क्या लघु व्यापारियों के दर्द को और बढ़ाएगा 100% FDI?

संक्षेप:

  • केंद्र सरकार के फैसले से लघु उद्यमियों को होगी मुश्किलें
  • निवेशकों की कमी के कारण जूझ रहा उत्तराखंड में लघु उद्योग
  • सरकार इन मुश्किलों को हल करने में अभी तक असमर्थ

 

देहरादून: केंद्र सरकार द्वारा सिंगल ब्रांड रिटेल में 100% एफडीआई यानि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने के कदम ने देश में लघु उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है। जहां पहले ये दर 49% थी वहीं अब इसे बढ़ा दिया गया है। मूलभूत कारण है विदेश से और ज्यादा निवेश लाना। जिससे भारत में नौकरियों के साथ-साथ निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी सुधार हो सके। लेकिन वहीं लघु उद्योग में ये चिंता का विषय बन चुका है की आखिर 100% एफडीआई होने से बाज़ार में विदेशी कंपनियों का एकाधिकार हो जाएग, जिससे नये व्यवसायों को उभरने का मौका नहीं मिलेगा।

अगर हम हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम के व्यवसाय की बात करें तो पूरे भारत मे एक करोड़ तीस लाख लोग इस व्यवसाय से अपना घर चलाते हैं। उत्तराखंड जैसे राज्य में भी कई ऐसे लोग हैं (खास कर पहाड़ी इलाकों में) जो बुनाई, रिंगाल, लकड़ी का काम और धातु सबंधित काम करके अपनी आजीविका चलाते हैं। लेकिन सवाल ये उठता है की क्या विदेशी निवेश के बाद इन सभी लघु उद्योगों में सुधार की कोई गुंजाईश दिखाई पड़ती है?

ये भी पढ़े : 20 साल के कॉलेज छात्र ने बनाया रियल एस्टेट क्षेत्र में क्रांति लाने वाला पोर्टल


NYOOOZ ने जब इन सब बातों को लेकर लघु उद्यमियों से बात की तो पता चला की पहले से ही ये व्ययसाय अपने आप को बचाने की होड़ में लगे हुए है और अपने आप से ही इस व्यवसाय को जीवित रखने की कोशिश कर रहें हैं। आलम, जो इन्ही उद्यमियों में से एक हैं और अपना हिमालयन वीवर्स करके देहरादून में अपनी शॉल, स्कार्फ और स्टाल्स की दुकान चलाते हैं। NYOOOZ से बात करते हुए कहा कि पहले से ही इस व्यवसाय में काफी गिरावट है, बहरहाल स्वदेशी निवेश जुटाना ही एक बड़ा मुश्किल काम होता है तो विदेशी निवेश तो भूल ही जाइये।

वहीं तनुज पुंडीर जो हिमोथान में परियोजना सहयोगी के पद पर हैं और उत्तराखंड के रुद्रपुर और पिथौरागढ़ इलाके में बुनाई का काम चलाते हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक वह अपने उत्पादों के साथ बाज़ार में नहीं उतरे हैं। कुछ ही समय बाद वे भी अपने सामान को बाज़ार में लाएंगे। लेकिन  विदेशी कंपनियों की पैठ अगर बाज़ार में और बढ़ी तो उनके कपड़ों के व्यापार पर काफी असर पड़ेगा।

परन्तु हैंडलूम के मुकाबले में हैंडीक्राफ्ट और भी नीचे गिर चुका है। उदाहरण के तौर पर रिंगाल से बनी वस्तुएं, गांव के लोगों की जरूरत में शामिल हैं लेकिन बाजार में इसकी मांग न होने के कारण इस पर निवेश करना व्यर्थ है। कहीं न कहीं ये प्रदेश सरकार की विफलता है की वह एडवरटाइजिंग और मार्केटिंग में काफी पीछे छुट चुकी है। जिससे प्रदेश में इन व्यवसाय को बनाये रखने हेतु ये सारा भार इन अकेले उद्यमियों के कमज़ोर हो चुके कन्धों पर आ चुका है।

अब ये देखना होगा की क्या प्रदेश सरकार आने वाले समय में विदेशी निवेश से लाभ उठाकर इन लघु उद्योगों के लिए बाज़ार में जगह बना पायेगी या नहीं।      

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Dehradunकी अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।