आजादी के बाद से अब तक आगरा मंडल की इस जेल में हो चुकी है 35 कैदियों को फांसी

संक्षेप:

बुलंदशहर का रहने वाला जुम्मन रोजगार के लिए फिरोजाबाद आया था। उसे दो फरवरी को मन्नू जल्लाद फांसी पर लटकाया था। इसके बाद से फांसी नहीं दी गई। आजादी से बाद की बात करें तो 35 कैदियों को फांसी दी गई।

आगरा। मथुरा जेल में अमरोहा के बावनखेड़ी हत्याकांड की दोषी शबनम को फांसी दिए जाने की तैयारी चल रही है। अगर ऐसा होता है तो लगभग तीन दशक बाद ब्रज की किसी जेल में फांसी दी जाएगी।

इससे पहले फांसी आगरा जेल में 1991 में दी गई थी, अब फांसीघर की हालत जर्जर हो गई है। इसे ठीक भी नहीं कराया गया है। आगरा जिला जेल में जिस कैदी को 1991 में फांसी दी गई थी, उसका नाम जुम्मन था। वह बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या का दोषी पाया गया था।

मूलरूप से बुलंदशहर का रहने वाला जुम्मन रोजगार के लिए फिरोजाबाद आया था। उसे दो फरवरी को मन्नू जल्लाद फांसी पर लटकाया था। इसके बाद से फांसी नहीं दी गई। आजादी से बाद की बात करें तो 35 कैदियों को फांसी दी गई।

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1741 में स्थापित जिला जेल में आजादी के बाद 35 कैदियों को फांसी दी गई। पहली फांसी 1951 में दी गई थी। फिलहाल जिला जेल में ऐसा कोई कैदी नहीं है जिसे मौत की सजा सुनाई गई हो। ऐसे कैदी केंद्रीय कारागार में रखे जाते हैं। केंद्रीय कारागार में फांसीघर नहीं है। जिला जेल के अधीक्षक शशिकांत मिश्र ने बताया कि अब फांसी घर जर्जर स्थिति में है। इस कारण इसे प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। इस बारे में उच्चाधिकारियों को भी अवगत कराया जा चुका है।

केंद्रीय जेल के वरिष्ठ अधीक्षक वीके सिंह ने बताया कि जेल में छह बंदी ऐसे हैं, जिनको फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें से एक को पिछले साल की सजा सुनाई गई। वह एत्मादपुर का है। उसने बेटी की दुष्कर्म के बाद हत्या की थी। हालांकि इन सभी कैदियों ने सजा माफी के लिए अपील कर रखी है।

अमरोहा के बावनखेड़ी सामूहिक हत्याकांड का अभियुक्त शबनम का प्रेमी सलीम आगरा की केंद्रीय जेल में सवा पांच साल निरुद्ध रहा था। अमरोहा के बावनखेड़ी की शबनम ने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के सात लोगों की सामूहिक हत्या कर दी थी। पुलिस ने हत्याकांड का खुलासा किया था।

शबनम और उसके प्रेमी सलीम को गिरफ्तार करके जेल भेजा था। वर्ष 2010 में सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई। वर्ष 2013 में हाईकोर्ट ने भी सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी दोनों की फांसी की सजा बरकरार रखी।

सलीम को मुरादाबाद की जेल से 17 जुलाई 2010 को केंद्रीय जेल, आगरा में स्थानांतरित किया गया था। वह सवा पांच साल रहा था। उससे कोई मिलने नहीं आया था। वह अन्य बंदियों से अलग रहता था। जेलर एसपी मिश्रा ने बताया सलीम को नवंबर 2015 में प्रशासनिक आधार पर बरेली केंद्रीय जेल स्थानांतरित किया गया था। उसे भी फांसी होनी है।

चर्चित बामनहेड़ी हत्याकांड की दोषी शबनम के मथुरा जेल में आने पर अलग बैरक में रखा जाएगा। इसके लिए बैरक तैयार की जाएगी। फिलहाल वह रामपुर जेल में बंद है। उसे फांसी मथुरा जेल में दी जानी है। एक साल पहले भी मथुरा जेल में इसी तरह तैयारी हुई थी। तब पवन जल्लाद को बुलाकर फांसीघर का निरीक्षण भी कराया गया। 

पवन ने वरिष्ठ जेल अधीक्षक को बताया था कि फांसीघर में कमियां हैं। उन्हें अब दूर किया जा रहा है। जेल में आने पर शबनम को अलग बैरक में रखा जाएगा। जेलर एमपी सिंह ने सिर्फ इतना बताया कि सबकुछ जेल मैनुअल के हिसाब से होगा।

आगरा के आसपास की जेलों की बात करें तो जिस मथुरा जेल में शबनम को फांसी दी जानी है, उसका निर्माण 1870 में हुआ था। उस समय बाउंड्री और कुछ कमरे ही थे। बाद में इसका विस्तार किया गया। 1894 में जेल मैनुअल बना। इसके बाद महिला फांसीघर बनाया गया। कासगंज, एटा, मैनपुरी, फिरोजाबाद और कासगंज की जेल में फांसीघर नहीं है और ना ही किसी को फांसी की सजा मिली है।

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