अंबेडकर जयंती: सबकी नजर दलित वोटरों पर

संक्षेप:

  • यूपी में हर पार्टी में बढ़ा अंबेडकर प्रेम
  • नजर देश में 16.63 फीसदी वोटर्स पर
  • बीजेपी की दलित राजनीति को पहुंची चोट

दलितों के मसीहा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की आज जयंती है. पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर अंबेडकर जयंती मनाई गई. इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में थे तो वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली में बाबा साहेब को श्रद्धांजली दी. इसके अलावा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को ‘दलित मित्र’ की उपाधि दी गई तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए उन्होंने बाबा साहेब को नमन किया. मायावती ने भी बाबा साहेब को श्रद्धांजलि दी. उधर अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के कार्यालय में अंबेडकर की मूर्ति लगाई. ऐसा लगता है जैसे आज दलितों के मसीहा माने जाने वाले बाबासाहेब अंबेडकर सभी पार्टियों के लिए जरूरत बन गए है. अंबेडकर के प्रति पिछले कुछ सालों से अचानक ही हर दल का प्यार उमड़ पड़ा है. अब अंबेडकर पर सिर्फ मायावती या बीएसपी का ही हक नहीं रहा, बीजेपी का भी है, कांग्रेस का भी है और यहां तक कि अब समाजवादी पर्टी भी इसमें पिछे नहीं है.

दरअसल, यह सब देश में 16.63 फीसदी दलित वोटों के लिए किया जा रहा है. 2019 लोकसभा नजदीक है ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां दलित वोट बैंक को लुभाने में लगी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में कुल 20 करोड़ 13 लाख 78 हजार 86 दलित हैं. यानी देश में 16.63 फीसदी दलित आबादी है. जनसंख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा दलित आबादी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुल दलित आबादी 4 करोड़ 13 लाख 57 हजार 608 है. यूपी में करीब 22 फीसदी दलित वोटर हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में भी दलित समुदाय बीजेपी के साथ दिखा था. दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती को पटखनी दे दी थी. उस वक्त मायावती की पार्टी बीएसपी का तो यूपी में खाता तक नहीं खुला था. गैर जाटव दलितों ने बीजेपी को दिल खोलकर वोट किया था. कुछ हद तक सेंधमारी जाटव जाति में भी हुई थी लेकिन अब हालात अलग है. यूपी में फूलपुर और गोरखपुर सीट पर हुए उपचुनाव ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बाद पैदा हुए हालात पर गौर करें तो इसका सबसे बड़ा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को हुआ है. इसके बाद रही सही कसर 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के विरोध में हुई प्रदर्शन ने पूरी कर दी. विपक्ष को बीजेपी को इसलिए भी दलितों के मुद्दे पर घेरने का मौका मिला है,क्योंकि सत्ताधारी बीजेपी के चार सांसद पत्र लिखकर खुलेआम दलित उत्पीड़न को लेकर संगठन और सरकार से नाराजगी जता चुके हैं. देश में हाल ही में हुए घटनाक्रमों ने बीजेपी की दलित राजनीति को चोट पहुंचाई है. ऐसे में भाजपा आंबेडकर जयंती को धूमधाम से मनाकर दलितों में अच्छा संदेश देना चाहती है.

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कभी दलितों की चैम्पियन रही कांग्रेस भी खुद को फिर से दलित हितैषी पार्टी साबित के लिए जोर लगा रही है. कांग्रेस की भी आंबेडकर जयंती बड़े पैमाने पर मनाने की तैयारी है. जहां तक बसपा की बात है तो वह हर साल ही बाबा साहेब की जयंती धूमधाम से मनाती है. यूपी के राज्यपाल राम नाईक ने भी आंबेडकर का नाम बदलने को लेकर जो मुहिम चलाई, उसका असर भी सरकार पर देखा जा रहा है. लोकसभा चुनाव अगले साल हैं. अब चुनावी साल और माहौल में बाबा साहेब को अपना राजनीतिक ब्रैंड बनाकर वोटरों के बीच ले जाने की होड़ सभी दलों में है और इसकी शुरुआत आंबेडकर जयंती से हो रही है.

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