बिना टेंडर नगर निगम ने गोविंदपुरम नाले की मरम्मत में खर्च कर दिए 35 लाख

संक्षेप:

  • बिना टेंडर नगर-निगम ने खर्च कर दिए 35 लाख रुपये
  • गोविंदपुरम नाले की मरम्मत में खर्च किए रुपये
  • टेडर को लेकर होता है हमेशा घोटाला

गाजियाबाद- देश सरकार ने भले ही सरकारी विभागों में निर्माण कार्यों के लिए ई-टेंडर प्रक्रिया अनिवार्य कर रखी हो, लेकिन नगर निगम में यह नियम नहीं चलते। नगर निगम ने कविनगर जोन के गोविंदपुरम में करीब दो किलोमीटर लंबे नाले की मरम्मत के लिए टेंडर जारी किए बिना ही करीब 35 लाख के काम कोटेशन के माध्यम से करा दिए। इसके लिए न तो निगम बोर्ड से सहमति ली गई और न ही पार्षदों को भनक लगी। अभी तक ठेकेदारों को वर्क ऑर्डर भी जारी नहीं किए गए हैं। ऐसे में एक बार फिर न केवल अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने लगे हैं।
नगर निगम महज 2 लाख तक के इमरजेंसी कार्य कोटेशन के आधार पर करा सकते हैं। अब बोर्ड से प्रस्ताव पास कराए बिना ही इसकी धनराशि बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गई है। इसी का फायदा उठाकर निर्माण विभाग के अधिकारियों ने करीब 2 किलोमीटर लंबे नाले की मरम्मत का काम भी कोटेशन पर करा दिया। निगम अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर मरम्मत के इस काम को टुकड़ों में बांट कर अलग-अलग ठेकेदारों को दे दिया, ताकि फाइल भी छोटी-छोटी बने और पकड़ में न आ सके। निगम पार्षदों का कहना है कि गोविंदपुरम के इस नाले की मरम्मत पर अब तक 5 ठेकेदारों को 5-5 लाख के 7 काम दिए जा चुके हैं। यानी 35 लाख का काम अब तक जारी किया जा चुका है। जबकि नियमों के मुताबिक इतनी रकम का काम कोटेशन पर कराया ही नहीं जा सकता है। इसके लिए ई-टेंडर जारी करना अनिवार्य था।

नगर निगम ने कोटेशन पर ठेकेदारों को काम तो दे दिया, लेकिन अभी तक उन्हें वर्क ऑर्डर भी जारी नहीं किया गया। निगम पार्षदों के मुताबिक दो फमों को मरम्मत के इस कार्य के दो टुकड़े और तीन फर्मों को एक-एक हिस्से का काम दिया गया है। पार्षदों और स्थानीय लोगों का कहना है कि नाले की मरम्मत की गुणवत्ता भी खराब है। नाले की दोनों ओर की दीवारों को ऊंचा कराया जा रहा है। इसमें पीली ईंटे लगाई जा रही हैं और दीवार पर सीमेंट का प्लास्टर भी नहीं किया जा रहा। कई स्थानों से नाले की दीवार बनते ही गिर चुकी हैं और कई स्थानों पर दरारें आ चुकी हैं।

कोटेशन पर काम कराने में सेटिंग का खेल चलता है। जिस ठेकेदार की अधिकारियों से सेटिंग अच्छी होगी, उसे उतना ही ज्यादा काम मिलेगा। इसमें निर्माण विभाग के अधिकारियों और नगर आयुक्त को अधिकार होता है कि वह जिसे चाहे उसे काम दे सकते हैं। यही नहीं इसमें कुछ पार्षद भी अपने चहेते ठेकेदारों को काम दिला देते हैं। इसकी एवज में ठेकेदार भी अधिकारियों और पार्षदों का पूरा ख्याल रखते हैं। पूर्व नगर आयुक्त अब्दुल समद के कार्यकाल में कोटेशन के इस खेल में मेरठ की एक फर्म को मोटा फायदा पहुंचाया गया था। इस फर्म के लिए एक से दो लाख की करीब 70 से ज्यादा फाइलें बना दी गई थीं। इस मुददे पर भाजपा पार्षदों ने विरोध भी किया था।

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