ज्योतिषपीठ बद्रीकाश्रम के शंकराचार्य के पद के लिए दोनों दावेदार अयोग्य

संक्षेप:

  • स्वामी वासुदेवानन्द और स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती के बीच है विवाद
  • लंबी चली सुनवाई के बाद फैसला हुआ था सुरक्षित
  • 3 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट ने किया था फैसला सुरक्षित

इलाहाबाद: ज्योतिषपीठ-बद्रीकाश्रम को लेकर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती व वासुदेवानंद सरस्वती के बीच चल रहे विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय 22 सितम्बर यानी आज अपना फैसला सुनाया।

ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य की गद्दी को लेकर 64 सालों से चल रहे अदालती विवाद का पटाक्षेप करते हुए हाईकोर्ट ने गद्दी के दोनों दावेदारों (स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानंद )को शंकराचार्य पद के अयोग्य करार दिया है। कोर्ट ने पद रिक्त घोषित करते हुए अखिल भारतीय धर्म महामंडल और काशी विद्वत परिषद को तीन पीठों के शंकराचार्यों की मदद से तीन माह में बद्रिकाश्रम में नए शंकराचार्य की नियुक्ति करने का आदेश दिया है। अपने विस्तृत निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि नए शंकराचार्य के चयन में वही प्रक्रिया अपनाई जाए जो 1941 में अपनाई गई थी। नए शंकराचार्य की नियुक्ति तक बद्रिकाश्रम पीठ में यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

हाईकोर्ट ने शंकराचार्य के पद और देश भर में तमाम धार्मिक संस्थाओं के नाम पर पनप रहे भ्रष्टाचार पर भी तीखी टिप्पणी करते हुए सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने और नियम कानून बनाने का निर्देश दिया है। ताकि फर्जी धर्मगुरुओं  के हाथों मासूम जनता को ठगे जाने से बचाया जा सके। सिविल कोर्ट के फैसले के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की अपील का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति कौशल जयेंद्र ठाकर की पीठ ने सिविल कोर्ट द्वारा स्वामी वासुदेवानंद पर शंकराचार्य का पद, छत्र, चंवर और दंड धारण करने पर लगी रोक को जारी रखने का निर्देश दिया है।

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स्वामी स्वरूपानंद की दावेदारी पर निर्णय सुनाते हुए खंडपीठ ने कहा कि ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य पद पर 12 जून 1953 को स्वामी शांतानंद की नियुक्त हुई। इसके बाद 25 जून 1953 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम को भी इसी पीठ का शंकराचार्य बनाया गया जबकि उस समय पद रिक्त नहीं था इसलिए बोधाश्रम की नियुक्ति अवैध थी। 15 जनवरी 1970 को सिविल कोर्ट ने स्वामी शांतानंद की नियुक्ति को वैध और स्वामी कृष्णबोधाश्रम की नियुक्ति को अवैध करार दिया। कृष्णबोधाश्रम की मृत्यु 10 सितंबर 1973 को हो गई। चूंकि उनकी नियुक्ति अवैध थी और पद भी रिक्त नहीं था इसलिए उनके स्थान पर स्वामी स्वरूपानंद की शंकराचार्य पद पर नियुक्ति भी अवैध और गैरकानूनी है।

पीठ ने स्वामी वासुदेवानंद की दावेदारी पर निर्णय सुनाते हुए कहा कि स्वामी शांतानंद सरस्वती के त्यागपत्र देने के बाद स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती शंकराचार्य बने। उनकी मृत्यु के बाद स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को 14/15 नवंबर 1989 को शंकराचार्य बनाया गया। मगर शंकराचार्य के पद पर नियुक्ति होने वाले व्यक्ति में कुछ विशेष योग्यताएं होनी अनिवार्य हैं। मठामन्याय और महानुशासन ग्रंथों के मुताबिक शंकराचार्य का पद धारण करने वाले व्यक्ति का दंडी सन्यासी होना अनिवार्य है। उसे संस्कृत का अच्छा ज्ञाता, वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण, पुराण और वेदांग का ज्ञान होना चाहिए तथा वह ब्राह्मण हो। स्वामी वासुदेवानंद ने कभी सन्यास नहीं लिया। वह एक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्था में पढ़ाते थे और राज्य सरकार से 13 नवंबर 1989 तक वेतन लेते रहे। इसलिए शंकराचार्य पद पर उनकी नियुक्ति अवैधानिक और गैरकानूनी है। उनको इस पद पर रहने का अधिकार नहीं है।

पीठ ने कहा कि सरकार ऐसे स्वमंभू और अनाधिकृत रूप से मठों के प्रधान, महंत या धार्मिक संस्था का प्रधान बने लोगों के खिलाफ कदम उठाए। आदि शंकराचार्य ने सिर्फ चार पीठों की स्थापना की है। इनमें उत्तर में ज्योर्तिमठ बद्रिकाश्रम, पश्चिम में शारदा मठ, दक्षिण में श्रंगेरी मठ मैसूर और पूर्व में गोवर्धन मठ पुरी हैं। इसके अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को शंकराचार्य की पदवी, पद धारण करने का अधिकार नहीं है। ऐसा करना सनातन धर्मानुयायियों के साथ मात्र धोखा है।

कई महीनों की बहस के बाद हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ जस्टिस सुधीर अग्रवाल व जस्टिस के.जे ठाकुर ने इसी वर्ष तीन जनवरी को शंकराचार्य पद के विवाद पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को इस विवाद के शीघ्र निस्तारण का आदेश दिया था।

मालूम हो कि जिला अदालत इलाहाबाद ने 5 मई 2015 को एक ऐतिहासिक निर्णय देकर ज्योतिष्पीठ-बद्रीकाश्रम का अपने को वैध शंकराचार्य घोषित करने वाले स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को अवैध घोषित कर दिया था।

निचली अदालत के इस फैसले से दुखित स्वामी वासुदेवानंद ने हाईकोर्ट में अपील की तथा निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की परन्तु हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी अपील पर किसी भी प्रकार का अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में अब अपना अंतिम फैसला ही सुनाएगी।

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