गोरखपुर - मैं सोलह बरस की, तू सत्रह बरस का...

संक्षेप:

  • नादान उम्र में प्रेमियों के साथ फरार हो जा रही युवतियां
  • बिना सोचे- समझे उठा ले रहीं बड़ा कदम, परिवार हो रहे परेशान
  • गोरखपुर में बीते 303 दिनों में घर से भागे 371 प्रेमी युगल

गोरखपुर - मैं सोलह बरस की, तू सत्रह बरस का... सन 1980 में आई फिल्म कर्ज का यह फेमस गाना आज लोगों के जहन से भले ही उतर गया हो, लेकिन आज के लड़के-लड़कियां इस गाने की बोल के रास्तों पर जरूर चलते नजर आ रहे हैं. यही वजह से है कि घरों में माता-पिता की लाख परवरिश के बाद भी गोरखपुर में रोजना एक या उससे अधिक प्रेमी अपनी प्रेमिका को लेकर फरार हो जा रहे है.

हालांकि नादानी में उठाए इस कदम के बाद तमाम मामलों में कुछ दिनों में या तो वह खुद ही अपने घर को लौट आ रहे हैं या फिर पुलिस उन्हें बरामद कर ले रही है. कुछ मामलों में यह कोर्ट में या फिर परिवार के सहयोग से शादी भी कर रहे रहे हैं. लेकिन हैरानी वाली बात तो यह है कि कम उम्र में लड़के-लड़कियों द्वारा उठाए जा रहे इस कदम का उन्हें जरा ही ख्याल नहीं है कि इससे उनके भविष्य पर क्या असर पड़ रहा है या फिर उनके परिवार की मान व प्रतिष्ठा पर इससे चोट पहुंच रही है.

303 दिन में 371 प्रेमी युगल फरार

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अगर आकड़ों पर गौर करें तो सिर्फ इसी साल 1 जनवरी से लेकर 31 अक्तूबर तक इन दस महीनों यानी कि 303 दिनों में सिर्फ गोरखपुर में 371 प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं को लेकर फरार हुए हैं. हालांकि यह वह आकड़े हैं कि जिनका पुलिस ने बकायदा थानों में मुकदमा दर्ज किया है. जबकि आम तौर पर ऐसे मामलों में अपने परिवार की प्रतिष्ठा और मान-सम्मान बचाने के लिए इनमें से अधिकांश लोग पुलिस के पास ही नहीं जाते. वहीं कई ऐसे मामलों में पुलिस सिर्फ गुमशुदगी दर्ज कर मामले की छानबीन करती है और कुछ ही दिनों में परिवार के लोगों पर दबाव बनाकर प्रेमी युगलों को बरामद भी कर लेती है.

घर से भागना बनता जा रहा ट्रेंड

कम उम्र में आज के लड़के-लड़कियां फिल्मों को देखकर प्यार तो कर लेते हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश इस बात को अपने परिवार के सामने रखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते. वहीं कई बार परिवार में बात रखने पर कभी लड़के का परिवार तो कभी लड़की के परिवार को लोग इससे सहमत नहीं होते. ऐसे में वह अपने उम्र के तकाजे की वजह से इसका कोई ठोस रास्ता तो निकाल नहीं पाते, बल्कि उनके लिए सबसे आसान काम होता है भागकर शादी कर लेना. लेकिन कई बार इस तरह की घटना को युवा अंजाम तो दे देते हैं, लेकिन बाद में इसका खामियाजा भी उन्हीं को भुगतना पड़ता है.

परिवार नहीं राजी तो होती है जेल

वहीं इस तरह के केस में सबसे बड़ा पेंच फंसता है भागने वालों की उम्र का. क्योंकि कानूनी तौर पर कोर्ट मैरेज शादी के लिए लड़के की उम्र 21 साल, जबकि लड़की की उम्र 18 साल होना अनिवार्य है. जबकि कई मामलों में पुलिस की बरामदगी के बाद लड़की के परिवार की ओर से दबाव बनने पर ऐसे लड़कों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. अपहरण सहित उनके खिलाफ रेप और पॉस्को जैसे मामलों में जेल की हवा भी खानी पड़ती है. वहीं लड़की को भी इससे समाज में पड़ी अपनी बुरी प्रतिष्ठा का सामना करना पड़ता है.

1 जनवरी से 31 अक्तूबर तक फरार हुए 697 प्रेमी युगल

गोरखपुर - 371

देवरिया - 129

कुशीनगर - 175

महराजगंज - 22

हाल की दिनों में गोरखपुर में हुई घटनाएं

23 सितंबर को कोतवली एरिया के साहबगंज का रहने वाला एक युवक इस्माइलपुर की रहने वाली युवती को लेकर हुआ था फरार. एक हफ्ते बाद पुलिस ने दोनों को किया था बरामद. हालांकि बाद में दोनों पक्षों ने कर लिया समझौता

19 अगस्त को शाहपुर एरिया के रामजानकीनगर की रहने वाली छात्रा स्कूल से हो गई थी गायब. घर वालों ने दी थी अपहरण की तहरीर. हालांकि दो दिनों के बाद युवती अपने प्रेमी के साथ हो गई थी बरामद.

2 अगस्त को चिलुवाताल एरिया के मोहरीपुर का रहने वाला युवक अपने ही पड़ोस की लड़की को लेकर हुआ था फरार. एक महीने बाद हुई थी बरामदगी.

18 मई को चिलुआताल एरिया के रोहुआ का एक युवक अपने ही गांव की एक युवती को लेकर हुआ था फरार. हालांकि पुलिस ने जब दोनों को पकड़ लिया तो दोनों ने पुलिस और कोर्ट के सामने साथ रहने की ही बात की. हालांकि दोनों के बालिक होने पर कोर्ट के आदेश पर शादी हुई.

 2 फरवरी को कोतवाली एरिया के मियां बाजार का रहने वाला अपने ही पड़ोसी की नाबालिग लड़की को लेकर हुआ था फरार. तीन दिनों बाद पुलिस ने किया था बरामद. परिवार ने कर लिया था समझौता.

डीआईजी निलाब्जा चौधरी ने कहा कि इस तरह के मामलों में बच्चों के अभिभावक और स्कूल को भी अवेयर रहने की जरूरत है. क्योंकि ऐसी उम्र में परिवार से कम्यूनिकेशन गैप की वजह से बच्चे ऐसा कदम उठा लेते हैं. हालांकि इससे बाद में परेशान दोनों पक्षों के परिवार के लोग होते हैं. पुलिस के पास जो भी मामले आ रहे हैं, उनमें केस दर्ज कर कार्रवाई की जा है.

साकोलाइजिस्ट डॉ धनंनजय कुमार ने बताया कि इस तरह का लिया जाने वाला निर्णय एक तरह का अपरिपक्वता है. इस उम्र में बच्चे सोच-समझकर कोई नहीं नहीं लेते, बल्कि इमोशनली फैसले लेते हैं. इसके लिए जरूरी होगा कि परिवार के लोगों को इसकी जानकारी होने पर वह उनके साथ कड़ाई से पेश न आए, बल्कि काउंसलिंग के जरिए उन्हें समझाने की कोशिश करें तो जरूर इसमें सुधार होगा.

 

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