गोरखपुर: डॉ. कफील ने जेल में लिखा अपनी बेगुनाही का खत

संक्षेप:

  • जेल से डॉ. कफील ने लिखा खत
  • पत्नी शबिस्ता ने मीडियो को जारी किया खत
  • ‘प्रशासनिक नाकामी के लिए मुझे बलि का बकरा बनाया गया’

गोरखपुर: गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के मामले में जेल में बंद डॉ. कफील ने एक खत लिखा है। इस खत में उन्होंने लिखा है कि बड़े स्तर पर हुई प्रशासनिक नाकामी के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया गया। 18 अप्रैल को लिखा गया ये खत उनकी पत्नी शबिस्ता ने शनिवार को पूरी मीडिया को जारी किया। आपको बता दें कि 2 सितंबर 2017 से जेल में बंद डॉ. कफील ने कई गंभीर आरोप लगाने के साथ-साथ एक बार फिर से खुद को बेगुनाह बताया।

डॉ. कफील खान ने खत में लिखा है कि 10 अगस्त की उस भयानक रात जब व्हाट्सएप पर मुझे ऑक्सीजन खत्म होने की खबर मिली, तो फौरन मैंने वो सब किया जो एक डॉक्टर, पिता और देश के जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए। ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे बच्चों को बचाने की मैंने पूरी कोशिश की। मैंने सभी लोगों को फोन किया, मैंने खुद ऑक्सीजन का ऑर्डर किया। मुझसे जो कुछ हो सकता था, मैंने वो सब किया। मैंने एचओडी, बीआरडी के प्रिंसिपल, एक्टिंग प्रिंसिपल, गोरखपुर के डीएम सभी को कॉल किया। सभी को स्थिति की गंभीरता के बारे में बताया। मैंने अपने दोस्तों को भी फोन कर उनसे मदद ली।

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बच्चों की जान बचाने के लिए मैंने गैस सिलेंडर सप्लायर से मिन्नतें तक कीं। मैंने कुछ पैसों का इंतजाम कर कहा कि बाकी पैसा सिलेंडर मिल जाने के बाद पे कर दिया जाएगा। मैं बच्चों को बचाने के लिए एक वार्ड से दूसरे वार्ड भाग रहा था। पूरी कोशिश कर रहा था कि कहीं भी ऑक्सीजन सप्लाई की कमी न हो। आसपास के अस्पताल से सिलेंडर का इंतजाम करने के लिए मैं खुद गाड़ी चलाकर गया।

डॉ. कफील ने बताया कि मैंने एसएसबी के डीआईजी से बात की। उन्होंने काफी मदद की। उन्होंने सिलेंडर लाने के लिए न सिर्फ ट्रक मुहैया कराया, बल्कि कुछ सैनिक भी साथ में भेजे। इसके लिए उनका शुक्रिया। ऑक्सीजन की कमी दूर करने के साथ-साथ हम लोगों ने उस समय टीम के रूप में काम किया। 13 अगस्त की सुबह योगी महाराज अस्पताल आए थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप ही डॉ. कफील हैं जिन्होंने सिलेंडर का इंतजाम किया? मैंने हां कहां तो वे मुझ पर भड़क गए। उन्होंने कहा कि सिलेंडर का इंतजाम कर लेने से आपको लग रहा कि आप हीरो बन जाएंगे? मैं इसे देखता हूं। इस पूरी घटना के बारे में मीडिया को पता चल जाने से योगी जी गुस्से में थे। मैंने मीडिया को कुछ भी नहीं बताया था, बल्कि वे तो खुद पहुंच गए थे। 

इसके बाद से मेरे परिवार को तंग किया जाने लगा। पुलिस घर आने लगी। मुझे धमकी दी जाने लगी। मेरा परिवार इन सब बातों से बुरी तरह डर गया था। परिवार को बचाने के लिए मैंने सरेंडर किया। मुझे लगा कि जब मैंने कुछ गलत नहीं किया तो मुझे कैसा डर? मुझे लगा कि इंसाफ मिलेगा, लेकिन कई महीने बीत गए। मुझे लग रहा था कि मुझे बेल मिल जाएगी, लेकिन अब मुझे लग रहा कि न्यायपालिका दबाव में काम कर रही है। मेरे साथ-साथ मेरे परिवार की भी जिंदगी नर्क बन गई है। मेरी बेटी एक साल 7 महीने की हो गई है। मैं उसका जन्मदिन भी नहीं मना सका।

10 अगस्त को छुट्टी होने के बावजूद जैसे ही मैंने ये खबर सुनी, मैं भाग कर अस्पताल गया। मैं अस्पताल में सबसे जूनियर डॉक्टर था।  मैं तो NHRM में नोडल अफ़सर था। मैं पीडियाट्रिक्स के लेक्चरर के रूप में स्टूडेंट्स को पढ़ाता था। सिलेंडर खरीद, टेंडर, ऑर्डर और पेमेंट, इस पूरी प्रक्रिया में मैं कहीं भी शामिल नहीं था। ऐसे में पुष्पा सेल्स ने सिलेंडर देना बंद कर दिया तो मैं कैसे इसके लिए जिम्मेदार हो सकता हूं? डॉ कफील ने साफ शब्दों में कहा कि इसके लिए गोरखपुर के DM, DGME, हेल्थ और एजुकेशन के  प्रिंसिपल सेक्रेटरी दोषी हैं।

पुष्पा सेल्स के 68 लाख बकाया पेमेंट के लिए 14 रिमाइंडर के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया। यह बड़े स्तर पर प्रशासनिक नाकामी है। मुझे तो बलि का बकरा बनाया गया। जानबूझ कर हम लोगों को जेल में डाला गया, ताकि सच्चाई इसी जेल के अंदर ही रह जाए। डॉ कफील ने खत में उम्मीद जताई कि उन्हें भी बेल मिल जाएगी और वे अपनी बेटी और परिवार के साथ रह सकेंगे।

एक असहाय पिता, पति, भाई, पुत्र और दोस्त।

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