कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के सामने रोने लगी महिला, कहा- मेरी बच्ची को चाहिए न्याय

संक्षेप:

  • कृषि मंत्री के जनता दर्शन कार्यक्रम में बेटी को लेकर पुहंची महिला
  • एक डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग लेकर पहुंची थीं महिला
  • महिला ने कहा- मेरी बच्ची को चाहिए न्याय

देहरादून: बीजेपी मुख्यालय में कृषि मंत्री सुबोध उनियाल का जनता दरबार फिर सुर्खियों में आया है। ताजा मामला एक दुखियारी मां का है, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित अपनी नौ माह की बच्ची को लेकर दरबार पहुंची थीं। महिला नामी डॉक्टर अर्चना लूथरा के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही थी लेकिन न्याय मिलने की उम्मीद न नज़र आने पर फरियादी महिला तीन घंटे तक वहीं धरने पर बैठी रही।

बीजेपी ऑफिस के बाहर रोती-बिलखती मां को देख सबका दिल भर आया। दरअसल, कौलागढ़ की सैनिक कॉलोनी निवासी कुमकुम अपनी नौ माह की बच्ची को लेकर मंत्री सुबोध उनियाल के पास पहुंची थी। आठवीं बार जनता दरबार पहुंची इस फरियादी महिला को देखते ही मंत्री ने तुरंत मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार को फोन मिलाया। फोन नहीं उठा तो महिला ने मंत्री से दो टूक कहा कि आपकी डबल इंजन की सरकार फेल है, मेरी बच्ची को आज ही न्याय चाहिए।

बताया जा रहा है कि करीब साढ़े तीन बजे जब मंत्री की रजिस्ट्रार से बात हुई और उन्होंने जांच रिपोर्ट काउंसिल को सौंपने की बात धरने पर बैठी महिला को बताई। इसके बाद पीड़ित महिला धरने से उठी। महिला का आरोप है कि उत्तराखंड मेडिकल एसोसिएशन ने जांच रिपोर्ट को बदलकर उसके साथ धोखा किया है। इसी मामले में न्याय की तलाश के लिए वह गुरुवार को कृषि मंत्री के जनता दरबार पहुंची थीं, लेकिन न्याय की कोई उम्मीद न दिखने पर महिला ने फैसला लिया है कि वो अब मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलकर बच्ची संग आगे की लड़ाई लड़ेंगी।

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आपको बता दें कि महिला ने अप्रैल 2017 में देहरादून की प्रसिद्ध डॉक्टर अर्चना लूथरा के क्लीनिक में ऑपरेशन के बाद एक बच्ची को जन्म दिया था। बच्ची के पैदा होने के बाद पता चला कि वो लाइलाज बीमारी डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। इसके लिए कुमकुम और उनके परिवार ने डॉ. लूथरा को जिम्मेदार बताते हुए उन पर सच्चाई छिपाने का आरोप लगाया है।

उनका कहना है कि डॉक्टर की लापरवाही सीएमओ लेवल की जांच में साबित भी हो चुकी है लेकिन अबतक भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके साथ ही उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल में भी जांच पूरी हो चुकी है लेकिन रजिस्ट्रार रिपोर्ट ओपन करने को तैयार नहीं है। पीड़ित मां का आरोप है कि हर तरफ से डॉक्टर को बचाने की कोशिश की जा रही है।

ख़ास बात यह है कि डाउन सिंड्रोम नामक इस बीमारी का गर्भावस्था में टेस्ट किया जाता है। कुमकुम के 15 हफ़्ते के गर्भ के दौरान डाउन सिंड्रोम का टेस्ट किया गया था जिसमें बच्चे के डाउन सिंड्रोम का हाई रिस्क बताया था। लेकिन गर्भावस्था के दौरान कुमकुम का इलाज कर रहीं डॉक्टर अर्चना लूथरा ने कुमकुम और उनके पति को लो रिस्क बताकर गर्भावस्था जारी रखने की सलाह दी।

क्या है डाउन सिंड्रोम?

डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक विकार है। इस बिमारी को ट्राइसोमी 21 भी कहते हैं। ये बीमारी मानसिक और शारीरिक लक्षणों का समूह है जो एक अतिरिक्त गुणसूत्र 21 की उपस्थिति के कारण होता है। गर्भस्थ होते समय शिशु अपने माता-पिता से 46 क्रोमोसोम प्राप्त करते हैं, 23 माता से और 23 पिता से। डाउन सिन्ड्रोम वाले बच्चे में 1 क्रोमोसोम ज्यादा होता है।

डाउन सिंड्रोम के कारण होने वाली परेशानी

  • इस सिंड्रोम के लोगों में पैदाइशी दिल की बीमारी हो सकती है।
  • इन्हें सुनने में समस्याएं होने के साथ ही आंतों, आंखों, थायरॉयड और अस्थि ढांचे की समस्याएं हो सकती हैं।
  • डाउन सिंड्रोम का इलाज नहीं किया जा सकता। हालांकि, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोग अच्छी तरह से वयस्क जीवन जीते हैं।
  • बौद्धिक स्‍तर में कमी।
  • इन बच्चों के चेहरे पर कुछ हद तक सपाटपन होता है। आंखों में ऊपर की तरफ तिरछापन, छोटे कान व जीभ काफी बड़ी होती है।
  • मांसपेशियां कमजोर होती हैं। इन बच्चों की मांसपेशियों में सामान्य बच्चों से कम ताकत होती है।
  • जन्म पर इन बच्चों का आकार एवं वजन दूसरे बच्चों की तरह ही सामान्य रहता है, लेकिन आगे चलकर इनकी ग्रोथ धीमी हो जाता है। कुछ हद तक इनकेबोलने की क्षमता भी धीमी होती है।
  • पाचन सम्बन्धी असामान्यताएं होती है।

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