एक हार ने कैसे बदल दी सीएम योगी आदित्यनाथ की जिंदगी, पढ़िए पूरी कहानी

संक्षेप:

  • यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का जन्मदिन आज
  • 1972 को पौड़ी गढ़वाल के पंचूर गांव में हुआ था जन्म
  • गढ़वाल विश्वविद्यालय से हासिल की बीएससी की डिग्री

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का आज जन्मदिन है। उनका जन्म पांच जून 1972 को पौड़ी गढ़वाल के पंचूर गांव में हुआ था। उत्तराखंड के छोटे से कस्बे कोटद्वार में 1991 के छात्र संघ चुनाव में यदि योगी आदित्यनाथ को हार का सामना नहीं करना पड़ता, तो शायद वक्त उन्हें आज योगी की पहचान के साथ इस बुलंदी पर नहीं ले जा पाता।

कोटद्वार डिग्री कालेज में मिली इस छोटी सी हार ने उनके सामने भविष्य का सुनहरा रास्ता खोल दिया। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के लाल महंत योगी आदित्यनाथ देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड का कोई मुख्यमंत्री बना हो। गोविंद वल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा और एनडी तिवारी यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

सीएम योगी के पिता का नाम आनंद सिंह बिष्ट है। उनका खुद का वास्तविक नाम अजय सिंह बिष्ट है। गढ़वाल विश्वविद्यालय से उन्होंने बीएससी की डिग्री हासिल की। वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रखर कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहे। 22 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना परिवार त्याग दिया और गोरखपुर चले गए।

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बाद में गोरखपुर में महंत अवैद्यनाथ के समाधिस्थ होने पर वह गोरक्षपीठाधीश्वर बने। बारहवीं लोक सभा (1998-99) में मात्र 26 वर्ष की आयु में वह सबसे कम उम्र के सांसद बने। 1991 के छात्र संघ चुनाव में पराजय के बाद वे इस कदर आहत हो गए, कि उन्होंने अपने मामा महंत अवैद्यनाथ को पत्र लिखकर गोरखपुर बुलाने का अनुरोध किया। गोरखपुर पहुंचने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अजय बिष्ट से योगी आदित्यनाथ होकर आज यूपी के सीएम तक का सफर कर लिया।

यमकेश्वर ब्लाक के पंचुर गांव से कोटद्वार योगी बीएससी की पढ़ाई के लिए आए थे। शुरू में अंतर्मुखी स्वभाव के योगी इस कस्बे में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। इसलिए सरल सहज रास्ता छात्र संघ का चुनाव लगा। एबीवीपी से वे जुडे़ हुए थे, मगर टिकट उन्हें नहीं मिल पाया। एबीवीपी ने महासचिव पद पर दीप प्रकाश भट्ट को टिकट दिया, तो समर्थकों के कहने पर योगी बागी होकर चुनाव लड़ गए। इस चुनाव में योगी को बुरी तरह पराजय मिली और वे पांचवें नंबर पर रहे।

इस चुनाव में अरुण तिवारी को जीत हासिल हुई थी। इस हार ने जिंदगी में बड़ी जीत के उनके रास्ते खोल दिए। हालांकि इस बीच ऐसा वाक्या भी हुआ, जिसने उनके मन में उदासी को और ज्यादा भर दिया। गैरेज रोड पर उनके छोटे से किराये के कमरे में चोरों ने हाथ साफ कर दिया। पुलिस में रिपोर्ट लिखाने तक के लिए उन्हें मशक्कत करनी पड़ी। उस वक्त के उनके सहयोगी और वर्तमान में पाली लंगूर में प्रवक्ता पदमेश बुड़ाकोटी को योगी से जुड़ी कई सारी बातें याद हैं।

बकौल-बुड़ाकोटी, चुनाव में हार और घर में चोरी से निराश योगी ने महंत अवैद्यनाथ को चिट्ठी लिखकर अपने पास बुलाने के लिए कहा था। 1992 में वह गोरखपुर चले गए और फिर वहीं के होकर रह गए। कोटद्वार कॉलेज में योगी जितना भी समय रहे, बेहद सादगी से रहे। हालांकि आगे बढ़ने की एक ललक उनमें हमेशा दिखती रही। 1991 के कोटद्वार कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष रहे विनोद रावत के मुताबिक, योगी ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया। कठिन पारिवारिक परिस्थितियों से होकर वह गुजरे और अपना अलग मुकाम बनाया।

गोरखपुर में महंत अवैद्यनाथ के पास पहुंचने के बाद आदित्यनाथ ने बाकायदा दीक्षा ली। फिर अपने पिता को यमकेश्वर चिट्ठी भेजी, जिसमें सारी स्थितियों को सामने रखा। उन्होंने बताया कि उनके स्तर पर दीक्षा ले ली गई है और अब अजय बिष्ट मर गया है। योगी आदित्यनाथ का ही अब अस्तित्व है।

सीएम योगी आदित्यनाथ बचपन से ही बहुत गंभीर रहे हैं। वे अपने भाई बहनों को हमेशा पढ़ने के लिए कहते थे। यह बात उनकी बहन ने खुद बताई है। पौड़ी के कोठार गांव की रहने वाली शशि देवी एकदम साधारण जीवन व्यतीत कर रही हैं। योगी आदित्यनाथ की बहन शशि देवी तीर्थ नगरी ऋषिकेश में चाय की दुकान चलाती हैं। एक दुकान नीलकंठ मंदिर के पास है तो दूसरी भुवनेश्वरी मंदिर (पार्वती मंदिर) के पास है। इन दुकानों में चाय, पकौड़ी और प्रसाद मिलता है।

उनका कहना है कि वे अपने भाई से उत्तराखंड का भी भला चाहती हैं। वे कहती हैं कि उनका भाई उनके लिए कुछ या न करे, लेकिन पहाड़ की जनता के लिए कुछ अच्छा जरूर करें। शशि देवी बताती हैं कि वह अपने भाई को बहुत प्यार करती हैं लेकिन उसने मिलना नहीं हो पाता। जब उन्हें पता लगा कि उनका भाई योगी बन गया है तब से वह हर साधु में भाई को देखती हैं।

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