भारत में कैसे चुने जाते हैं राष्ट्रपति, NYOOOZ दे रहा है हर सवाल का जवाब

संक्षेप:

  • नवनिर्वाचित राष्ट्रपति 25 जुलाई को लेंगे शपथ
  • निर्वाचक मंडल करता है राष्ट्रपति का चुनाव 
  • मुख्य न्यायधीश दिलाते हैं शपथ 

 

 

इलाहाबाद: भारत के 14वें राष्ट्रपति के रुप में रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को शपथ ग्रहण करेंगे। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल करता है, जिसमें लोकसभा, राज्यसभा और अलग अलग राज्यों के विधायक होते हैं। लेकिन इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातिक भी होता है। उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, पर उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है। इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में एक खास पेन का भी इस्तेमाल किया गया।

आइये जानते हैं राष्ट्रपति चुनावी की पूरी प्रक्रिया...

  • राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 54 में इसका वर्णन है।
  • जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए प्रतिनिधि करते हैं।

कौन-कौन करता है वोट

  • भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद अपने वोट के माध्यम से करते हैं।
  • जिन सांसदों को राष्ट्रपति नामित करते हैं वे सांसद राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं।
  • इसके अलावा भारत में 9 राज्यों में विधानपरिषद भी हैं। इन विधान परिषद के सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर सकते हैं।
     

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सिंगल वोट ट्रांसफरेबल प्रक्रिया

भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में एक विशेष तरीके से वोटिंग होती है। इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। जिसमें वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकी से वोट देता है। जिससे यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का प्रमुखता अलग-अलग होती है। इसे वेटेज भी कहा जाता है। दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग अलग होता है। यह वेटेज राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है और यह वेटेज जिस तरह तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं।

ऐसे होता है सांसदों के मत का वेटेज तय

सांसदों के मतों के वेटेज का तरीका कुछ अलग है। सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्यों के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है। अब इस सामूहिक वेटेज को लोकसभा के चुने हुए सांसदों और राज्यसभा की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह जो अंक मिलता है, वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है। अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है।

ऐसे तय होती है विधायक के वोट की कीमत

राज्यों के विधायकों के मत के वेटेज के लिए उस राज्य की जनसंख्या देखी जाती है। इसके साथ ही उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी देखा जाता है। वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह जो अंक मिलता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है। अब जो अंक आता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है। 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जोड़ दिया जाता है।

मतों की गिनती की प्रक्रिया

भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्ट्रपति वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे। यानी इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वोट चाहिए। इस समय राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,882 था और जीत के लिए रामनाथ कोविंद को 5,49,442 वोट हासिल करने पड़े। जो प्रत्याशी सबसे पहले तय वोट हासिल करता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाता है। पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहली वरीयता के मत गिने जाते हैं। यदि इस पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए जरूरी वेटेज का कोटा हासिल कर ले, तो उसकी जीत हो गई। लेकिन अगर ऐसा न हो सका, तो फिर एक और कदम उठाया जाता है।

रेस से ऐसे बाहर हो जाते हैं प्रत्याशी

पहले उस कैंडिडेट को रेस से बाहर किया जाता है, जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले। लेकिन उसको मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि उनकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं। फिर सिर्फ दूसरी पसंद के ये वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं। यदि ये वोट मिल जाने से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गए तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाता है। अन्यथा दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी।

इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है। यहां यह बात गौर करने की है कि जिस पार्टी के पास लोकसभा में बहुमत है वह अपने दम पर राष्ट्रपति का चयन नहीं कर सकता है। यदि उस दल का राज्यसभा में भी बहुमत है तब भी वह अपने प्रत्याशी के लिए चुनाव आसानी से नहीं जीत सकता। यानी ऐसे वोटिंग सिस्टम में कोई बहुमत समूह अपने दम पर जीत का फैसला नहीं कर सकता है। छोटे-छोटे दूसरे समूह के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं।

दूसरी वरीयता के वोट ट्रांसफर होने के बाद सबसे कम वोट वाले प्रत्याशी को बाहर करने की नौबत आने पर अगर दो कैंडिडेट्स को सबसे कम वोट मिले हों, तो बाहर उसे किया जाता है, जिसके फर्स्ट प्रायॉरिटी वाले वोट कम होते हैं। अगर अंत तक किसी प्रत्याशी को तय वेटेज न मिले, तो भी इस प्रक्रिया में कैंडिडेट बारी-बारी से रेस से बाहर होते रहते हैं और आखिर में जो बचेगा, वही जीतेगा।

कौन दिलाता है राष्ट्रपति को शपथ

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायधीश शपथ दिलाते हैं। जिसके बाद राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के प्रमुख हो जाते है। साथ ही देश के संवैधानिक मुखिया भी बन जाते हैं।

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