संयम और सदाचार से ही मिलती है सुख समृद्घि

गांव रिसौली में मेरे राम कथा समिति के तत्वावधान में चल रही रामकथा के आठवें दिन रवि समदर्शी महाराज ने राम और निषादराज प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि केवट का कथन है कि वह भगवान राम के मर्म को जानता है जबकि भगवान का मर्म बह्मा एवं नारद भी नहीं जानते हैं, लेकिन श्रीराम ने अपने स्वभाव के वशीभूत होकर निषाद राज से विनती की और नाव के लिए आग्रह किया।

क्योंकि भगवान राम घट-घट के ह्दय की भावना को पहचानते हैं।

केवट ने कहा कि मैंने अपना जीवन बहुत समय मजदूरी से निर्वाह किया लेकिन आज विधाता ने मुझे पूर्णता के साथ मजदूरी को प्रदान कर दिया है।

कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को अमीरी और गरीबी दोनों में ही भगवान का स्मरण बनाए रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भगवान ने मनुष्य को शरीर केवल कल्याण के दिया है और हमने भी उसको लिया है।

यह लेना-देना तभी सफल होगा जबकि हम परमात्मा के बताए रास्ते पर चलेंगे।

संयम, सदाचार का पालन करेंगे।

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