बरेली: हरी सब्जियां बिगाड़ सकती हैं आपकी सेहत

संक्षेप:

  • नदियों के आसपास उगाई जा रही सब्जियां
  • बिगाड़ सकतीं हैं आपकी सेहत
  • लौकी, तरोई में 30 गुना ज्यादा हैवी मेटल्स की मात्रा

बरेली: शहर से सटी नदियों के आसपास उगाई जा रही सब्जियां आपकी सेहत बिगाड़ सकतीं हैं, सब्जी खरीदते वक्त यह बात भी ध्यान में जरूर रखें। सेहत के लिए फायदेमंद ये हरी सब्जियां शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों के साथ मीठे जहर का डोज भी दे रही हैं, क्योंकि इन सब्जियों को उगाने में जिस पानी का उपयोग हो रहा है, उसमें हैवी मेटल्स की भरमार है।

सिंचाई द्वारा भूमि के पोषक तत्वों में मिलकर ये हैवी मेटल्स सब्जियों में पहुंच रहे हैं। किला नदी, नकटिया नदी और रामगंगा नदी के किनारे उगाई जा रही सब्जियां न केवल उन क्षेत्रों में बल्कि शहर के बाजार में भी सप्लाई हो रही हैं। ये नदिया हद से ज्यादा प्रदूषित हो चुकी हैं। प्रदूषण का आलम यह है कि किला और नकटिया नदी का पानी काला पड़ चुका है। ये हैवी मेटल्स ऐसे हैं, जिनको खत्म नहीं किया जा सकता। शरीर में पहुंचे तो त्वचा संबंधी बीमारी के साथ कैंसर का कारण भी बन सकते हैं।

लौकी, तरोई में तीस गुना ज्यादा मिली हैवी मेटल्स की मात्रा
बरेली कॉलेज के जंतु विज्ञान विभाग के रिसर्च स्कॉलर्स और विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में किला नदी, रामगंगा, नकटियां क्षेत्र में उगाई जा रही सब्जियों और भूमि के सैंपल लिए। यहां भिंडी, प्याज, गोभी, बैंगन, टमाटर, गाजर, मूली, आलू, और धनिया बोई जाती हैं। बालू वाली मिट्टी में लौकी, तरोई, कद्दू, खीरा, करेला और पेठा (कुम्हड़ा) भी उगाया जाता है। जिन क्षेत्रों में सब्जी उगाई जाती है, उस भूमि में निकिल, लेड, कैडमियम, कॉपर, मरकरी, जिंक और कोबाल्ट जैसे भारी तत्वों की मात्रा मिली।

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सब्जियों को सुखाकर उनका पाउडर बनाया और फिर उनमें हैवी मेटल्स की मात्रा देखी गई। आंकड़े चौंकाने वाले थे। लौकी में लेड की मात्रा 144 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम (ड्राई वेट यानी सुखाकर बनाया गया पाउडर) जो सामान्य से लगभग 30 गुना अधिक था। निकिल की मात्रा 134 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम (ड्राई वेट) जो सामान्य से लगभग 10 गुना अधिक था। तरोई में प्रति किलोग्राम ड्राई वेट में लेड 136 मिलीग्राम और निकिल 156 मिलीग्राम पाया गया। प्रदूषित जल की इस सिंचाई से मिट्टी में मित्र कीट और केचुओं की संख्या भी काफी कम हो गई।

शहर की गंदगी से जहरीला हो रहा इन नदियों का पानी
शहर की सटी नदियों का पानी कितना जहरीला होता जा रहा है। इस पर लगातार रिसर्च हो रही है और इसका कारण बन रही है शहर से निकलने वाली गंदगी। विवि के प्लांट साइंस विभाग की टीम ने हेयर डाई पर शोध किया था। इसमें पाया गया कि डाई से निकले वाले केमिकल अन्य केमिकल के साथ मिलकर हैवी मेटल्स बना रहे हैं। नदियों का पानी काला हो चुका है। डॉ. रवि खन्नाके अनुसार नदी किनारे के किसान अपने खेतों में इसी विषाक्त जल से सिंचाई करते हैं। वर्षा ऋतु में बाढ़ से इन नदियों का जल किनारे के खेतों में जमा हो जाता है, जिससे इस जल के हैवी मेटल्स जमा हो जाते हैं। इस मिट्टी में उगने वाली सब्जियां और फसलों की जड़ें इन भारी तत्व को अवशोषित कर लेती हैं और ये तत्व फल और सब्जियों में पहुंच जाते हैं।

मानसिक विकास भी थम जाता है
हैवी मेटल्स की मात्रा बढ़ने से तमाम बीमारियां शरीर में पनपने लगती हैं। बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास थम जाता है। महिलाओं में गर्भपात का कारण भी यही हैवी मेटल्स बन सकते हैं। वयस्कों में प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है। त्वचा की बीमारियां, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और कैंसर जैसी भयानक बीमारी का कारण भी बनते हैं।

क्या करें किसान
डॉ. रवि खन्ना के अनुसार किसानों को चाहिए कि वो इस प्रदूषित पानी का उपयोग सब्जियों में सिंचाई के लिए न करें। बोरवेल के पानी से सिंचाई करें। नदी की खाली पड़ी भूमि पर सब्जी न उगाएं। इनमें हैवी मेटल्स की मात्रा रहती है। शहर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट होना चाहिए। उद्योगों से निकलने वाला पानी नदियों में बिना ट्रीटमेंट किए न छोड़ा जाए।

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