पढ़िए इलाहाबाद के अकबर किले की दिलसच्प कहानी

संक्षेप:

  • इलाहाबाद में लगा है माघ मेला
  • संगम तट पर सम्राट अकबर ने निमार्ण कराया भव्य किला
  • 1583 में रखी गई थी इसकी नींव

 

इलाहाबाद: इलाहाबाद में इन दिनों माघ मेला लगा हुआ है। लाखों श्रद्धालु यहां आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंच रहे है। जिस प्रयागराज में माघ मेला के दौरान संगम तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। उसी संगम तट पर सम्राट अकबर ने भव्य किले का निमार्ण कराया था।

इस किले में स्थापत्य कला के साथ ही अपने गर्भ में जहांगीर, अक्षयवट, अशोक स्तंभ व अंग्रेजों की गतिविधियों की तमाम अबूझ कहानियों को भी समेटे हुए है। ये किला अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाता है। नक्काशीदार पत्थरों की विशायलकाय दीवार से यमुना की लहरे टकराती है। इसके अंदर पातालपुरी में कुल 44 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग आज भी पूजा पाठ करते हैं।

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बताया जाता है कि इसकी नींव 1583 में रखी गई। उस समय करीब 45 साल 05 महीने 10 दिनों तक इसका निर्माण कार्य चला था। इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने काम किया था। किले का कुल क्षेत्रफल 30 हजार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत 6 करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपए आई थी। अकबर की इच्छा थी कि इलाहाबाद के पास ही एक शहर और सैन्य छावनी बनाई जाए। वह इस किले को अपने बेस के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था। नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर नहीं थी। जिसकी वजह से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था।

अकबर इसी स्थान पर 4 किलों के एक समूह का निर्माण करना चाहता था। लेकिन एक ही किले के निर्माण में इतने वर्ष लग गए, तब तक अकबर की मौत हो गई थी। अकबर के साथ आए लोगों ने किले से थोड़ा दूर भवन बनवाया, जिससे एक नए शहर को बसाने में असानी हुई। इस किले को 4 भागों में बांटा गया है। पहला भाग खूबसूरत आवास है, जो फैले हुए उद्यानों के बीच में है। यह भाग बादशाह का आवासीय हिस्सा माना जाता है। दूसरे और तीसरे भाग में अकबर का शाही हरम था और नौकर चाकर की रहने की व्यवस्था थी। जबकि चौथे भाग में सैनिकों के लिए आवास बनाए गए थे। इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा टोडरमल, सईद खान, मुखलिस खान, राय भरतदीन, प्रयागदास मुंशी की देख-रेख में हुआ था।

1773 में इस किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। इससे पहले 1765 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ 50 लाख रुपए में बेच दिया। 1798 में नवाब शाजत अली और अंग्रेजों में एक संधि कर ली। उसके बाद किला फिर अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। आजादी के बाद सरकार ने किले पर अधिकार किया। किले में पारसी भाषा में एक शिलालेख भी है। जिसमें किले की नींव पड़ने का 1583 दिया है।

किले में एक जनानी महल है, जिसे जहांगीर महल भी कहते हैं। अंग्रेजों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफी तोड़फोड़ की। इससे किले को काफी क्षति पहुंची थी। संगम के निकट स्थित इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में 3 बड़ी गैलरी हैं, जहां पर ऊंची मीनारें हैं। 

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