छत्तीसगढ़: 15% बच्चों को आज भी मां के पेट से ही कुपोषण (सर्वे)

संक्षेप:

बालोद: प्रदेश में हर साल 15 % बच्चे मां के पेट से ही कुपोषण की चपेट में आ रहे हैं। पैदाइश के समय ही ऐसे बच्चों के वजन की जानकारी होने के बाद भी सुपोषण के लिए किए जा रहे सभी प्रयास इनपर बहुत असरदार नहीं हो रहे हैं। क्योंकि हष्ट-पुष्ट बच्चों की तुलना में लो वेट वाले बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है।

स्वास्थ्य विभाग के आकड़ों से समझें

जिला अस्पतालों में पिछले 10 सालों के दौरान हुई डिलीवरी के आकड़ों को देखें तो इसकी पुष्टि हो रही है। 2010 में प्रदेश के शासकीय जिला अस्पतालों में जहां सम्पूर्ण डिलीवरी के 20 % बच्चों को वजन 2 किलों से कम होता था, 2019 में 15% बच्चों का वजन कम मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के आकड़ों अनुसार ऐस बच्चों की संख्या औसतन 10,000 हो जाती है।

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जबकि छठवें महीने में पता कर ले रहे बच्चे का वजन

लो बर्थ के ऐसे आकड़े तब है, जब अस्पतालों में हो रहे शिविर के दौरान गर्भ के छठवें महीने में अल्ट्रासाउंड कराकर बच्चे का वजन पता कर लिया जा रहा है। आंगनबाडिय़ों में बच्चों के साथ ही गर्भवतियों को भी हॉट-कूक व रेडी-टू-ईट के साथ ही चिक्की व मौसमी फल दे रहे हैं।

इसके बाद भी गर्भवतियों के चेक-अप में लापरवाही

लो बर्थ के संदर्भ में दस सालों के आकड़े भयावह हैं, इसके बाद भी शासकीय अस्तपालों में गर्भवतियों के हेल्थ चेक-अप में लापरवाही बतरती जा रही है। कई शाषकीय अस्तपालों के डॉक्टर गर्भवतियों का न पेट चेक कर रहे हैं, न ही एंडवांस जांच कराई जा रही है।

सभी अस्पतालों के आकड़े जोड़ दें तो भयावह स्थिति

लो बर्थ रेट दर्शाने के लिए जिला अस्पतालों में होने वाली डिलिवरी के आकड़ों में अगर सभी अस्पतालों के आकड़े जोड़ दें तो स्थिति भयावह होगी। शासन स्तर पर इसके लिए कोई एकल एक्सरसाइज नहीं होती है। विभाग अलग-अलग डाटा रखते हैं।

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