जानिए कौन थे जज जगमोहन लाल सिन्हा, जिसके बाद इंदिरा ने लगाई इमरजेंसी

संक्षेप:

  • आपातकाल के 43 साल पूरे
  • 25 जून 1975 को लगा था देश में आपातकाल
  • पढ़िए पूरी कहानी

इलाहाबाद: भारतीय इतिहास में 25 जून की तारीख को हमेशा याद रखा जाएगा क्योंकि इसी तारीख को 1975 में आपातकाल लगा था. आइये जानते हैं कि 43 साल पहले देश में लगे आपातकाल के पीछे की क्या वजह थी और कौन थे वो जज जिनके फैसले से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इतनी आहत हुई कि उन्होंने देश को इस स्थिति में बदल दिया.

दरअसल 12 जून, वो तारीख है जिसके बाद देश ने इमरजेंसी का दौर देखा. 1975 में इसी तारीख को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण के केस में बड़ा फैसला दिया था. ना केवल इंदिरा गांधी का रायबरेली से चुनाव रद्द कर दिया था बल्कि उनके अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पांबदी भी लगा दी थी.

 

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तारीख थी 12 जून, इलाहाबाद हाईकोर्ट की कोर्ट नंबर 24 वकीलों, नेताओं और पत्रकारों से खचाखच भरी हुई थी. चार साल से चल रहे इस केस पर पूरे देश ही नहीं दुनियां भर के लोगों की नजर थी. हालांकि केस की सुनवाई 23 मई को ही खत्म हो गई थी, लेकिन जज जगमोहन लाल सिन्हा ने फैसला सुनाने के लिए 12 जून की तारीख तय की थी. काफी ईमानदार और सख्त जज थे जगमोहन लाल और उनको ऐसी पीएम के खिलाफ फैसला सुनाना था, जो 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को हराकर और बांग्लादेश जैसे नए देश को बनवाकर जनता के बीच महानायिका के तौर पर उभर चुकी थीं. सो आसान काम नहीं था. राजनारायण की तरफ से ये केस मशहूर वकील शांति भूषण ने लड़ा था और आम पब्लिक के बीच ये आम धारणा केस का फैसला आने से पहले बन चुकी थी कि जज में इतनी हिम्मत नहीं कि इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला दे सके.

जब 23 मई को केस की सुनवाई पूरी हो गई तो सालों से जज के विश्वासपात्र रहे प्राइवेट सेक्रेटरी से जज ने कहा, मैं नहीं चाहता कि फैसला लीक हो, यहां तक कि तुम्हारी वीबी को भी नहीं, ये एक बड़ी जिम्मेदारी है, क्या तुम लोगे? उसने जज के सामने शपथ खाई कि किसी को नहीं बताएगा. जज सिन्हा शांति से इस फैसले को लिखना चाहते थे, जो लिखते लिखते 258 पेज का फैसला बन गया था. उनको पता था पीएम का मामला है और इसकी बाल की खाल निकाली जाएगी, तमाम बडे लोग दुश्मन बन जाएंगे. लेकिन अगले दिन से ही उनको मिलने इलाहाबाद के तत्कालीन सांसद किसी ना किसी बहाने से घर आने लगे. सिन्हा जी ने अपने पड़ौसी जज पारेख साहब से भी कहा कि उनको समझाओ कि यहां ना आया करें. लेकिन बात बनी नहीं. तब जज ने एक अनोखी तरकीब निकाली, उन्होंने अपने घर के स्टाफ और परिवार से कह दिया कि बाहर वालों को बताओ कि वो उज्जैन चले गए हैं और 28 मई से लेकर 7 जून तक वो घर मे इस तरह से बंद हो गए कि घर के बाहर निकलना तो दूर अपने बरामदे तक में नहीं दिखे.

हालांकि कोई बड़ा आदमी उनसे मिला, जिसका नाम उन्होंने कभी बताया नहीं, जिसने उन्हें बताया कि उनका नाम सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर दिल्ली में चर्चा में है. लेकिन सिन्हा ने ये कहकर टाल दिया कि वो अभी इतने बड़े पद के लायक नहीं है. फिर आखिरी चरण में उनके पास फोन आया इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएस माथुर का, उन्होंने कहा कि होम मिनिस्ट्री के एडीशनल सेक्रेटरी पीपी नायर का फोन आया था और रिक्वेस्ट कर रहे थे कि ये फैसला जुलाई तक टाल दिया जाय. राजनारायण के मुताबिक माथुर पीएम के फिजीशियन के सम्पर्क में थे और जज सिन्हा को कई ऊंचे पदों का ऑफर किया गया था. लेकिन जगमोहन लाल सिन्हा समझ रहे थे कि एक बार अगर ये फैसला टल गया तो सच सामने नहीं आएगा. वो तुरंत हाईकोर्ट पहुंचे और मीडिया को खबर की कि फैसला 12 जून को ही आएगा. इंदिरा पर चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी की मदद लेने का आरोप था.

वकील शांतिभूषण के बेटे प्रशांत भूषण ने अपनी किताब ‘द केस दैट शुक इंडिया’ में लिखा है कि उसके बाद सरकार ने एक सीआईडी की टास्क फोर्स फैसला पता करने में लगा दी जो जज सिन्हा के पीए मन्ना लाल के घर जा पहुंची, जब उसने मना किया कि मेरे पास फैसला नहीं है तो उसे धमकी देकर आधे घंटे बाद आने की कहकर चले गए. मन्ना लाल डर गया, उसने फौरन पैकिंग की और निकल पडा जज सिन्हा के घर. लेकिन यहीं मामला खत्म ना हुआ, जब सुबह लौटा तो 8 बजे सीआईडी टीम फिर हाजिर थी. हाईकोर्ट का मसला था, टीम डरा ही सकती थी, कुछ कर नहीं सकती थी, टीवी चैनल्स उन दिनों होते तो शायद वो भी ना कर पाती. मन्ना लाल को समझाया गया कि हॉटलाइन पर सीधे पीएम इंदिरा गांधी को फैसला बता दो, हमें नहीं बताना तो कोई बात नहीं. कई दिन तक मन्ना लाल को इसी तरह परेशान किया जाता रहा.

इंदिरा गांधी कितनी परेशान थीं इस फैसले को लेकर इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाद में शांतिभूषण ने बताया कि मुझे भी उस वक्त के अटॉर्नी जनरल ने एडीशनल अचॉर्नी जनरल की पोस्ट का ऑफर दिया था. सीआईडी ने जज की दिनचर्या, हाल की के दिनों में लाइफ स्टाइल में बदलाव आदि के बारे में भी मन्ना लाल से पूछताछ की थी.

फिर दिन आया ऑर्डर का यानी 12 जून, ठीक दस बजे जज सिन्हा कोर्ट में मौजूद थे. अभिवादन आदि के बाद उन्होंने फैसला पढ़ना शुरू कर दिया, उन्होंने कहा- “In view of my findings on Issue No. 3 and Issue No. 1 read with additional issue No. 1, additional issue No. 2 and additional issue No. 3, the petition is allowed and the election of Smt. Indira Nehru Gandhi, respondent No. 1, to the Loksabha is declared void.”. उससे आगे का फैसला तो शोर में दब गया, ना कोई सुनना चाहता था और ना ही शोर में सुनाई पड़ा. नारे लगने लगे राजनारायण जिंदाबाद, शांति भूषण जिंदाबाद. जबकि इंदिरा गांधी के वकील एससी खरे के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. इस फैसले में इंदिरा गांधी का ना केवल इलेक्शन रद्द किया गया था, बल्कि उन्हें अगले 6 साल के लिए चुनाव लड़ने से भी रोक दिया गया था. यानी अगले 6 साल वो पीएम नहीं बन सकती थी. हालांकि जज सिन्हा ने राजनारायण के लगाए 7 आरोपों में से पांच को खारिज कर दिया था और केवल दो में ही इंदिरा को दोषी पाया था.

इंदिरा की उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी, देश में एक नए तरह का माहौल बनने लगा, जो इंदिरा गांधी बांगला देश के गठन के बाद लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच चुकी थीं, हर गली में उनकी बेईमानी की चर्चा होने लगी थी. अगले 13 दिन के अंदर तो इंदिरा ने इमरजेंसी का ऐलान भी कर दिया. हालांकि इससे जगमोहन लाल सिन्हा के लिए काफी मुश्किलें पैदा हुईं, उसके बाद उनका कोई प्रमोशन नहीं हुआ और वो गुमनामी में ही जिए. लेकिन जो सुकून शायद उनको मिला होगा, उसको आंकना आसान नहीं.

कौन थे जगमोहन लाल सिन्हा?

जगमोहन लाल सिन्हा का जन्म 12 मई 1920 को हुआ। वहीं उनका निधन 20 मार्च 2008 को हुआ। जगमोहन लाल सिन्हा की शिक्षा शासकीय हाई स्कूल अलीगढ़, बरेली कॉलेज बरेली, मेरठ कालेज मेरठ में हुई। उन्होने कानून में स्नातक की शिक्षा ली और 1943 से 1955 तक बरेली में अधिवक्ता (प्लीडर) की तरह काम किया। उसके पश्चात 3 जून 1957 तक बरेली में जिला सरकार के सलाहकार (आपराधिक) के रूप में कार्य किया।

उसके बाद सिविल एवं सेसन जज के रूप में कार्य किया। फिर अतिरिक्त जिला जज के रूप में, जिला एवं सेसन जज के रूप में। उत्तर प्रदेश के कानून विभाग ने 1970 में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का न्यायधीश नियुक्त किया। अगस्त 1 9 72 को वे स्थायी न्यायधीश नियुक्त हुए।

आपको बता दें कि इंदिरा गांधी ने 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण को 11 लाख वोटों से हराया था। उनकी इस जीत के खिलाफ राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने कई भ्रष्ट तरीकों और कानून तोड़कर चुनाव में जीत हासिल की थी।

इस मामले की सुनवाई के बाद जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। इसके साथ ही अगले 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। जज ने अपने फैसले में ये भी कहा कि इंदिरा गांधी संसद के सदन में तो बैठ सकती हैं लेकिन मतदान नहीं कर सकतीं।

यही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 20 दिन दिए गए। इंदिरा ने भले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन उन्हें पता था कि जिस जन-प्रतिनिधित्व कानून को तोड़ने का उनपर आरोप है उसमें संशोधन किए बिना उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलेगी।

कहा जाता है कि इसी डर के चलते केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने जन-प्रनितिधित्व कानून में संशोधन करने का फैसला किया। साथ ही नए कानून को पिछे कह तारीख से लागू किया गया। कानून में संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला इंदिरा गांधी के पक्ष में गया।

इस पूरी प्रक्रिया के बीच जैसे ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया पूरे देश में हलचल मच गई। इन दिनों जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में देशव्यापी आंदोलन चल रहा था। 12 जून को ही गुजरात विधानसभा में कांग्रेस की हार की खबर ने पार्टी को बुरी तरह झकझोर दिया और विपक्ष ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग शुरु कर दी।

इस मांग के समर्थन में देश भर में धरना, प्रदर्शन और सभाएं होने लगीं। देश में तत्कालीन सरकार के खिलाफ बढ़ते रोष के बीच अचानक 25 जून 1975 की रात देश आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। आपातकाल का ये दौरा 19 महीने तक चला जिससे निराश हो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बाबू जगजीवन राम ने पार्टी छोड़ दी।

आपातकाल की समाप्ति के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए। 1977 में हुए इस चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी और कांग्रेस पार्टी को अपने गलत फैसले की सजा मिली और वह केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई।

चुनाव के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। अपनी सांसदी बचाने के लिए इंदिरा गांधी का आपातकाल लगाने का वो फैसला अब देश का सबसे काला दौर माना जाता है। इसके साथ ही यह एक ऐसा इतिहास बन गया है, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता।

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