इंटरव्यू: न्याय के लिए भटकने वाले लोगों को देखकर होता था दुख- अजय लोधी

संक्षेप:

  • NYOOOZ ने की अधिवक्ता अजय लोधी  से खास बातचीत
  • आगरा की दीवानी में वकालत कर रहे हैं अजय लोधी
  • वकील बनकर लोगों की मदद करने की ठान ली थी- अजय लोधी 

आगराः अच्छी शिक्षा के आधार पर हर इंसान एक अच्छी और अपनी अलग पहचान बनाना चाहता है। सब चाहते हैं कि जॉब ऐसी करें जिमसें अच्छा मुकाम हासिल हो सके पर कुछ लोग अपना पेशा ऐसा चुनते हैं जिससे कि कहीं न कहीं परेशान और पीड़ित लोगों के संपर्क में रह सकें और काम के साथ साथ कुछ इंसानियत का धर्म भी निभा सकें और वकालत भी एक ऐसा ही पेशा है जिसमे सीधे तौर पर आप परेशान और इंसाफ के लिए भटक रहे लोगों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं। 

आज NYOOOZ ने बात की आगरा की दीवानी में अपनी वकालत कर रहे अजय लोधी से जोकि आगरा के सदर ताजगंज क्षेत्र के रहने वाले हैं। 42 वर्षीय अजय लोधी ने वकालत के क्षेत्र में अपनी एक पहचान बनाई है। अजय लोधी ने बताया कि उनके परिवार में वो सबसे छोटे हैं। उनके पिता अपना व्यवसाय करते हैं।

कहां से आया वकालत का ख्याल

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मुझे बचपन से ही मेरे परिवार ने स्वतंत्रता दी थी कि जिस पेशे को मैं चुन सकूं। मुझे मेरी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना था। मैं स्पोर्ट प्रेमी भी हुं और शुरू से ही स्पोर्ट में भी पार्टिसिपेट करता था। स्पोर्ट में मुझे फुटबॉल गेम से बहुत लागव था पर मेरा मन एक ऐसा पेशा चुनने का था जहां में अपनी अलग पहचान बना सकूं और उस पेशे से लोगों की मदद भी कर सकूं तो मैंने अपने पिता से बात की और उनको बताया कि मैं वकालत की पढ़ाई करना चाहता हुं हालांकि मेरी माँ चाहती थी कि मैं पारिवारिक व्यवसाय करुं पर मेरा मन देखकर परिवार के सभी लोग राजी हो गए तो मैंने आगरा कॉलेज में वकालत की पढ़ाई में दाखिला ले लिया और कॉलेज से वकालत की पढ़ाई खत्म कर आगरा दीवानी में अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी।

वकालत करने के पीछे कारण

वकालत करने की एक वजह ये भी थी कि मेरे पापा के एक मित्र भी वकील थे मैं जब स्कूल में पढ़ाई कर रहा था तब उनके पापा के दोस्त के पास दीवानी चला जाया करता था तो वहां पर आने वाले परेशान और न्याय के लिए भटकने वाले लोगों को देख कर बड़ा अचंभित होता था तो तभी से मेरे मन में भी वकील बनने की चाहत आ गई थी और वकील बनकर लोगों की मदद करने की ठान ली थी। इसी सोच के साथ मैंने अपनी वकालत शुरू की और बहुत से ऐसे क्लाइंट भी मेरे पास आते हैं जिनकी माली स्थिति ठीक नही होती है तो मैं उनका केस स्टडी करता हुं और बिना फीस के उनका केस भी लड़ता हुं क्योंकि मेरा पहला मकसद उनको न्याय दिलाना होता हैं।

सामजिक स्तर पर  अगर बात करूं तो एक वकील सामजिक प्राणी ही है उसका पेशा समाज से ही जुड़ा है और मैंने पैसों को अधिक महत्व न देकर गरीब पीड़ित व्यक्ति को इन्साफ मिल सके इस सोच के साथ काम किया है। मैं बस ये कहना चाहता हुं की आज के समय में झुटे मुकदमे लगाने का चलन बहुत बढ़ गया है हर दिन जो मुकदमे दर्ज होते हैं उनमें से अधिकतर तो रंजिशन या किसी को फंसाने के उद्देश्य से किये जाते हैं जिनकी वजह से अदालतों में लोड बढ़ रहा है और सही मायनों में जो परेशान हैं इनको अदालत से न्याय की दरकार है उन लोगों को न्याय मिलने में बहुत समय लग जाता है।

 

 

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