हर जुमे के बाद मेरा सिर काटने का फतवा जारी होता था, इसलिए सनातन धर्म अपना लिया- वसीम रिजवी

संक्षेप:

  • यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म किया स्वीकार।
  • बोले- परिवार में जो हिंदू धर्म नहीं अपनाएगा, मैं उनको त्याग दूंगा।
  • मेरे पिता के तीसरे पुत्र के रूप में जाने जाएंगे वसीम : यति नरसिंहानंद

गाजियाबाद- उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सोमवार को इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म स्वीकार करने के बाद कहा कि इस्लाम धर्म से मुझे निकालने के बाद हर जुमे के बाद मेरा सिर काटने का फतवा जारी किया जाता और इनाम बढ़ाया जाता है। इसलिए सनातन धर्म स्वीकार कर लिया। यह भी कहा कि उनके परिवार में जो हिंदू धर्म नहीं अपनाएगा, मैं उनको त्याग दूंगा।
वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण बनने के बाद उन्होंने कहा, किताब के विमोचन के बाद मुझे इस्लाम धर्म से निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद मेरी मर्जी थी कि मैं किस धर्म को अपनाऊं। मैंने सभी धर्मों को पढ़ा और जाना तो मुझे सबसे अच्छा हिंदू धर्म लगा। इसमें इंसानियत की रक्षा की बात कही जाती है।

मेरे पिता के तीसरे पुत्र के रूप में जाने जाएंगे वसीम : यति नरसिंहानंद
यति नरसिंहानंद ने कहा कि वसीम मानवतावादी और दिलेर व्यक्ति हैं। उन पर कोई आंच नहीं आने देंगे। सनातन धर्म स्वीकार करने के बाद उनके सामने जाति का सवाल न खड़ा हो इसलिए त्यागी समाज, अपने पिता और खानदान के सभी व्यक्तियों की सहमति से अपनी जाति का नाम दिया है। अब से वसीम रिजवी मेरे पिता के तीसरे पुत्र के रूप में जाने जाएंगे। उन्होंने कहा कि हिंदुओं को चाहिए कि वह तन, मन और धन से वसीम का साथ दें। 

इस्लाम से पहले ही खारिज हो चुके थे वसीम रिजवी : उलमा
शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी द्वारा मुस्लिम धर्म त्याग कर हिंदू धर्म अपनाने पर उलमा का कहना है कि रिजवी का धर्म परिवर्तन करना कुछ भी हैरान करने वाला नहीं है, क्योंकि वह पहले ही इस्लाम से खारिज हो चुके थे। इसके बाद वह आजाद थे, अब वह कोई भी धर्म अपनाएं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जमीयत दावतुल मुसलीमीन के संरक्षक व प्रसिद्ध आलिम-ए-दीन मौलाना कारी इस्हाक गोरा ने कहा कि मजहब-ए-इस्लाम में दीन के लिए कोई जोर जबरदस्ती नहीं है। हमारा मुल्क लोकतांत्रिक देश है यहां सबको अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का पूरा अधिकार है, लेकिन किसी के धर्म के बारे में आलोचना करने की किसी को इजाजत नहीं है। 

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