सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस से 26 की मौत

संक्षेप:

  • 1 जनवरी से अब तक 298 इन्सेफेलाइटिस के केस
  • 22 दिनों में इंसेफेलाइटिस से 26 मौतें
  • शनिवार को 9 नए मरीज अस्पताल में भर्ती

गोरखपुर- पूर्वांचल के लिए मौत का सबब बन चुके इन्सेफेलाइटिस इस बार भी पूरे वेग में नौनिहालों को लील रही। अकेले जुलाई में 22 दिनों के भीतर 26 मासूम काल की गाल में समा चुके हैं।

उधर, सरकार से लेकर साहबान तक दिलासा दे रहे, दौरे करने में लगे हैं, इधर रोज़-ब-रोज किसी मां की गोद सूनी होती जा रही। वैसे तो इस बार बड़े-बड़े दावे हुए थे, जोरशोर से टीकाकरण अभियान के साथ जागरूकता पर पानी की तरह पैसे बहाए गये लेकिन हकीकत यह कि इन्सेफेलाइटिस की राजनीतिकरण ने मासूमों की मौतों को दस्तावेजी आंकड़ा बना दिया है।

शनिवार को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 24 घंटे में 4 मासूमों ने दम तोड़ दिया। तीन दिनों में 8 मौतों ने अकेले जुलाई महीने में मौतों के आंकड़े को 26 तक पहुंचा दिया है। जबकि कल 9 नए मरीज भर्ती हुए। वर्तमान में मेडिकल कॉलेज में 30 इन्सेफेलाइटिस पीड़ितों का इलाज चल रहा।

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बच्चों के प्रिय रहे चाचा नेहरू के नाम पर बने गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के नेहरू चिकित्सालय में 1 जनवरी से अबतक 298 इन्सेफेलाइटिस पीड़ित आ चुके हैं। इनमें 95 मौत के मुंह में जा चुके हैं जबकि 30 अभी जीवन-मौत के बीच में झूल रहा। जो मौत से बच गए वह विकलांगता का दंश झेलने को मजबूर हैं।

पूर्वांचल के जिलों यह बीमारी एक त्रासदी बन चुकी है। 1978 में इस बीमारी की पहली बार पहचान हुई। गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा में हर साल इस बीमारी के कारण सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है। मौतों का सिलसिला तो थम नहीं रहा अलबत्ता मौतों पर राजनीति करने वाले इस पर अपनी राजनीति की फसल खूब काट रहे। बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भी मुद्दा बनाकर इस क्षेत्र में वोट की फसल ठीक से काटी थी। इन्सेफेलाइटिस सीजन शुरू हो चुका है और मौतों का ग्राफ पिछले साल से आगे निकलता दिख रहा।

वर्ष 2017 में इंसेफेलाइटिस से हुई मौतों का मृत्यु दर 31.49 फीसदी है। यह पिछले साल से करीब सवा चार फीसदी अधिक है। 2016 में मृत्युदर 26.16 थी। वर्ष 2008 में मृत्युदर 20.88, 2009 में 19.71, 2010 में 15.56, 2011 में 18.95, 2012 में 20.94, 2013 में 29.34, 2014 में 27.90, 2015 में 25.11 फीसदी थी।

हर साल सैकड़ों बच्चों की जान लेने वाले इंसेफेलाइटिस की प्रभावी रोकथाम के लिये पूर्वी इलाकों के 38 जिलों में 25 मई से एक टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुशीनगर से इसकी शुरुआत की थी। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने उस वक़्त बताया था कि जापानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिये वर्ष 2006 से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ था लेकिन यह पाया गया है कि करीब 40 प्रतिशत बच्चे नौ से 12 माह पर तथा 16 से 24 माह की आयु पर दी जाने वाली खुराक से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा था कि 70 के दशक में शुरू हुए इंसेफेलाइटिस रोग के मुद्दे को 1998 में पहली बार संसद में उठाने वाले योगी आदित्यनाथ अब राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसके समूल उन्मूलन के लिये प्रतिबद्ध हैं और इसी के तहत 25 मई से 11 जून तक 38 प्रभावित जिलों में वृहद टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा। बता दें कि मुहिम के तहत 88 लाख 57 हजार 125 बच्चों को टीके लगाये जाने का लक्ष्य था। इसके लिए एक करोड़ वैक्सीन भी मंगाया गया था।

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही प्रशासनिक अमला इन्सेफेलाइटिस से जंग के लिए जागरूकता अभियान पर खूब जोर दिया। गोरखपुर मण्डल में कमिश्नर ने स्वयं कमान संभाली। कमिश्नर ने दावा किया कि मंडल में 13 हज़ार रैलियां निकाली गई। उन्होंने दावा किया कि प्रशासन हर संभव मेडिकल सुविधा उपलब्ध करा रहा। आशा, आंगनबाड़ी आदि को प्रशिक्षित किया गया है। वह इन्सेफेलाइटिस के बारे गांव गांव बताकर लोगों को सावधानी बरतने के लिए सिखाएंगे। किसी भी अप्रिय स्थिति में तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर संपर्क करे। सरकार की एम्बुलेंस सुविधा बिलकुल निशुल्क है।

 

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