फर्जीवाड़े को रोकने के लिए आगरा विश्वविद्यालय ने उठाया ये कदम

संक्षेप:

  • फर्जीवाड़े रोकने के लिए बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित
  • सत्र 2001 से 2011 तक के चार्टों का डिजिटलाइजेशन  कराने की तेैयारी 
  • वेरीफिकेशन में घपलेबाजी नहीं हो सकेगी

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्व विद्यालय में पिछले दिनों हुए फर्जीवाड़ों से विवि की छवि पर बुरा असर पड़ा है। यहां तक कि यहां की डिग्री  को शक की नजर से देखे जाने लगा है। कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित विवि की छवि में सुधार के साथ ही इस तरह के फर्जीवाड़े रोकने के लिए बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं। वह सत्र 2001 से 2011 तक के चार्टों का डिजिटलाइजेशन  कराने जा रहे हैं। इसके बाद वेरीफिकेशन में घपलेबाजी नहीं हो सकेगी।वर्ष 2001 से 2011 तक की वेरीफिकेशन में सबसे ज्यादा घपलेबाजी हुई है। जिन छात्रों ने प्रवेश ही नहीं लिया और न ही परीक्षा दी, उनकी सरकारी विभाग में नौकरी लग गई। ऐसे कई केस बताए जा रहे हैं। जब संबंधित सरकारी विभाग से वेरीफिकेशन आई तो बाबुओं ने छात्र से मोटी रकम लेकर उसे ओके की रिपोर्ट लगाकर भेज दिया, जबकि उक्त छात्रों का चार्ट में कोई रिकॉर्ड ही नहीं था। एक-एक वेरीफिकेशन में एक से दो लाख रुपये कमाए गए। अब तक हजारों ऐसी वेरीफिकेशन करके भेजी जा चुकी हैं। 

वहीं कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित विवि के हालातों को सुधारने में लगे हुए हैं। इसके लिए वो अब तक कई कदम उठा चुके हैं। कुछ में सफलता मिली तो कुछ में असफलता। सूत्रों की मानें तो असफलता इसलिए मिल रही है क्योंकि उनकी टीम में कुछ चेहरे गुमराह कर देने वाले हैं। यह अपने लाभ के लिए कुलपति से जुड़े रहते हैं और सही काम करने में अड़ंगा डालते हैं। एक प्रोफेसर इस मामले में सबसे ज्यादा माहिर हैं। कॉलेज संचालकों से इसकी सांठगांठ हैं। इधर कुलपति द्वारा अब एक बड़ा निर्णय  लिया जा रहा है। वह सत्र 2001 से 2011 के चार्टों को वेबसाइट पर डलवाने को एजेंसियों से वार्ता कर रहे हैं। चार्ट स्कैन कर साइट पर अपलोड कर दिए जाएंगे। इसके बाद सरकारी विभाग नौकरी पाने वाले छात्र को अपने ऑफिस में बैठे की विवि की वेबसाइट पर चेक कर सकेंगे। बाबुओं के हाथ में कुछ नहीं रहेगा। वो सरकारी विभाग को गुमराह नहीं कर सकेंगे।

 

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