुर्ज वाले इस किले से अपनी प्राचीरों से तोप, तीर ,बन्दुक इत्यादि चलाने के लिए इसे सुसज्जित किया था | प्राचीर पर पांच फुट चौड़ी पैदल पट्टी बनी हुई है |

किले के अंदर ही सारे महत्वपूर्ण देखने लायक स्थान हैं जेसे राजवाडा , अहिल्या देवी का पूजन स्थान (स्वर्ण का झूला) , राजराजेश्वर मंदिर इत्यादि

मंडलेश्वर

मण्डलेश्वर मध्यप्रदेश राज्य के खरगौन जिले में स्थित है। अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण यह कस्बा छोटा होने के बावजूद उल्लेखनीय है। मण्डलेश्वर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। मण्डलेश्वर के आकर्षणों में काशी विशेश्वर, राम मन्दिर और गंगा-जीरा जैसे मन्दिर शामिल हैं।

श्रीद्त्त मन्दिर और छप्पन देव मन्दिर भी इसी सूची का हिस्सा हैं। हथिनी, सहस्त्रधारा और रामकुण्ड जैसे कई और स्थान ऐतिहासिक महत्व के हैं। चूँकि काफी समय पहले यह एक साम्राज्य था इसलिये यहाँ की इमारते देखने लायक हैं। मण्डलेश्वर के स्थानीय निवासी होली, नर्मदा जयन्ती, दिवाली, गणेश चतुर्थी आदि पर्व मनाते हैं।

मण्डलेश्वर में राम घाट कस्बे का एक और प्रसिद्ध स्थान है। हाल ही में मण्डलेश्वर में बहुत विकास हुआ है। ऐतिहासिक संरचनाओं और आधुनिक विकास के सम्मिश्रण के कारण यह कस्बा जिले के आसपास के कस्बों से भिन्न लगता है।

महेश्वर के मंदिर

पण्डरीनाथ मन्दिर

पण्डरीनाथ मन्दिर महेश्वर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मन्दिर है। अन्य मन्दिरों से अलग यह मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित है। स्थानीय लोगो के विश्वास अनुसार सावन के पवित्र हिन्दू महीने के कृष्ण पक्ष के 8वें दिन भगवान कृष्ण पण्डरीनाथ के रूप में अवतरित हुये थे। यह द्वापर युग के अन्त में हुआ था।

पुराणों में भी भगवान विष्णु की पूजा पण्डरीनाथ या भगवान विठ्ठल के रूप में किये जाने का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा 13वीं से 17 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध सन्तों ने अपने गीतों, कीर्तनों और उपदेशों से पण्डरीनाथ की पूजा को लोकप्रिय कर दिया था।

पण्डरीनाथ मन्दिर की खूबसूरती पुराणों की प्रतिमाओं की सुन्दर नक्काशी से और भी बढ़ जाती है। मन्दिर की लटकती हुई बाल्कनियों में भी सुन्दर नक्काशी को देखा जा सकता है। मन्दिर के दरवाजों पर भी उत्कृष्ठ कलात्मकता देखी जा सकती है जिन्हें सूक्ष्म नक्काशियों से सजाया गया है।

कालेश्वर मंदिर

पवित्र नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित कालेश्वर मन्दिर 12वीं सदी का निर्मित मन्दिर है। मन्दिर में पूजे जाने वाले इष्टदेव को विनाश के देवता भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। अद्भुत कालेश्वर मन्दिर एक ऊँचे मंच पर होने के साथ-साथ चमकते लाल रंग में होने के कारण कुछ अजीब सा है।

पर्यटक मन्दिर के सर्पिलाकार गुम्बद की तरफ प्रक्षेपित उर्ध्वाकार अद्भुत मीनारों को देख सकते हैं। कालेश्वर मन्दिर का परिसर अपनी हरियाली के कारण नयनाभिरामी होने के साथ-साथ भक्तों को दैवीय अहसास दिलाता है। भगवान शिव के विनाशकारी अवतार की पूजा होने के कारण कालेश्वर मन्दिर महेश्वर के सभी मन्दिरों में अनोखा है।

तिलभण्डेश्वर मंदिर

भगवान शिव को समर्पित तिलभन्देश्वर मन्दिर अपने सुन्दर दरवाजों और बाल्कनियों की वास्तुकला के लिये जाना जाता है। इस मन्दिर की सबसे भिन्न बात यह है कि मन्दिर के इष्टदेव की प्रतिमा निरन्तर बढ़ रही है। महाशिवरात्रि का पर्व मन्दिर परिसर के अन्दर मनाया जाता है और इस पर्व पर हर वर्ष भक्तों की भारी भीड़ आती है।

तिलभन्देश्वर मन्दिर में मकर संक्रान्ति और अन्नकूट पर्व भी हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं। महेश्वर के अन्य मन्दिरों की भाँति ही तिलभन्देश्वर मन्दिर भी पवित्र नर्मदा नदी के किनारे स्थित है और मन्दिर का प्रतिबिम्ब नदी में साफ दिखता है।

मन्दिर की दीवारों और दरवाजों की सुन्दर वास्तुकला को देखकर पर्यटक अक्सर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मन्दिर की बाल्कनियाँ भी विशिष्ट हैं। भगवान शिव के भक्त तिलभन्देश्वर मन्दिर को देखे बिना कभी भी महेश्वर से लौटते नहीं हैं।

अहिलेश्वर मंदिर

महेश्वर का अहिलेश्वर मन्दिर भगवान शिव को ही समर्पित एक अन्य मन्दिर है। यह मन्दिर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस मन्दिर में भगवान राम की मूर्ति भी है। अहिलेश्वर मन्दिर भी महेश्वर के मन्दिरों के लक्षणों को प्रदर्शित करता है।

इस मन्दिर के गुम्बदों और लाटों की उत्कृष्ट शिल्पकला और वास्तुकला इसके उदाहरण हैं। मन्दिर परिसर में मराठा सैनिकों और घोड़ों की सुन्दर नक्काशियाँ प्रदर्शित हैं जो यहाँ आने वाले पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। मन्दिर का मण्डप प्रभावशाली अलंकरण से सजाया गया है।

नवदाटोली

नवदाटोली एक प्रागैतिहासिक स्थान है जो नर्मदा नदी के दोनों ओर स्थित है। इस स्थान का अनोखापन इस बात से जाहिर होता है कि यहाँ पर पुराप्रस्तर कालीन से लेकर 18वीं सदी की संस्कृतियाँ रहीं हैं। नवदाटोली के खण्डहर 1950 में हो रही एक खुदाई के दौरान मिले थे।

खुदाई के दौरान विस्मृत काल के रंग-बिरंगे बर्तनों के साथ-साथ कई सूक्ष्म पत्थर भी मिले थे। अवशेषों में पाये गये प्राचीनकालीन घर या तो आयताकार थे या फिर 3 मीटर की परिधि वाले वृत्ताकार आकार में थे। इन घरों की दीवारें बाँस की और छत मिट्टी की बनी हुई थी। ऐसा माना जाता है कि नवदाटोली संस्कृति का तीसरा युग लगभग 1500 ई0 पूर्व से लेकर 1200 ई0 पूर्व तक था।

मानवविज्ञान के छात्र देश भर से इस स्थान पर आते हैं। जब आप महेश्वर आये हों तो नवदाटोली अवश्य देखें।

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