आज से अलग केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, बदला 72 साल पुराना इतिहास

संक्षेप:

  • जम्मू-कश्मीर और लद्दाख रात को 12 बजे के बाद से यूनियन टेरिटरी बन गए. 
  • देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके को सरकार ने इस बदलाव के लिए चुना था.
  • बता दें कि 5 अगस्त को सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35A हटाने का फैसला लिया था. 

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के लिए आज 31 अक्टूबर की सुबह कुछ अलग है। बीते 72 सालों से अब तक एक ही राज्य का ही हिस्सा रहे दोनों क्षेत्र अब अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गए हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख रात को 12 बजे के बाद से यूनियन टेरिटरी बन गए। देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके को सरकार ने इस बदलाव के लिए चुना था। बता दें कि 5 अगस्त को सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 और 35A हटाने का फैसला लिया था। इसके अलावा राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के तौर पर दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन का ऐलान किया गया था। जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म होने के साथ ही सूबे में कई अहम बदलाव आज से लागू हो गए हैं। जम्मू-कश्मीर का अब कोई अलग झंडा और संविधान नहीं होगा। दोनों केंद्र शासित प्रदेशों के गठन के साथ ही देश में अब राज्यों की संख्या 28 रह गई है, जबकि केंद्र शासित प्रदेश 9 हो गए हैं।

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जीसी मुर्मू और लद्दाख में आरके माथुर को उपराज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया है। लद्दाख के उपराज्यपाल के तौर पर माथुर ने शपथ ले ली है। कुछ ही देर में मुर्मू भी एक अलग समारोह में शपथ लेंगे। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर ऐसे वक्त में केंद्र शासित प्रदेश बना है, जब वहां बाहरी लोगों पर आतंकी हमले की घटनाओं में अचानक इजाफा हुआ है।

इसलिए सरदार की जयंती पर अलग हुए लद्दाख और कश्मीर

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इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार ने 31 अक्टूबर यानी सरकार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को चुना। इस दिन को सरकार राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मना रही है। सरदार पटेल ने देश की आजादी के बाद 560 रियासतों के भारतीय संघ में विलय में अहम भूमिका अदा की थी।

जानें, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में क्या बदलेगा

आज से जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्रों के लिहाज से बहुत सी चीजें बदल जाएंगी। अब तक राज्य में 111 विधानसभा सीटें थीं, इनमें से 4 सीटें लद्दाख की थीं। अब इनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अब 107 सीटें होंगी, जिन्हें 114 तक करने का प्रस्ताव है। कुल 83 सीटों के लिए चुनाव होंगे, जबकि दो सीटें मनोनयन के जरिए भरी जाएंगी। 24 सीटें अब भी पीओके के लिए आरक्षित रहेंगी। 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन कर सीटों की संख्या बढ़ाई जाएगी। अब तक यहां विधानसभा और विधानपरिषद दोनों थे, लेकिन अब यहां सिर्फ विधानसभा का ही अस्तित्व होगा।

केंद्र शासित लद्दाख में नहीं होगी विधानसभा

जम्मू-कश्मीर से उलट लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं होगी। यहां कुछ हद तक चंडीगढ़ जैसी व्यवस्था लागू की गई है। यहां लोकसभा की एक सीट होगी, स्थानीय निकाय होंगे, लेकिन विधानसभा की व्यवस्था नहीं होगी। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल यहां व्यवस्था संभालेंगे और संवैधानिक मुखिया होंगे।

दिल्ली मॉडल पर होगी UT जम्मू-कश्मीर की सरकार

नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकार और स्थिति कमोबेश दिल्ली या फिर पुदुचेरी सरीखे होंगे। सीएम अपनी कैबिनेट में अधिकतम 9 मंत्रियों को शामिल कर सकेंगे। इसके अलावा सरकार के किसी भी प्रस्ताव को लागू करने के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी। अब विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का ही होगा। पहले एकीकृत राज्य में यह 6 साल का थी। उपराज्यपाल सीएम की ओर से भेजे किसी भी प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिए बाध्य नहीं होंगे।

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