हरिवंश राय बच्चन जन्मदिन विशेष: पढ़िए `जो बीत गई सो बात गई` और `मधुशाला`

संक्षेप:

  • हरिवंश राय बच्चन का जन्म दिवस आज
  • 18 जनवरी 2003 को हुआ था निधन
  • बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के पिता थे हरिवंश राय

 

इलाहाबाद: आज कवि हरिवंश राय बच्चन का जन्म दिवस है। हरिवंश राय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव बाबू पट्टी में  27 नवंबर 1907 को हुआ था। उनका निधन 18 जनवरी 2003 को हुआ। कवि के साथ-साथ उनकी पहचान बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के पिता रूप में भी रही है। NYOOOZ आपको  हरिवंश राय बच्चन के जन्म दिवस पर बता रहा उनके 2 मशहूर कविताओं के अंश...

हरिवंश राय बच्चन की `जो बीत गई सो बात गई` कविता

माना वह बेहद प्यारा था

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वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम

 

थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था

तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं

मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

हरिवंश राय बच्चन की `मधुशाला` के कुछ अंश

1. मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला

`किस पथ से जाऊँ? ` असमंजस में है वह भोलाभाला

अलग- अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ

`राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला

2. लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला

फ़ेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला

ददर् नशा है इस मदिरा का विगतस्मृतियाँ साकी हैं

पीड़ा में आनंद जिसे हो, आये मेरी मधुशाला

3. लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला

हषर्- विकंपित कर से जिसने हा, न छुआ मधु का प्याला

हाथ पकड़ लज्जित साकी का पास नहीं जिसने खींचा

व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला

4. अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला

भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला

हर सूरत साकी की सूरत में परिवतिर्त हो जाती

आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला

5. दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला

भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला

नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ

अब तो कर देती है केवल फर्ज-अदाई मधुशाला

6. छोटे- से जीवन में कितना प्यार करूँ, पी लूँ हाला

आने के ही साथ जगत में कहलाया ` जानेवाला`

स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी

बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन- मधुशाला

7. यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला

पी न होश में फ़िर आएगा सुरा- विसुध यह मतवाला

यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है

पथिक, प्यार से पीना इसको फ़िर न मिलेगी मधुशाला

 

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