इलाहाबाद का ये खूबसूरत पुल बना "डेथ प्वाइंट"

संक्षेप:

  •  ज़िले का नैनी पुल भारत के सबसे खूबसूरत पुलों में से माना जाता है एक 
  • सरकारी आंकड़े के अनुसार पिछले 12 साल में अब तब 570 लोगों ने इस पुल से कूद कर दी जान
  • पिछले एक महीने में 8 लोग कूदे, जिसमें से 6 लोगों की हुई 

 

 

इलाहाबाद: ज़िले का नैनी पुल भारत के सबसे खूबसूरत पुलों में से एक माना जाता है लेकिन यह खूबसूरत पुल वक्त के साथ-साथ जानलेवा भी बनता जा रहा है। सरकारी आंकड़े बताते है की पिछले 12 साल में अब तब 570 लोगों ने इस पुल से कूद कर जान दे दी है।

हालांकि यह भी कहा जाता है कि यह संख्या 1000 के पार हो चुकी है। बढ़ती मौतों को रोकने के लिए पुलिस  प्रशासन ने कई कदम उठाये। लेकिन मौतों का सिलसिला अभी तक नहीं थमा है। अभी 5 दिन पहले ही प्रेमी जोड़े ने यहाँ से छलांग लगाई थी जिसमें लड़की तो बच गई। लेकिन लड़के की मौत हो गई।

इस ब्रिज से संगम की खूबसूरती देखते ही बनती है और संगम व शहर के अन्य हिस्सों से तो यह पुल स्वर्ग सा नगर आता है। शाम ढलने के बाद जब यहां पर लाइट ऑन हो जाती है तो इसकी खूबसूरती को चार चांद लग जाते है लेकिन अब इस पुल को डेथ प्वाइंट कहा जाता है।

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विश्वस्तरीय तकनीक के इस्तेमाल से इलाहाबाद में यमुना नदी पर बना यह पुल पं दीनदयाल उपाध्याय सेतु के नाम से जाना जाता है और पुरे देश ही नहीं विदेशो से आने वाले सैलानियों को अपनी तकनीक व ख़ूबसूरती से लुभाता है। यह पुल दो भागों में बटा है। जो मुंबई के सी-लिंक के बाद देश का दूसरा सबसे लंबा केबल स्टेट पर बना पुल, यानि की हवा में लटकता पुल। है। यह पुल 1510 मीटर लंबा और 365 मीटर ऊंचा है । पिलर नंबर 17 और 18 के मध्य वाला हिस्सा यमुना के बीच का हिस्सा है और यह पूरी तरह से केबल के सहारे टंगा हुआ है। इसी स्थान से आए दिन कोई न कोई छलांग लगाता है। जिसके चलते इसे अब लोग इसे सुसाइड प्वाइंट और डेथ प्वाइंट कहने लगे है।

अटल सरकार में डॉ. जोशी का था तोहफा इलाहाबाद शहर के पूर्व सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने इस पुल के निर्माण कार्य को स्वीकृति दिलाई थी। यह पुल सेना की जमीन में बनी है। साल 2000 में शुरू हुए इस पुल के निर्माण में 40 महीने का समय लगा। पहले तो बजट 350 करोड़ रुपए पर बाद में करीब 450 करोड़ रूपए हो गया। 4 साल बाद 2004 में ये पुल बनकर तैयार हो गया और जब उद्धघाटन का समय आया तो उसी समय लोकसभा के चुनाव की घोषणा हो गई।

कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी दी और केंद्र में अपनी सरकार बना ली। यही मामला फंस गया। भाजपा के लोग चाहते थे कि इस पुल का नाम भाजपा के किसी बड़े नेता के नाम पर रखा जाय और कांग्रेस इस पुल का खुद श्रेय लेना चाहती थी। इस चक्कर में इस पुल का उद्धघाटन नहीं हो सका। बाद में जब तिथि तय हुई तो कुछ स्थानीय युवा नेताओं ने खुद ही उद्धघाटन कर डाला जिस पर जम कर बवाल हुआ था।

मौत रोकने के लिए किये इंतजाम इलाहाबाद पुलिस के सरकरी रिकॉर्ड का हवाला देते हुए आईजी रेंज रमित शर्मा बताते है की 2005 से 2007 के बीच मौतों का आंकड़ा 200 को पार कर गया था। लोगों के पुल से कूद कर जान देने की घटनाएं आम हो गई।। इसके बाद इस पुल को अपशगुन से जोड़ कर देखा जाने लगा क्योंकि इसका विधिवत उद्धघाटन नहीं हुवा था।

परेशान एनएचएआई ने दिसंबर 2007 में पुल पर बाकायदा हवन पूजन करवाया गया। जाल लगवाने का प्लान बना। नियम बनाये गए। भीड़ को नियंत्रित किया जाने लगा। उसके बाद पुलिस ने पुल के नीचे गोताखोरों की एक टीम 24 घंटे जीवन रक्षक लाईफ जैकेट एक्यूपमेंट के साथ तैनात कर दी। जिससे अब अधिकांश लोगो को जिन्दा बचा लिया जाता है।

743 लोगों ने लगाई छलांग पुलिस रिकार्ड के मुताबिक 12 सालों में इस पुल से 743 लोग छलांग लगा चुके है। जिनमें से 567 लोगों की मौत हो चुकी है। पिलर नंबर 17 और 18 के बीच से ही लोग छलांग लगाते है। इसीलिए इन दोनों पिलरो के बीच दोनों पटरियों पर 24 घंटे दो गार्डो की डयूटी होती है। लेकिन यह भी नाकाफी ही साबित हो रहा है।

अगर पिछले कुछ दिन की बात करे तो एक महीने में 8 लोगकूद चुके है जिसमें से 6 लोगों की मौत हो चुकी है। पिछली घटनाओ पर नजर डाले तो मई और जून में इस पुल से वाराणसी, फूलपुर व अल्लापुर के प्रेमी जोड़े कूद चुके है जबकि सीबीएसई बोर्ड एग्जाम मे फेल होने पर जौनपुर के एक छात्र ने पुल से कूद कर जान दे दी। आंकड़ों के अनुसार 2016 - 2017 में अब तक कुल 84 लोग यहां से छलांग लगा चुके है। जिसमें 53 लोगों की जान जा चुकी है। इसमें 8 जोड़े भी शामिल है। 3 जोड़ों की तो साथ में मौत हो चुकी है लेकिन 5 जोड़ों में लड़की-लड़के की जान बच गई है।

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