मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति प्रेम हमारा कर्तव्य : राष्ट्रपति
- न्यूज़
- Friday | 9th December, 2022

देहरादून, नौ दिसंबर (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति प्रेम को कर्तव्य बताते हुए शुक्रवार को छात्रों से कहा कि भविष्य में वे चाहे जिस क्षेत्र में जाएं, लेकिन अपनी भारतीयता को बनाए रखें।
दून विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षांत समारोह में छात्रों को डिग्री और पदक प्रदान करने के बाद अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि मां दूसरों की दृष्टि में गरीब या दिखने में जैसी भी हो, वह मां होती है।
उन्होंने कहा कि दुनिया की भाषाएं सीखने में कोई बुराई नहीं, लेकिन अपने घर और समाज में अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करना चाहिए, वरना इसकी पहचान खो जाएगी।
मुर्मू ने कहा, “इसलिए मातृभाषा को बोलना और मातृभूमि के प्रति श्रद्धा रखना और उसे प्यार करना हमारा कर्तव्य है।
इसी से हमारी पहचान और अस्मिता है।”
उन्होंने कहा, “आप कल अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस या आईपीएस अधिकारी बनेंगे, लेकिन अपनी जमीन को कभी नहीं भूलना चाहिए।
आशा करूंगी कि आप आगे जाकर जो भी बनें, अपनी भारतीयता को बनाए रखेंगे।”
राष्ट्रपति ने कहा कि जब वह छोटी थीं, तब उन्हें पढ़ाया जाता था कि जिसे अपनी मातृभूमि, मातृभाषा और मां से ममता नहीं, वह अज्ञानी है।
उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि दून विश्वविद्यालय में पांच विदेशी भाषाओं-चीनी, जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश और जापानी के अलावा राज्य की तीन स्थानीय भाषाओं-गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी का भी अध्ययन कराया जाता है।
मुर्मू ने स्थानीय भाषाओं को संस्कृति की धरोहर बताते हुए कहा कि संस्कृति संवर्धन के इस प्रयास को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने छात्रों से कहा कि उपाधि और पदक प्राप्त करने के बाद उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
उन्होंने कहा, “आप किसी भी क्षेत्र में जाएं, लेकिन अपने कार्य को पूरी निष्ठा से करें, जिससे आपकी शिक्षा कारगर हो और आपके ज्ञान से समाज लाभान्वित हो।
तेजी से बदलते युग में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे भारत को आपकी प्रतिबद्धता और समर्पण की जरूरत है।”
शिक्षा को देश में बदलाव का सशक्त माध्यम बताते हुए मुर्मु ने शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की वकालत की, ताकि छात्र तकनीकी कौशल से और संपन्न हों और खुद के लिए काम की तलाश करने के बजाय दूसरों को रोजगार उपलब्ध कराएं।
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