मिसाल बने मुल्ला जी 1986 से कुंभ नगरी को कर रहे है रोशन

संक्षेप:

  • 1986 में जूना अखाड़े के साधुओं से परिचित हुए थे मुल्ला जी
  • 800 किलोमीटर की दूरी तय करके प्रयागराज जाते हैं मुल्ला जी
  • पांच बार की नवाज में भी सहयोग किया

देश में कुछ धार्मिक असहिष्णुता की खबरों, मॉब लिचिंग और सांप्रदायिक हिंसा की चर्चाओं के बीच मुहम्मद महमूद उर्फ मुल्ला जी के विचार और उनका काम एक मिसाल के तौर पर सामने आया है। वह कुंभ मेले में संगम तट को साधुओं की सुविधा के लिए रोशन करने का काम कर रहे हैं। 76 साल के महमूद यूपी, मुजफ्फरनगर के उद्योगपति हैं। वह साल 1986 में जूना अखाड़े के साधुओं से परिचित हुए थे और संयोग से साधुओं ने महमूद से टेंट के आसपास लाइट की व्यवस्था करने के लिए कहा था। इसके बाद से हर 6 साल में महमूद लाइट की व्यवस्था करने के लिए 800 किलोमीटर की दूरी तय करके प्रयागराज जाते हैं। वहीं अपने अनुभवों के बारे में बात करते हुए महमूद ने कहा `मैं एक इलेक्टिशियन हूं। जब आप यहां रात में आते हैं आप देखेंगे साधुओं के टेंट सभी रंगों की चमकदार रोशनी से सराबोर होते हैं और यही मेरा काम है`

बता दें कुंभ के अलावा, मुल्ला जी कई अन्य त्योहारों जैसे मुजफ्फरनगर में जन्माष्टमी समारोह और मेरठ में लोकप्रिय नौचंदी मेले में भी अपनी सेवाएं देते हैं। `मुल्ला जी` नासिक में होने वाले कार्यक्रमों को छोड़कर 1986 से अब तक हुए हर कुंभ मेले में शामिल हुए हैं। यहां तक कि उन्हें यह संख्या भी याद नहीं है कि वास्तव में उन्होंने पिछले कई सालों में कितने कुंभ मेलों में हिस्सा लिया है। उन्होंने सबसे पहले जिस कुंभ में भाग लिया वह हरिद्वार में 1986 का कुंभ था। कई नागा साधुओं से मुल्ला जी की अच्छी दोस्ती है। नागा साधु संगम गिरी कहते हैं कि उन्होंने कभी मुल्ला जी का नाम भी नहीं पूछा। वह उनके लिए सिर्फ एक दोस्त हैं। मुल्ला जी भी साधुओं की तारीफ करते हुए कहते हैं कि उनके साथ हमेशा अच्छा व्यवहार किया गया और पांच बार की नवाज में भी सहयोग किया गया। मुल्ला जी कहते हैं, `बाबा और साधु मुझे कुंभ के दौरान घर में होने का अहसास कराते हैं।`

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