आपातकाल के दौरान नैनी जेल में रखे गए थे ये बड़े नेता

संक्षेप:

  • आपातकाल के 43 साल पूरे
  • 25 जून 1975 की रात हुई थी आपातकाल की घोषणा
  • नैनी जेल में बंद थे ये बड़े नेता

इलाहाबाद: आज ही के दिन यानि 25 जून को 43 साल पहले देश में आपातकाल लगाया गया था, जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी कहा जाता है।

25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है। वहीं अगले सुबह यानी 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में आपातकाल की घोषणा के बारे में सुना।

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं के खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए देश में आपातकाल लागू किया था। देशभर में लाखों लोगों की गिरफ्तारियां हुई। सरकार के खिलाफ जिसने भी मुंह खोला, उसे सलाखों के अंदर डाल दिया गया। आपातकाल में नैनी सेंट्रल इंदिरा सरकार के खिलाफ रणनीति तैयार करने का प्रमुख केंद्र बना। जेल में स्व. जनेश्वर मिश्र, डॉ. मुरली मनोहर जोशी के संयोजन में प्रतिदिन गोष्ठी होती, उसमें इमरजेंसी की स्थिति पर चर्चा कर प्रस्ताव पास करके उसे बाहर से मिलने आने वालों के जरिए जनता तक पहुंचाया जाता था।

आपातकाल लगने के बाद इलाहाबाद में 26 जून की सुबह समाजवादी नेता स्व. जनेश्वर मिश्र, तत्कालीन जनसंघ के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, समाजवादी नेता बाबा रामआधार यादव, भारतीय लोकदल नेता पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव, नरेंद्रदेव पांडेय, कैलाश प्रकाश, हृदयनारायण शुक्ल, डॉ. कृष्ण बहादुर सहित सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार करके मीसा में नैनी जेल भेजा गया। जुलाई माह में यहां वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह को मिर्जापुर जेल से लाया गया। जबकि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह अक्टूबर माह में अलीगढ़ जेल से नैनी जेल आए। सबको जेल में बने सर्किल नंबर पांच के स्कूल में रखा गया था।

मीसा बंदी रहे वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्रदेव पांडेय बताते हैं कि विपक्षियों की गिरफ्तारी और अखबारों पर सेंसर लगने से हर ओर अंधकार छा गया। मैं सुबह 10.30 बजे कचहरी गया और वहीं पर गिरफ्तारी हो गई। इमरजेंसी लगे एक साल हो गया तो ऐसा लगा कि पूरी जिंदगी जेल में बीतेगी। जेल में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. रघुवंश से मुलाकात हुई, उनके दोनों हाथ में लकवा ग्रस्त था वह पांव से लिखते थे वह खंभे में चढ़कर तार काटने के आरोप में बंद थे।

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