'मीट एट आगरा' फेयर में 'मेक इन इंडिया' की छाप

संक्षेप:

  • मीट एट आगरा के 11वें संस्करण की शुरुआत
  • तकनीक, कंपोनेंट्स और लेदर को पहचान दिलाने के लिए लगा फेयर
  • 30 देशों की कंपनियां लेंगी हिस्सा

आगरा: देश के जूता एवं लेदर उद्योग को दम देने और मेक इन इंडिया को धरातल देने के लिए मीट एट आगरा के 11वें संस्करण की शुरुआत हो गई। फेयर में बेहतरीन नई तकनीक, शानदार कंपोनेंट्स और फिनिश्ड लेदर का समावेश किया गया है। इस दौरान आगरा के जूता उद्योग को विश्व में पहचान दिलाने वालों का सम्मान भी हुआ।

बीएसएनएल मैदान में तीन दिवसीय फेयर का शुभारंभ शुक्रवार को हुआ। 11वां संस्करण छह हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में चार एसी हैंगर के बीच हो रहा है, जिसमें 250 स्टाल लगाए गए हैं। फेयर में ताइवान, फ्रांस, इटली, चाइना, टर्की, समेत 30 देशों के अलावा चेन्नई, कानपुर, कोलकाता, जालंधर, नोएडा, गुड़गांव और दिल्ली की 160 से अधिक कंपनियां भाग ले रही हैं। उद्घाटन सत्र में एससी आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामशंकर कठेरिया, लेदर सेक्टर स्किल काउंसिल के चेयरमैन हबीब हुसैन, एफडीडीआइ चेयरपर्सन रेवथी राय, कॉमर्स एवं उद्योग मंत्रालय के एडीशनल सेक्रेटरी जेके दादू, एफमेक के अध्यक्ष पूरन डावर, एडवाइजर इन चीफ नजीर अहमद, संस्थापक अध्यक्ष दलजीत सिंह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष शाहरू मोहसिन, उपाध्यक्ष राजेश सहगल आदि उपस्थित रहे।

शू इंडस्ट्री को बेहतर बनाने के दिए सुझाव
एफमेक अध्यक्ष पूरन डावर ने कहा कि जूते को अक्सर लग्जरी वस्तु समझ लिया जाता है, लेकिन यह कपड़े की ही तरह जरूरी वस्तु की श्रेणी में आता है। बावजूद इसके इस पर 18 से 28 फीसद तक टैक्स लिया जाता है। अगर इस पर 12 फीसद तक टैक्स लगे, तो उद्योग को आगे बढ़ने में आसानी होगी। स्माल स्केल इंडस्ट्री में डेढ़ करोड़ तक के उद्योगों को शामिल किया गया है, जबकि देश में 90 फीसद से ज्यादा इसी श्रेणी के निर्माता हैं। मेक इन इंडिया के तहत जूता उद्योग की प्रगति को सुनियोजित रणनीति बनाने की जरूरत है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में देश ने खुद को साबित कर अच्छी तरक्की पाई, लेकिन उसका असर धरातल पर 100 में से 80 फीसद को दिखाई नहीं दे रहा। इस तरफ भी काम होना चाहिए। साथ ही व्यापारियों के साथ एक्सपोर्टर्स को बताया जाए कि उनका काम किस विभाग में किस कारण से रुक सकता है।

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लेदर सेक्टर स्किल काउंसिल के चेयरमैन हबीब हुसैन ने बताया कि यह वक्त उद्योगों के लिए सबसे मुश्किल है। ग्लोबल मार्केट की भी स्थिति ठीक नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बदल रही है और सब्सिडी खत्म हो रही है। इसलिए मौका मुश्किलों से घबराने का नहीं, बल्कि इससे उबरने का है। दुनिया के दो सौ बिलियन डॉलर के मार्केट में हमें विनर की तरह शामिल होना चाहिए। दो सौ में से 100 बिलियन डॉलर का बाजार चाइना के पास है, जबकि छह बिलियन भारत के पास। अब हमें इससे आगे बढ़ना है।

उद्योग मंत्रालय के एडीशनल सेक्रेटरी जेके दादू ने बताया कि आगरा में टेस्टिंग लैब और डिजाइनिंग स्टूडियो तैयार होने से लाभ होगा। निर्यात को बढ़ाकर 18 बिलियन तक ले जाने के लिए तैयारी की जरूरत है, लेकिन इंडस्ट्री को सुधारने के लिए विश्वस्तरीय क्वालिटी का रॉ मैटीरियल, लेदर, लेटेस्ट डिजाइन और तकनीक पर काम की जरूरत है। साथ में पर्यावरण को साथ लेकर चलना हमारी जिम्मेदारी है।

मुकाम दिलाने के लिए मिला सम्मान
शहर की जूता इंडस्ट्री को विश्वस्तरीय मुकाम दिलाने के लिए गुप्ता ओवरसीज के अभय गुप्ता और अजय गुप्ता, लाइवा शूज के चेतन मेहरा और विरोला इंटरनेशनल के इशान सचदेवा को `बेस्ट एक्सपोर्ट परफॉरमेंस` अवार्ड दिया गया। बेस्ट कंपोनेंट्स के लिए बर्सेटाइल एंटरप्राइजेज के मनोज सेठ को सम्मानित किया गया। अमरनाथ एंड संस के विरेंद्र नाथ मगन को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।

शू एक्सपो में लगा तकनीक का तड़का
मीट एट आगरा में इस बार भी जूता उद्योग से जुड़ी देश और दुनिया की एडवांस और बेहतरीन मशीनें प्रदर्शित की गई हैं। अहमदाबाद की मेहता केडकैम सिस्टम प्रा.लिमिटेड ने सीओ टू लेजर और हाई स्पीड लेजर मशीन प्रदर्शित की है। यह एक्रेलिक, एमडीएफ, लेदर, पेपर, प्लास्टिक जैसी नॉन मैटेलिक पदार्थो पर लेजर कटिंग के लिए देश में बनी बेहतरीन मशीने है। इनकी कीमत पांच से 28 लाख के करीब है।

एब्ले शूज मशीनरी प्रा लि. स्टॉकॉन प्रोसेस से जूता निर्माण के लिए मशीन लेकर आई है। इस मशीन से जूते के अलग-अलग पार्ट बनाकर, फिर उन्हें जोड़कर जूता तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 50 से 60 लाख है।

डीपीआर मॉड्यूल एंड मशीनरी प्रा.लि. की ऑटोमेटिक सीएनसी पंचिंग मशीन सिंगल हेड और फ्लेट निटिंग मशीन पहली बार आई हैं। पंचिंग मशीन लेडीज शू और सैंडल में कंपोनेंट्स को पंच करती है, जबकि निटिंग मशीन धागों से लेटेस्ट डिजाइन के शूज का अपर तैयार करती हैं। इनकी कीमत सात से 20 लाख के बीच है।

टोएटेक फुटवियर मशीन प्रा.लि. की पीवीसी एंड टीपीआर इंजक्शन मॉड्यूलिंग मशीन सभी के आकर्षण का केंद्र रही। चाइना की इस मशीन को पहली बार यहां प्रदर्शित किया गया। छोटे उद्योग चलाने वालों के लिए बेहद महत्वपूर्ण इस मशीन से एक साथ पांच पेयर बनाए जा सकते हैं। इसमें पीवीसी और टीपीआर के जूते खुद ही बनकर तैयार हो जाते हैं। एक घंटे में इससे 60 से 80 जोड़ी तैयार होंगी। इसकी कीमत आठ लाख है और इससे कम मैनपावर में भी काम लिया जा सकता है।

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