महिलाओं की सेहत पर मंडराते ये 7 खतरे

संक्षेप:

  • आइए चर्चा करें कुछ ऐसी बीमारियों की जिनसे केवल महिलाएं प्रभावित होती हैं
  • पीरियड्स से जुडी परेशानियां
  • जरूरत से ज्‍यादा तनाव-

महिलाएं हमारे पुरे घर का ध्यान रखती है लेकिन अकसर हम उनका ध्यान रखना भूल जाते है। महिलाएं अकसर परिवार की समस्या में उलझ कर,अपनी समस्याओं को अनदेखा कर देती हैं। आइए चर्चा करें कुछ ऐसी बीमारियों की जिनसे केवल महिलाएं प्रभावित होती हैं

पीरियड्स से जुडी परेशानियां - माहवारी लड़कियों में होने वाली एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। पीरियड्स के समय पेट दर्द, कमज़ोरी, आलस, थकान होती है। महिलाओं को शारीरिक मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। हलाकि बाज़ार में कुछ दवाएं है, जो पीरियड्स में होने वाले दर्द को कम जरूर कर देती है। लेकिन जानकारी का अभाव और साफ़- सफाई की कमी कई घातक बिमारियों और इन्फेक्शन को जन्म दे सकती है।
पोस्‍ट नेटल डिप्रेशन -पोस्टनेटल डिप्रैशन यानी बच्चे के जन्म के बाद होने वाला अवसाद। यह डिप्रैशन बहुत गंभीर व कमजोर कर देना वाला होता हैं। गर्भावस्था के दौरान या बच्चे को जन्म देने के एक वर्ष के अदंर-अंदर 5 में से एक महिला पोस्टनेटल डिप्रैशन के लक्षणों शामिल हैं। यदि सही समय पर इलाज ना मिले तो यह काफी नुकसान पहुंचा सकता है।
सर्वाइकल कैंसर-सर्वाइकल कैंसर ऐसी बीमारी है, जो कि गर्भाशय में कोशिकाओं की अनियमित वृद्धि होने के कारण होती है। अधिकांश सर्वाइकल कैंसर के मामले फ्लैटंड और स्क्वैम्श कोशिकाओं की बढ़ोत्तरी के कारण होते हैं। पूरी दुनिया में हर साल 5 लाख सर्वाइकल कैंसर के मामले सामने आते हैं, इनमें 27 पर्सेंट अकेले भारत की महिलाएं शामिल होती हैं।

ब्रेस्‍ट कैंसर- स्तन कैंसर के दुनियाभर में सबसे ज्‍यादा मामले सामने आ चुके हैं। भारत में इसे रोगियों की संख्‍या दूसरे नंबर पर हैं। ब्रेस्‍ट कैसर की जांच महिला खुद ही कर सकती है। यदि महिला को स्तन में गांठ या दर्द का अहसास हो तो तुरंत संबंधित चिकित्‍सक से परामर्श करना चाहिए। हो सकता है कि शुरूआत में गांठ में दर्द ना हो। मेमोग्राफी से गांठ और स्तन कैंसर की सटीक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। मेमोग्राफी कराने में ज्‍यादा खर्चा नहीं होता।  सही समय पर पता चल जाए तो सर्जरी और कीमोथेरपी से इलाज मुमकिन है। लेकिन जारुकता की कमी और झिझक के कारण अधिकतर महिलाओं के लिए यह सबसे जानलेवा कैंसर है। 

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मेनॉपॉज-आमतौर पर 50 वर्ष के पार महिलाओं में मां बनने की क्षमता नहीं रहती और उनमें पीरियड्स की प्रक्रिया रुक जाती है। यह स्थिति मेनॉपॉज कहलाती है।मेनोपॉज के बाद ह्रदय से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सही समय पे सही थेरेपी इन परेशानियों को दूर कर सकती है। 

विटमिन डी की कमी- एक सर्वे में पाया गया कि भारत की 74 प्रतिशत महिलाएं विटमिन डी की कमी से जूझ रही हैं।विटमिन डी की कमी से महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस, डायबीटीज, जोड़ों में दर्द और पैरों की सूजन जैसी बीमारियों का जोखिम बना रहता है।

जरूरत से ज्‍यादा तनाव-जिस तेजी से हम आधुनिक होते जा रहे हैं, उसी तेजी से हमारे भीतर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ बढ़ रही है ।जरूरत से ज्यादा सोचने की वजह से महिलाएं डिप्रेशन, एंग्‍जाइटी, बीपी, डायबीटीज जैसी समस्‍याएं महिलाओं में भी आम हो गई हैं।

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