उत्तराखंड के इन गांवों में नहीं होता बेटियों का जन्म, 3 महीने में जन्मे 216 बच्चे, लेकिन सभी बेटे

संक्षेप:

  • उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है.
  • यहां तीन माह में 133 गांवों में 216 प्रसव हुए, लेकिन बिटिया एक भी नहीं जन्मी.
  • सरकारी आंकड़ों में इस भयावह स्थिति का खुलासा होने पर हरकत में आए जिला प्रशासन ने इसकी पड़ताल शुरू कर दी है.

उत्तरकाशी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है. यहां तीन माह में 133 गांवों में 216 प्रसव हुए, लेकिन बिटिया एक भी नहीं जन्मी. बच्चियों के घटते लिंगानुपात की उत्तरकाशी जिले की ये तस्वीर ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ समेत तमाम अभियानों पर काली स्याही पोतती दिख रही है. सरकारी आंकड़ों में इस भयावह स्थिति का खुलासा होने पर हरकत में आए जिला प्रशासन ने इसकी पड़ताल शुरू कर दी है.

अधिकारी भी हैरत में

स्वास्थ्य विभाग सभी जिलों के हर गांव में होने वाले संस्थागत एवं घरेलू प्रसवों का ब्योरा तैयार करता है. बीते अप्रैल से जून के बीच उत्तरकाशी जिले के विभिन्न गांवों में हुए प्रसव की रिपोर्ट सामने आई तो जिम्मेदार अधिकारी भी हैरत में पड़ गए. रिपोर्ट के मुताबिक जिले के 133 गांवों में तीन माह के भीतर कुल 216 प्रसव हुए, लेकिन हैरत की बात यह है कि इनमें एक भी बिटिया ने जन्म नहीं लिया. सरकारी रिपोर्ट में ही बिगड़ते लिंगानुपात की यह स्थिति सामने आने से जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया है.

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संबंधित गांव रेड जोन में शामिल

बृहस्पतिवार को गंगोत्री विधायक गोपाल रावत और जिलाधिकारी डॉ.आशीष चौहान ने संबंधित गांवों की आशा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की. दोनों ने इस मामले को लेकर आशा कार्यकर्ताओं से बात की और ऐसा होने के कारणों की भी पड़ताल करने की कोशिश की. डीएम ने बताया कि सभी संबंधित गांवों को रेड जोन में शामिल किया गया है. उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की ओर से भेजी गई रिपोर्ट नियमित रूप से मदर चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम पोर्टल पर अपलोड करने के निर्देश दिए. वहीं, विधायक ने एएनएम एवं आशा कार्यकर्ताओं को आपसी समन्वय एवं जिम्मेदारी के साथ कार्य करने को कहा.

2011 में नहीं था ज्यादा अंतर

वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर उत्तरकाशी जिले में महिला एवं पुरुष लिंगानुपात में कोई ज्यादा अंतर नहीं था. यहां एक लाख 68 हजार 597 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की जनसंख्या एक लाख 61 हजार 489 थी. इसके बाद सरकार द्वारा ‘कन्या भ्रूण हत्या निषेध’ को लेकर चलाए गए जागरुकता अभियान और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान से लिंगानुपात में और सुधार आने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन जिले में बिगड़ते लिंगानुपात के जो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं उन्होंने ऐसे तमाम अभियानों को झुठला दिया है.

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