आगरा: यहां होती है जूतामार होली, तिरपाल से ढँकी गईं मस्ज़िदें

संक्षेप:

  • जूतामार होल की वजह से बंद हुईं मस्ज़िदें
  • इस दिन लाट साहब के दो जुलूस निकलते हैं
  • व्यक्ति को लाट साहब के रूप में भैंसा गाड़ी पर बैठाते हैं
     

आगरा। भारत में विभिन्न तरह की होली मनाई जाती है. लड्डू होली से लेकर आपने लठामार होली तक सुना होगा. लेकिन क्या कभी जूतामार होली सुनी है? हम बताते हैं आपको क्या है ये जूतामार होली.
होली के दिन शहर में लाट साहब के दो जुलूस निकलते हैं. मुख्य लाट साहब जुलूस क़रीब आठ किमी लंबा होता है जिसे तय करने में तीन घंटे से ज़्यादा समय लगता है.
 
जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब के रूप में भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है और फिर उसे जूते और झाड़ू मारते हुए पूरे शहर में घुमाया जाता है.

इस दौरान शहर के आम लोग भी लाट साहब को जूते फेंक कर मारते हैं. इसी तरह एक दूसरा छोटा लाट साहब जुलूस भी उसी दिन निकलता है.

यहां तक तो सब ठीक है लेकर इससे हिंदू मुस्लिम लड़ाई होने का खतरा रहता है. क्योंकि इस जुलूस के बीच बहुत सी मस्ज़िदें पड़ती हैं. उन्हें डर रहता है कि कहीं मस्जिद पर रंग या जूता न पड़ जाए. इसी परेशानी को देखते हुए प्रशासन ने सख़्ती बरती है.
 
मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर तिरपाल ढके
 
पुलिस और प्रशासन ने रास्ते में पड़ने वाले धर्मस्थलों, ख़ासकर मस्जिदों और मज़ारों को प्लास्टिक और तिरपाल से ढक दिया है और रास्ते भर में पुलिस बलों की तैनाती कर रखी है. शाहजहांपुर के नगर पुलिस अधीक्षक संजय कुमार कहते हैं, "जुलूस के रास्ते में आने वाले क़रीब 25 मस्जिदों और मज़ारों को प्रशासन अपने ख़र्च पर ढक दिया है ताकि माहौल ख़राब करने के लिए कोई असामाजिक तत्व रंग या फिर कुछ और न फेंकने पाए.``

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प्रशासन की इस पहल का स्वागत

बरेली परिक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक राजेश कुमार पांडेय का कहना था कि मस्जिद के मौलवी और इलाक़े के मुस्लिम समुदाय के लोग प्रशासन की इस पहल का स्वागत करते हैं और ख़ुद ही मस्जिदों की सुरक्षा के लिए उन्हें ढकने को कहते हैं.

क्या है जूतामार होली

इसमें एक व्यक्ति बग्घी पर बैठता है जिसे लाट साहब कहते हैं. लाट साहब पूरी सुरक्षा के साथ रहते हैं और कुछ लोग उनकी सुरक्षा में तैनात भी किए जाते हैं.`` कोतवाली में कोतवाल परंपरा के हिसाब से लाट साहब को सैल्यूट करता है और फिर सदर बाज़ार से विश्वनाथ मंदिर पर होते हुए कूचा लाला पर ही ख़त्म हो जाता है."

एक स्थानीय नागरिक राशिद कमाल कहते हैं कि लाट साहब या फिर नवाब साहब किसी ग़रीब मुसलमान को बनाया जाता है और उसके ऊपर जूते बरसाए जाते हैं.

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