नहीं मिली एंबुलेंस तो बीच जंगल में ही जन्म दिया बच्चे को, सेना के जवानों ने की मदद

संक्षेप:

  • नक्सल मोर्चे पर तैनात फोर्स और पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ और अत्याचार के आरोप लगते रहते हैं
  • प्रसव पीड़ित महिला को एंबुलेंस नहीं मिल पाई और बीच जंगल में जच्चा-बच्चा दोनों की जान पर बन आई
  • जवान जरूरी सामान और स्वास्थ्य विभाग की टीम को लेकर जंगल के भीतर पहुंचे, जिससे सुरक्षित प्रसव संभव हो पाया

नारायणपुर: नक्सल मोर्चे पर तैनात फोर्स और पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ और अत्याचार के आरोप लगते रहते हैं लेकिन इस बीच उनका मानवीय चोहरा भी देखने को मिला। दरअसल प्रसव पीड़ित महिला को एंबुलेंस नहीं मिल पाई और बीच जंगल में जच्चा-बच्चा दोनों की जान पर बन आई। ऐसे में जवान जरूरी सामान और स्वास्थ्य विभाग की टीम को लेकर जंगल के भीतर पहुंचे, जिससे सुरक्षित प्रसव संभव हो पाया।

बुधवार को ग्राम ऐहनार निवासी सुकनी बाई को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। हालत ठीक नहीं थी लेकिन गांव तक सड़क नहीं होने से 102 महतारी एंबुलेंस का पहुंचना संभव न था। इसलिए सुकनी को सात किलोमीटर दूर स्थित सोनपुर कैंप तक पहुंचने को कहा जहां से एंबुलेंस उसे अस्पताल ले जाती। सुकनी के परिजन उसे कांवड़ में लेकर पैदल निकले। सुकनी के परिजन उसे लेकर किसी तरह छह किलोमीटर दूर तक पहुंचे ही थे कि दर्द इतना बढ़ा कि आगे लेकर चलना मुश्किल हो गया।

साथ चल रहीं कुछ महिलाएं प्रसव कराने की कोशिश करने लगीं। इस बात की जानकारी जैसे ही कैंप तक पहुंची, आइटीबीपी के इंस्पेक्टर प्रमोद तिवारी स्ट्रैचर, रामकृष्ण मिशन आश्रम की महिला चिकित्सा कर्मी और नक्सलियों से सुरक्षा के लिए पर्याप्त बल लेकर नाले तक पहुंच गए। वहां झाड़ियों के बीच कपड़े का घेरा बनाकर टीम जुट गई। रक्तस्राव रोकने को जवानों ने अपनी टीशर्ट, रूमाल, गमछा आदि दिया। इस तरह सुरक्षित प्रसव संभव हो पाया। इसके बाद जच्चा-बच्चा को कैंप तक लाया गया और वहां से उन्हें वाहन के जरिए रामकृष्ण मिशन आश्रम कुंदला रवाना कर दिया गया। पुलिस और फोर्स की इस भूमिका की अंचल में खूब सराहना हो रही है।

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