अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सुलेमान हॉल का इतिहास जानकर हैरान हो जाएंगे आप!

संक्षेप:

इस हाल का नाम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सर शाह मुहम्मद सुलेमान के नाम पर रखा गया था। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश थे। इसकी विशालता का अंदाज आप इसी से लगा सकते हैं कि इसमें 650 छात्र अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और साथ ही जाकिर हुसैन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के रिसर्च स्कॉलर हैं। 

अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का सर शाह सुलेमान हाल यूनिवर्सिटी का सबसे पुराना हाल है। इसमें रोचक इतिहास छिपा है। यह विश्वविद्यालय के सबसे पुराने वास्तुशिल्प उदाहरणों में से एक है। इसकी स्थापना 1802 में एक फ्रांसीसी उपनिवेशवादी ने की थी। 

इस हाल का नाम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सर शाह मुहम्मद सुलेमान के नाम पर रखा गया था। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश थे। इसकी विशालता का अंदाज आप इसी से लगा सकते हैं कि इसमें 650 छात्र अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और साथ ही जाकिर हुसैन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के रिसर्च स्कॉलर हैं। 

सर शाह मोहम्मद सुलेमान का जन्म तीन फरवरी 1886 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जौनपुर और मुइर कॉलेज, इलाहाबाद में हुई थी। वह एक असाधारण प्रतिभाशाली छात्र थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्नातक परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर थे। 1906 में, उन्हें सरकार द्वारा एक राज्य यूरोपीय छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया और क्राइस्ट कॉलेज, कैम्ब्रिज और ट्रिनिटी कॉलेज में उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड चले गए। डबलिन से उन्होंने एलएलडी की डिग्री प्राप्त की।

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वह 1911 में भारत लौटे। इंग्लैंड से लौटने के बाद शाह मोहम्मद सुलेमान इलाहाबाद बार में शामिल हुए। बार में उनके अत्यधिक प्रभावशाली प्रदर्शन के कारण 34 वर्ष की आयु में 1920 में खंडपीठ में सीट की पेशकश की गई। 1923 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए।

स्वतंत्रता आंदोलन में इंकलाब जिंदाबाद का नारे देने वाले मौलाना हसरत मोहानी एक स्वतंत्रता सेनानी, एक शायर, एक पत्रकार, संविधान सभा के सदस्य, और इंकलाब जिंदाबाद का नारा इजाद करने वाले थे। मूल से उन्नाव (कानपुर) के रहने वाले मौलाना हसरत मोहानी का काफी समय अलीगढ़ में बीता था।

उन्होंने 1903 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से बीए किया। इसके बाद एलएलबी। छात्र राजनीति से ही वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। वह बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय की विचारधारा मानते थे। एएमयू के हॉस्टल में तिलक की तस्वीर लगाने पर उन्हें निलंबित किया गया था। मौलाना मोहानी पूरी जिंदगी कृष्ण प्रेम से सराबोर थी। उनका अधिकांश समय मथुरा में बीता था। एएमयू 1894 में मिडल पास कर वह अलीगढ़ आए गए थे। अलीगढ़ में रहने के दौरान वह मथुरा आते-जाते रहे। वह मथुरा के पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में बैठकर कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते थे।

हसरत के बारे में ये बात काफी मशहूर है कि वे अपने पास सदा एक मुरली रखा करते थे और हर साल जन्माष्टमी आने पर वो मथुरा जाया करते थे, एक बार जेल में होने की वजह से हसरत मथुरा नहीं जा पाए तो इसका दुख उन्होंने ने अपनी एक कविता में की है। डा. राहत अबरार के अनुसार हसरत मोहानी एक बार लखनऊ से दिल्ली के सफर पर थे। वो कृष्ण भक्ति में एक नज्म गुनगुना रहे थे, रास्ते में किसी अजनबी शख्स ने उनसे पूछा कि मौलाना साहब देखने से तो आप मुसलमान लगते हैं, फिर कृष्ण के गीतों क्यों गा रहे हैं? आपका मजहब क्या है? इस सवाल पर हसरत को हंसी आई और उन्होंने कहा कविता पढ़कर समझाया कि `मेरा मजहब फकीरी और इंकलाब है, मैं सूफी मोमिन हूं और साम्यवादी मुसलमान`। हसरत मोहानी के नाम पर हॉस्टल का निर्माण भी कराया गया।

शाह मोहम्मद सुलेमान को 1929 में एएमयू के कुलपति बने। चार साल वह कुलपति रहे। सुलेमान हॉल इस महान व्यक्तित्व को एक श्रद्धांजलि है। हॉल की स्थापना एएमयू के कुलपतित जियाउद्दीन विश्वविद्यालय के के कार्यकाल में 1945 में इस हाॅल की स्थापना हुई थी। इस हॉल में चार छात्रावास हैं। इनमें आगा खान छात्रावास, भोपाल हाउस, जयकिशन दास छात्रावास, हसरत मोहानी छात्रावास, कश्मीर हाउस, किदवई छात्रावास और महमूदाबाद हाउस शामिल हैं।

एएमयू संस्थापक सर सैयद के सबसे करीबी लोगों में राजा जयकिशन दास सबसे ऊपर थे। सर सैयद की राजा जयकिशन दास से गहरी दोस्ती थी। 1863 में राजा जयकिशन अलीगढ़ के डिप्टी कलक्टर थे और साइंटिफिक सोसायटी के संस्थापक सदस्य भी। तब उन्होंने सर सैयद को प्रतिमाएं भेंट की थीं। इनमें महावीर जैन का स्तूप अद्भुत है। स्तूप का वजन करीब एक टन है। स्तूप के चारों ओर आदिनाथ की 23 मूर्तियां हैं। सुनहरे पत्थर के बने पिलर में कंकरीट की सात देव प्रतिमाएं, शेष शैया पर लेटे भगवान विष्णु, कंकरीट के बने सूर्यदेव भी हैं। राजा के नाम पर ही सुलेमान हाल में राजा जयकिशन दास हॉस्टल है। जो यूनिवर्सिटी के सबसे पुराने हॉस्टलों में से एक है।

सर आगा खान एएमयू के पहले प्रो-चांसलर थे। वह एएमयू छात्र संघ के आजीवन सदस्य भी रहे। इनके अलावा खान अब्दुल गफ्फार खान, मो. अली जिन्ना (1938), पंडित जवाहर लाल नेहरू (1948), सी राजगोपालाचारी (1948), डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1951), डॉ. जाकिर हुसैन (1957), डॉ. जयप्रकाश नारायण (1968), राज नारायण, मदर टेरेसा (1983), जार्ज फर्नांडीस (1990), मुलायम सिंह यादव (1990), वीपी सिंह (1992), सैयद अहमद बुखारी, दलाई लामा, रामविलास पासवान समेत 35 को यह सदस्यता दी जा चुकी है।

एएमयू के इतिहास के जानकार डा. राहत अबरार के अनुसार सुलेमान हाल कभी पैरो हाउस था। जो फ्रांसीसी नागरिक था। तिब्बिया कालेज की स्थापना इसी हाल में हुई थी। भोपाल हाउस का निर्माण एएमयू के दूसरे चांसलर रहे हमीद उल्लाह खान के नाम पर है। हमीद उल्लाह खान की मां बेगम सुल्तान जहां भी यूनिवर्सिटी की पहली चांसलर रहीं थीं। रफी अहमद किदवई एएमयू के छात्र रहे। नेहरू सरकार में मंत्री भी रहे। उनके नाम पर यह हॉस्टल है। बख्शी गुलाम मोहम्म्द कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने एएमयू से ही पढ़ाई की थी। छात्रावास निर्माण के लिए उन्होंने पैसा भी दिया था।

सुलेमान हाल के प्रोवोस्ट प्रो. सलमान हमीद के अनुसार सुलेमान हाल में पढ़ने वाले छात्र विभिन्न पदों पर पहुंचे हैं। इनमें मोहम्म्द अली दिल्ली में डीसीपी, शाहिद राजा अलीगढ़ मे एडीजी प्रथम, जावेद अहमद खान एडीजी बिहार, एएमयू के लॉ फैकल्टी के डीन प्रो. शकील समदानी, प्रो. मोहम्मद गुलरेज डीन फैकल्टी आफ इंटरनेशनल स्टडीज, डा. जुबैर शादाब डिप्टी डायरेक्टर उर्द अकादमी एएमयू शामिल हैं।

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