जब जिन्ना ने की थी शहीद भगत सिंह और तिलक के लिए जिरह

संक्षेप:

  • जिन्ना की तस्वीर को लेकर विवाद जारी
  • जिन्ना ने लड़ा था तिलक का केस
  • भगत सिंह के बचाव में उतरे थे जिन्ना

इन दिनों अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर काफी विवाद चल रहा है। जिसकी पूरे देश में चर्चा है. इस मुद्दे पर जमकर राजनीति भी हो रही है.

इस बीच हम आपको जिन्ना से जुड़ी एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं जिसे बहुत कम लोग जानते होंगे. बात 30 अप्रैल 1908 की है. दो राष्ट्रवादी बंगाली युवा क्रांतिकारियों प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने मुजफ्फरपुर में चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड ऑफ कलकत्ता के काफिले पर बम से हमला कर दिया था. इस हमले में दो महिलाओं की मौत हो गई थी. हमले के बाद पकड़े जाने पर प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली थी और खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई. फांसी से गुस्साए बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी में न सिर्फ क्रांतिकारियों का बचाव किया बल्कि देश में तुरंत पूर्ण स्वराज्य की मांग कर डाली.

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बाल गंगाधर तिलक के इस कदम से गुस्साई ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर जल्द ही राजद्रोह का आरोप लगा दिया. हुकूमत का आरोप था कि उसके एक आला अधिकारी पर हमला हुआ है पकड़े गए आरोपी को मौत की सजा दी गई है तो आखिर बाल गंगाधर तिलक इसका बचाव क्यों कर रहे हैं? बाल गंगाधर तिलक पर केस चला. अपने मुकदमे में वो खुद का पक्ष ठीक से रख नहीं सके. जब मुकदमे के दौरान ऐसा लगने लगा कि तिलक अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पा रहे हैं. तो उस समय कांग्रेस में उनके विरोधी धड़े के रूप में पहचाने जाने वाले मुहम्मद अली जिन्ना को केस में इनवॉल्व किया गया.

जिन्ना ने बाल गंगाधर तिलक का पक्ष बेहद मजूबती के साथ रखा लेकिन वो तिलक को उस समय बचा नहीं सके. तिलक को छह साल के कारावास की सजा हो गई, लेकिन तिलक तो तिलक थे. वो शायद आजादी के आंदोलन में इकलौते ऐसे नेता थे जिनके खिलाफ तीन बार राजद्रोह के आरोप लगे थे. दो बार उन्हें सजा मिली थी. अभी तक हम बात कर रहे थे 1908 की, इसके अलावा 1897 में भी बाल गंगाधर तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चला था और तब उन्हें 18 महीने कारावास की सजा हुई थी.

लेकिन दूसरी बार (1908) जब जिन्ना तिलक का केस लड़ रहे थे तो फिर उन्हें छह साल की सजा हुई. तिलक 1914 में जेल से छूट कर बाहर आए. पूर्ण स्वराज्य की उनकी मांग धीरे-धीरे उनके मन में बलवती होती जा रही थी. पूर्ण स्वराज्य की मांग को लेकर दिए गए उनके कुछ भाषणों की वजह से एक बार फिर (तीसरी बार) उन पर 1916 में राजद्रोह का आरोप लगा. इस बार भी उनके वकील मुहम्मद अली जिन्ना ही थे. इस बार जिन्ना शुरुआत से ही सजग थे.

नामी वकील और इतिहासकार एजी नूरानी ने अपने लेख में लिखा है कि तब तिलक चाहते थे कि यह केस भी राजनीतिक पहलुओं पर ही लड़ा जाए. लेकिन जिन्ना ने उन्हें समझाया कि अपना बचाव करने के लिए लीगल ग्राउंड बेहद जरूरी है. इसी संदर्भ में तिलक ने यह भी स्पष्ट किया था कि उनके पूर्ण स्वराज्य की मांग क्या है ?

जिन्ना की बायोग्राफी लिखने वाले स्टैनली वोलपर्ट ने लिखा है कि इस केस में तिलक को जेल जाने से बचा लिया. इस केस में तिलक 20 हजार की जमानत देकर छूटे थे. ये शायद पहली बार था जब बाल गंगाधर तिलक राजद्रोह के आरोप के बावजूद भी जेल नहीं गए थे. और ये कमाल जिन्ना ने ही किया था.

दिलचस्प बात ये है कि बाल गंगाधर तिलक और जिन्ना के बीच कई बातों को लेकर आपस में मतभेद भी रहे. लेकिन इन सारी बातों के बावजूद उस समय देश की आजादी के लिए अपने साथी को ब्रिटिश सरकार के पंजों से निकाल लाने में जिन्ना जरा भी पीछे नहीं हटे.

एक एतिहासिक सच यह भी है कि पाकिस्‍तान के संस्‍थापक मोहम्‍मद अली जिन्‍ना ने 12 सितंबर, 1929 को सेंट्रल लेजिस्लेटिव की बैठक में इस आजादी के मतवाले का बचाव किया था. उस समय भगत सिंह असेंबली बमबारी मामले में जेल में थे.

शहीद भगत सिंह के मामले में केंद्रीय विधान परिषद में 12और 14 सितंबर, 1929 को जिन्ना का भाषण

भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों का स्वास्थ्य जेल में लंबे अनशन के कारण बुरी तरह गिर गया था. उनमें से लगभग सबकी हालत ऐसी हो गयी थी कि वे अदालत में पेश नहीं किये जा सकते थे. ऐसे में उनके खिलाफ सुनवाई उनकी गैरमौजूदगी में संभव नहीं थी. क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के प्रावधानों के अनुसार अदालत में मुकदमे के दौरान उस व्यक्ति का उपस्थित होना जरूरी था जिस पर मुकदमा चलाया जा रहा हो. दूसरी तरफ अंग्रेज सरकार जल्द से जल्द अदालती कार्रवाई पूरी कर इन क्रांतिकारियों को सजा देने पर आमादा थी. इसके लिए जरूरी था कि इंडियन क्रिमिनल प्रोसीजर कोड में एक नया संशोधन जोड़ा जाय. इसके लिए सरकार ने एक विधेयक तैयार किया.  इस विधेयक पर बहस के दौरान राष्ट्रीय एसेंबली के सदस्य मुहम्मद अली जिन्ना ने जोरदार शब्दों में इन क्रांतिकारियों के पक्ष में दलील दी और सरकार की भर्त्सना की. जिन्ना के उस ऐतिहासिक भाषण को "समकालीन तीसरी दुनिया" ने अपने मार्च 2012 के अंक में प्रकाशित किया था.

भगत सिंह और जिन्ना दोनों अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़े थे लेकिन यह ये सही है कि अंग्रेजी शासन के खिलाफ जैसी जंग जिन्ना लड़ रहे थे वो रास्ता भगत सिंह का नहीं था. जिन्ना कानून जानते थे, अपने मामले के पक्ष में अर्जी-दलील और कानून के दायरे के भीतर रहते हुए आंदोलन यही उनका रास्ता था. लेकिन भगत सिंह अंग्रेजी कानून के पाखंड को समझते थे, उनका रास्ता उस क्रांति का था- जिसे बंदूक की नलियों से गुजरने में परहेज ही नहीं!

लेकिन रास्ते का यह अलगाव जिन्ना के आड़े ना आ सका-वे भगत सिंह के मुकदमे में कानून के उड़ाए जा रहे मजाक के खिलाफ ब्रिटिश असेंबली में उठ खड़े हुए. वाकया तब का है जब लाहौर जेल में भगत सिंह ने कुछ सहूलियतों की मांग की और जेल-प्रशासन ने उसे ठुकरा दिया. भगत सिंह और उनके साथी भूख-हड़ताल पर बैठ गए. उन्होंने जबर्दस्ती खाना खिलाने की कोशिश की गई लेकिन जेल-प्रशासन नाकाम रहा. भूख हड़ताल के कारण मामले की सुनवाई में जा पाने से भगत सिंह और उनके साथी लाचार थे. सवाल उठा-जिस पर आरोप है, वही अदालत में अपने बचाव के लिए मौजूद नहीं तो फिर सुनवाई कैसे हो?

अंग्रेजी सरकार ने एक संशोधन पारित किया. इस संशोधन के जरिए कोर्ट को अधिकार दिया गया कि आरोपी अगर स्वेच्छा से कोर्ट ना आए तो फिर उसकी गैरमौजूदगी में उसके खिलाफ अदालती सुनवाई जारी रह सकती है. जिन्ना ने 12 सितंबर 1929 के दिन सेंट्रल असेंबली में इस संशोधन का विरोध किया.

असेंबली में कहा, `आप चाहते हैं यह सदन इस मामले में एक खास कानून बनाये, ऐसा कानून जो इस मामले (भगत सिंह) में भूख-हड़ताल तुड़वाने का औजार बने. याद रखिए कि ये लोग सर पर कफन बांध चुके हैं. ये कोई मजाक नहीं है..जो भूख हड़ताल पर बैठता है उसे अपने जमीर (विवेक) पर यकीन होता है, वह अपने जमीर के कहे पर चलता है और उसे अपने मकसद के जायज होने का भरोसा होता है. वे कोई आम अपराधी नहीं है और चाहे मैं उनके रास्ते को पसंद नहीं करता लेकिन आप चाहे उन्हें कितना भी गुमराह बता लें लेकिन यह आपकी सरकार है..निन्दा के काबिल यह आपकी सरकार जिससे ये लोग नफरत करते हैं.`
 

जिन्ना ने भगत सिंह के पक्ष में अंग्रेजी सरकारी की पोलपट्टी खोलते हुए उस रोज असेंबली में कहा था, `क्या आज की तारीख में दुनिया में ऐसी भी कोई सभ्य सरकार है जो दिन-रात, हर हफ्ते और हर महीने अपने लोगों को कटघड़े में खड़े करने पर आमादा है?...अगर आंखें खोलकर देखें तो क्या आपको खुद ही यह महसूस नहीं होता कि आपकी नीतियों और आपके कार्यक्रमों के खिलाफ लोगों में आक्रोश है, चौतरफा आक्रोश..?
 

असेंबली में जिन्ना के इस भाषण के बाद ट्रिब्यून ने लिखा कि जिन्ना ने मामले को जिस तरह से रखा उसका सदन पर गहरा असर पड़ा..सभी मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रहे और सदन में उनकी हर तरफ से सराहना हुई. कानून में संशोधन की कोशिश सदन में कामयाब ना हुई तो गवर्नर जेनरल ने अध्यादेश जारी किया. इस अध्यादेश के बूते भगत सिंह को बचाव का मौका दिए बगैर अदालती कार्यवाही जारी रही. बाद को यह अध्यादेश ‘अवैध’ करार दिया गया. लेकिन जिन्ना के उस भाषण के बाद यह तय हो गया कि बगैर सुनवाई के किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने का अंग्रेजी कानून नहीं चलने वाला.

देखिए ये वीडियो...

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