व्यंग्य: अगर बनना है CM, तो रामलीला मैदान का करें रूख!

संक्षेप:

  • किसन बाबूराव हजारे की साख बड़ी मजबूत है
  • इस बार भी बना जा सकता है सीएम
  • बस 100 रूपए वाला स्टांप पेपर मत भरिएगा

- अभिजीत पाठक

किसन बाबूराव हजारे या अन्ना हजारे नाम के एक शख्सियत 16 अगस्त 2011 को गांधी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए जनलोकपाल विधेयक को संसद में पारित करने के लिए आमरण अनशन पर बैठते हैं, जिसके एवज में जनलोकपाल विधेयक तो पारित नहीं होता लेकिन एक राजनीतिक पार्टी की बनावट और दिल्ली के सीएम के तौर पर देश को अरविंद केजरीवाल दे जाते हैं। तो ऐसा सोचा जाना लाजमी है कि 2018 के इस भूख हड़ताल में भी अन्ना हजारे सीएम अरविंद केजरीवाल की ही तरह क्या कुछ राजनीतिक पहरूओं को पदस्थ करेंगे की नहीं। आपको बस थोड़ी सी सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि इस बार केजरीवाल वाला पैंतरा काम नहीं आने वाला।

बस 100 रूपए वाला स्टांप पेपर मत भरिएगा

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7 साल बाद समाजसेवी अन्ना हजारे एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ गए हैं। वह किसानों के मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। अन्ना ने पहले ही दिन यह साफ कर दिया कि आम आदमी पार्टी समेत किसी भी राजनीतिक दल के नेता, सदस्य, कार्यकर्ता या समर्थक उनके आंदोलन के मंच पर नहीं आ सकते। बताया जा रहा है कि इस सत्याग्रह के आयोजन के लिए बनाई गई 26 सदस्यों कोर कमिटी के प्रत्येक सदस्य से 100 रुपये के स्टांप पेपर पर यह लिखकर साइन करवाए गए हैं कि वे किसी भी राजनीतिक स्वार्थ के चलते इस आंदोलन से नहीं जुड़ रहे हैं।

ये स्टांप पेपर ना भरकर आप सीएम का सपना देख सकते हैं। 

आवेदन कीजिए क्योंकि अन्ना हजारे की साख बड़ी मजबूत है?
2011 के राष्ट्रव्यापी आंदोलन से पहले अन्ना हजारे ने सामाजिक बदलाव के क्षेत्र में बहुत सारे काम किए हैं। साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना हजारे ने 1963 में ही सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना हजारे ने रालेगन सिद्धि में रहते हुए इसे अपनी कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए। रालेगन सिद्धि में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। अन्ना ने गाँव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और खुद भी इसमें योगदान दिया।

अन्ना हजारे ने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी और अपनी पेंशन का सारा पैसा विकास के लिए समर्पित कर दिया।

साल 1991 में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ `भ्रष्ट` मंत्रियों को हटाए जाने की माँग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बाद में उन्हें दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को हटाना ही पड़ा।

सूचना का अधिकार आंदोलन 1997-2005
1997 में अन्ना हजारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया और 9 अगस्त 2003 को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12 दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हजारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला। आख़िरकार 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मज़बूत और कड़े विधेयक को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। अक्टूबर 2005 में भारतीय संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया।

महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन 2003
2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों; सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जाँच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

आखिर में अरविंद केजरीवाल को गढ़ने वाले अन्ना हजारे को इस बार ध्यान देना होगा कि कहीं पिछली चूक इस बार भी ना हो जाए। क्योंकि राजनीति का आधुनिक पेशा इस कदर मौकापरस्त है कि वो अपने तत्वाधान को भूल बैठता है।

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