Bakrid 2018: जानिए क्यों दी जाती है बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी

संक्षेप:

  • इस बार 22 अगस्त को मनाई जाएगी बकरीद
  • इस दिन दी जाती है जानवरों की कुर्बानी
  • गोश्त को  बांटा जाता है तीन हिस्सों में

इस बार 22 अगस्त को बकरीद मनाई जाएगी. रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिनों बकरीद, ईद-उल-अजहा या कहें ईद-उल जुहा को मनाया जाता है. मुसलमानों का यह दूसरा प्रमुख त्योहार है, इस दिन जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.

इस कुर्बानी के बाद उसके गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इस्लाम धर्म में पहला मुख्य त्योहार मीठी ईद है, जिसे ईद-उल-फितर कहा जाता है. इस मीठी ईद पर मुस्लिमों के घर पर सेवई और कई मीठे पकवान बनाए जाते हैं. लेकिन बकरीद के मौके पर जानवरों की कुर्बानी देने की प्रथा है. यहां जानिए कि आखिर ईद-उल जुहा पर अल्लाह को जानवरों की बलि क्यों दी जाती है.

बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?

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इस्लाम धर्म के बेहद ही प्रमुख पैगम्बरों में से एक थे हज़रत इब्राहिम. कुरान में इनके नाम का एक सूरा (अध्याय) भी है जिसे `सूरह-इब्राहीम` कहा जाता है. इन्हीं की एक कुर्बानी के चलते बकरीद के मौके पर जानवरों (बकरे) की कुर्बानी दी जाती है.

अल्लाह के हुक्म पर उन्होंने पैगम्बर हज़रत इब्राहिम से उनकी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी मांगी. हज़रत इब्राहिम को सबसे ज़्यादा प्यार अपने एकलौती औलाद इस्माइल से था. ये औलाद काफी बुढ़ापे में पैदा हुई थी. लेकिन अल्लाह का हुक्म मानकर वह अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए.

हज़रत इब्राहिम जब अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे तभी रास्ते में शैतान मिला और उसने कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं. उसके मरने के बाद बुढ़ापे में कौन आपकी देखभाल करेगा. हज़रत इब्राहिम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए और उनका कुर्बानी देने का मन हटने लगा. लेकिन कुछ देर बाद वह संभले और कुर्बानी के लिए तैयार हो गए. हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली.

हज़रत इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांधकर बेटे की कुर्बानी दी, लेकिन कुर्बानी के बाद जैसे ही पट्टी हटाई तो अपने बेटे को सामने जिन्‍दा खड़ा पाया. क्योंकि अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम के बेटे की जगह `बकर` यानी बकरे को खड़ा कर दिया था. इसी वजह से बकरीद मनाई जाता है, बकरों और मेमनों की बलि दी जाती है.

इसी मान्यता के चलते बकरीद पर बकरे की बलि दी जाती है और बकरीद पर कुर्बानी देने के बाद हज पर जाने वाले मुस्लिम हज के आखिरी दिन रमीजमारात जाकर शैतान को पत्थर मारते हैं जिसने हज़रत इब्राहिम को अल्लाह के आदेश से भटकाने की कोशिश की थी.

आपको बता दें, इससे पहले बकरीद 22 अगस्त को बताई जा रही थी. इमरात-ए-शरीया-हिंद (Imarat E Sharia Hind) और रूयत-ए-हिलाल कमेटी (Ruet-e-Hilal Committee) समेत कई कमेटियों ने 22 अगस्त को ईद-उल-अजहा (Eid al-Adha) पर सहमति जता दी है.

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