‘शंकराचार्य’ का पद महिलाओं के लिए नहीं- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती

संक्षेप:

  • शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती  का बयान
  • ‘कोई भी महिला शंकराचार्य पद पर आसीन नहीं हो सकती’
  • ‘यह विधान स्वयं आदि शंकराचार्य ने तय किया’

मथुरा: वृंदावन के उड़िया आश्रम में चातुर्मास प्रवास के दौरान द्वारका-शारदापीठ एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने एक बार फिर महिलाओं के धार्मिक परम्पराओं में हस्तक्षेप पर सवाल खड़ा किया। दरअसल, मथुरा से सांसद व अभिनेत्री हेमामालिनी के पहुंचने पर स्वामी स्वरूपानंद ने कहा है कि महिलाएं अन्य क्षेत्रों के समान राजनीति में तो जा सकती हैं, लेकिन वे शंकराचार्य जैसी सनातन संस्था की प्रतिनिधि नहीं बन सकतीं।

नेपाल में पशुपतिनाथ पीठ के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए उसकी स्थापना के लिए अखिल भारतीय विद्वत परिषद को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय विद्वत परिषद के नाम से खड़ी की गई संस्था नकली शंकराचार्य गढ़ने का कार्य कर रही है। यही नहीं, इसने पिछले दिनों नेपाल में पशुपतिनाथ के नाम से एक नई पीठ ही बना डाली। इस पीठ पर एक महिला महिला को शंकराचार्य बना दिया गया। जबकि कोई भी महिला शंकराचार्य पद पर आसीन नहीं हो सकती। ऐसा विधान स्वयं आदि शंकराचार्य द्वारा तय किया गया है।’

उन्होंने कहा कि ‘महिलाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सांसद, विधायक बनें, यह अच्छी बात है। परंतु, कम से कम धर्माचार्यों को तो छोड़ दें। धर्म के यह पद स्त्री के लिए नहीं हैं। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि जो संविधान एक देश में लागू होता है, वह उसी रूप में दूसरे देश में लागू नहीं हो सकता। उसी प्रकार, किसी को शंकराचार्य बना देने की व्यवस्था मान्य नहीं होगी। ‘शनि मंदिर में स्त्री का प्रवेश वर्जित है, क्योंकि शनि क्रूर ग्रह है। उसकी दृष्टि यदि स्त्री पर पड़ी तो उसे नुकसान हो सकता है, लेकिन समानता के आधार पर कहा जाता है कि स्त्री भी शनि की पूजा करेगी। अब इससे स्त्री की जो हानि होगी, उससे उसे कौन बचाएगा? `

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