अभी भी संजोये हैं अपने संस्कारों को कुम्हार व भर समाज

संक्षेप:

 विपरीत परिस्थितयों मे भी  संजोये हैं अपने संस्कारों को कुम्हार व भर समाज,महेश शुक्ला, संस्थापक,, सजग समाज - सशक्त समाज 

 

भारतीय साहित्य में कुम्हार के कौशल को विशेष प्रतिष्ठा के साथ ही मानवीय संवेदनाओ और दर्शन से भी जोड़ा गया है ।इस बार की बैठकी, सजग समाज सशक्त समाज के तत्वधान में, कुम्हार व भर समाज के उन लोगों से हुई जो अपने पुरातन संस्कार को संजोए हुए हैं।

कुम्हार समाज के लोगों में यह चिंता दिखी कि अब तो दीपावली पर भी माटी के दीए नहीं बिकते। आज के बच्चों ने जैसे माटी के खिलौनों से मुंह ही मो के बने बर्तन अनिवार्य  हुआ करते थे पर  धीरे-धीरे यह परंपरा दम तोड़ने की ओर अड़ लिया हो।  एक समय था, जब पूजा,विवाह एवं जीवन से मरण तक के संस्कारों में मिट्टीग्रसर हो चली है।   कुछ नौजवान इस बात पर खुश दिखे कि सरकार ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है जिससे पर्यावरण तो ठीक होगा ही साथ ही मिटटी के बर्तनो की मांग फिर से बढ़ सकती है । शायद कुल्हड़ के चाय की स्वाद फिर से लोगो  तक पहुंचेगी ।

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भर समाज के लोगों ने बताया कि  नदियां विषाक्त हो रही हैं तो  ऐसे में मत्स्य पालन पर आधारित जीविका कैसे चलेगी । वोह यह  उम्मीद लगाए हुए हैं कि  सरकार व समाज के लोग चेतेंगे और  नदिया फिर से स्वच्छ होंगी।  ताल पोखरे अतिक्रमण से मुक्त होकर फिर से जीवित होंगे  और उनका पारंपरिक रोजगार आगे बढ़ेगा।   बैठकी में खास बात यह सामने आई कि लोग सरकार की  पहल पर खुश हैं क्यूँकि  पहली बार उनके चौखट तक योजनाएं पहुंच रही हैं । इस बात को लेकर गुस्सा भी है कुछ विभाग के कर्मचारी रिश्वत मांगते हैं।

 समाज को यह समझना होगा कि पर्यावरण और विकास एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं और उनके खुद  के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि वोह कुम्हार और भर समाज से सीख लें और वातावरण का सम्मान करें।  इसी में सबकी भलाई निहित है।  प्लास्टिक का प्रकोप और नदी, नालों, तालाबों के प्रदूषण रोकना हमारे हाथो में हैं सरकार के नहीं। हमारे देश में बहुत से गांव है जहाँ वातावरण के संतुलन को पुनर्स्थापित किया गया है।  पहला नाम ही अन्ना हज़ारे का याद आता है जिन्होंने एक गांव से शुरू कर एक बड़े गॉवों के समूह को ही आत्मनिर्भर बना दिया।  किसी महा मानव की आवश्यकता नहीं है ऐसा करने के लिए क्यूंकि ऐसा हम में से हर कोई कर सकता है। आइये संकल्प लीजिये कि आप प्रदूषण न तो खुद करेंगे न करने देंगे और इस दीपवाली पर भारत में बने मिटटी के दिए ही प्रज्जवलित करेंगे।   

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