जब महायोद्धा मार्शल अर्जन सिंह ने कश्मीर को पाक से बचाया

संक्षेप:

  • पूरी दुनिया की सेनाओं को दी लड़ाई जीतने की प्रेरणा
  • आजादी के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान की हर संभव मदद की थी
  • संपत्ति को बेचकर एयरफोर्स एसोसिएशन को दी थी 2 करोड़ रुपये की राशि

INDIA : मार्शल अर्जन सिंह योद्धा नहीं बल्कि महायोद्धा थे। वे बोली से नहीं गोली से जवाब देने में विश्वास करते थे। उनकी सोच और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता की वजह से सन् 1965 की लड़ाई में कश्मीर पर पाकिस्तान कब्जा नहीं कर सका।

उन्होंने देखा कि पाकिस्तान तेजी से आगे बढ़ रहा है फिर एक साथ कई एयर क्राफ्ट से पाकिस्तानी टैंकों के ऊपर हमला करने का आदेश दिया। टैंकों के ध्वस्त होते ही पाकिस्तान का हौसला आसमान से जमीन पर आ गया था। लड़ाई केवल हथियारों से नहीं बल्कि समय के मुताबिक बेहतर निर्णय लेने से जीती जाती है। यह प्रेरणा अर्जन सिंह ने न केवल भारतीय सेना को बल्कि पूरी दुनिया की सेनाओं को दी।

यह जानकारी पूर्व वायु सेना प्रमुख मार्शल अर्जन सिंह के कार्यकाल में फ्लाइट लेफ्टिनेंट रहे स्क्वाड्रन लीडर (रिटा.) केएन शर्मा ने दी। उन्होंने अपनी यादों की गठरी खोलते हुए बताया कि देश की आजादी के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान की हर स्तर पर सहायता करनी शुरू कर दी थी।

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इस वजह से वह सामरिक दृष्टिकोण से भारत के मुकाबले तेजी से मजबूत होता जा रहा था। चीन का भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन उसे शुरू से ही मिलता रहा है। यही कारण था पाक ने 1965 में पूरे कश्मीर के ऊपर कब्जा करने की रणनीति बनाई थी।

वह तेजी से आगे बढ़ रहा था। उसी दौरान मार्शल अर्जन ङ्क्षसह का नई दिल्ली स्थित एयरफोर्स मुख्यालय में संदेश आया। उन्होंने पूछा था कि कौन से एयर क्राफ्ट कहां पर तैनात हैं। जानकारी मिलते ही उन्होंने पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। जब तक पाकिस्तान समझता तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

किसी से भी बहुत सहजता से मिलते थे मार्शल अर्जन सिंह
स्क्वाड्रन लीडर (रिटा.) केएन शर्मा ने बताया कि उन्हें कई बार मार्शल अर्जन सिंह से हाथ मिलाने का मौका मिला। वह किसी से भी बहुत ही सहजता से मिलते थे। कम से कम शब्दों में ही जवानों के भीतर ऐसा जोश भर देते थे कि जवान कुछ भी कर गुजरने के बारे में एक पल भी देर न लगा पाएं। वे बोली से नहीं गोली से जवाब देने में विश्वास करते थे। उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती।

मार्शल अर्जन सिंह लड़ाई के मैदान में ही महायोद्धा की तरह नहीं दिखाई देते थे, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में भी महायोद्धा थे। एयरफोर्स एसोसिएशन के माध्यम से सेवानिवृत्त जवानों व उनके बच्चों की सहायता बेहतर तरीके से की जा सके, इसके लिए अपनी संपत्ति बेचकर दो करोड़ रुपये की राशि एसोसिएशन को दी थी।

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