Lok Sabha Election 2019: बेगूसराय में कौन ताकतवर? कन्हैया या गिरिराज! ये तय करेंगे 5 लाख भूमिहार वोटर

संक्षेप:

  • बेगूसराय(Begusarai) से बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह(Giriraj Singh) के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं
  • क्या कन्हैया कुमार से होगा बीजेपी को नुकसान
  • 2014 में बीजेपी से भोला सिंह(अब दिवंगत) ने जीता था चुनाव


बेगूसराय: सीपीआई ने बिहार की बेगूसराय(Begusarai) लोकसभा सीट से कन्हैया कुमार(Kanhaiya Kumar) की उम्मीदवारी तय कर दी है. वह वाम मोर्चे के संयुक्त उम्मीदवार होंगे. ऐसे में अब बेगूसराय(Begusarai) से बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह(Giriraj Singh) के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. 5 लाख भूमिहार मतदाताओं वाली इस लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने से जो संकोच गिरिराज सिंह(Giriraj Singh) दिखा रहे थे, वो कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) की वजह से ही था. इस सब के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वाम मोर्चे(Left Front)में इतनी ताकत है कि वो बेगूसराय(Begusarai) में बीजेपी की जीत का रथ रोक सके?

बीते चुनाव पर नजर डालें तो मोदी लहर के बावजूद बेगूसराय से आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन 60 हजार वोटों से हारे थे. उस दौरान सीपीआई के उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1 लाख 92 हजार 639 वोट मिले थे. जबकि आरजेडी को 3 लाख 69 हजार 892 वोट और बीजेपी के विजेता उम्मीदवार भोला सिंह (अब दिवंगत) को 4 लाख 28 हजार 227 वोट हासिल हुए थे. ऐसे में आरजेडी इस सीट की कुर्बानी देने को तैयार नहीं हुई.

कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar)से होगा बीजेपी को नुकसान?

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महागठबंधन की ओर से कन्हैया कुमार(Kanhaiya Kumar) को स्वीकार ना करने की वजहें और भी हैं. एक वजह बीते चुनाव नतीजे में दिखती है जब सीपीआई के भूमिहार उम्मीदवार और बीजेपी के भूमिहार उम्मीदवार की मौजूदगी में आरजेडी जीत से दूर रह गई थी. इस बार भी समीकरण वही हैं, मगर परिस्थिति थोड़ी अलग है.

पहले की तरह बीजेपी और सीपीआई दोनों के उम्मीदवार भूमिहार तो हैं. मगर, यह पूछा जाए कि गिरिराज सिंह और कन्हैया कुमार में भूमिहार वोट किसे ज्यादा मिलेंगे, तो सवाल का जवाब कन्हैया कुमार होंगे. इसकी एक वजह यह है कि भोला सिंह की जो पैठ अपनी जाति समुदाय में थी, वह गिरिराज सिंह की नहीं है. दूसरी वजह यह है कि सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद की जो पैठ इस समुदाय में रही है, उससे ज्यादा आकर्षण कन्हैया कुमार के लिए होगा. इस तरह कन्हैया कुमार(Kanhaiya Kumar ) के चुनावी मैदान में होने से नुकसान बीजेपी को होगा, महागठबंधन को नहीं. कम से कम आरजेडी नेतृत्व की यही सोच रही है.

चमत्कार हुआ तभी जीतेंगे कन्हैया!

एक बात और जो साफ तौर पर कही जा सकती है, वो यह कि महागठबंधन उम्मीदवार के रहते कोई चमत्कार ही कन्हैया कुमार को विजेता बना सकता है. हालांकि चमत्कार करने की क्षमता कन्हैया कुमार में है. वे सवर्णों के बीच भी पैठ रखते हैं, पिछड़ों और मुसलमानों के बीच भी उतने ही लोकप्रिय हैं. मगर यह लोकप्रियता वोटों में तब्दील हो पाएगी, यह दावे से नहीं कहा जा सकता. अगर ऐसा होता तो मुकाबला एकतरफा हो जाता. महागठबंधन ने कन्हैया कुमार को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है. दरअसल इसके पीछे कन्हैया कुमार की वह छवि है, जिसकी वजह से महागठबंधन को चमत्कार होने का भरोसा नहीं था. इसके उलट राज्य की बाकी सीटों पर महागठबंधन को नुकसान का अंदेशा था.

महागठबंधन ने क्यों बनाई कन्हैया से दूरी?

2019 का लोकसभा चुनाव पुलवामा और बालाकोट, देशभक्ति और `पाकिस्तानपरस्ती`, सर्जिकल स्ट्राइक और `फर्जिकल स्ट्राइक` जैसे मुद्दों पर लड़ा जा रहा है. खासकर जहां गिरिराज सिंह जैसे नेता उम्मीदवार होंगे, ये मुद्दे सर चढ़कर बोलते दिखेंगे. ऐसे में कन्हैया कुमार के ऊपर चल रहा देशद्रोह का मामला मुद्दा नहीं बनेगा, ऐसा सोचा नहीं जा सकता. यह लड़ाई अदालत में तो जीती जा सकती है लेकिन जनता की अदालत में सबूत नहीं परसेप्शन की भूमिका ज्यादा होती है.

वामदलों की नाराजगी झेल लेगा महागठबंधन

निश्चित रूप से वामदलों का साथ महागठबंधन को छोड़ना पड़ा है. कांग्रेस ने भी यही दूरी वाम दलों के साथ बनाए रखी है. सच यह है कि कन्हैया के कारण वाम दल रहित महागठबंधन की सोच के पीछे तेजस्वी से ज्यादा कांग्रेस की सोच रही है. कांग्रेस को देशव्यापी स्तर पर इसका नुकसान होता.
वामदलों से दूर रहकर चुनाव लड़ने से होने वाले नुकसान की तुलना में यह नुकसान बहुत ज्यादा होता. कन्हैया कुमार को अकेले चुनाव लड़ने के लिए छोड़ देने के पीछे महागठबंधन की यही सोच रही है

बेगूसराय में एक विधानसभा सीट भी बीजेपी के पास नहीं

बेगूसराय लोकसभा सीट पर 7 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से एक भी सीट बीजेपी के पास नहीं है. जेडीयू और कांग्रेस के पास 2-2 और आरजेडी के पास 3 विधानसभा की सीटें हैं. यह चुनाव परिणाम तब का है, जब महागठबंधन में आरजेडी, जेडीयू और वाम दल सभी थे. हालांकि 2019 में समीकरण बदल चुका है. इसलिए नतीजे भी अलग तरीके से सामने आएंगे.

हर दसवें साल जीतता है गैर-भूमिहार उम्मीदवार

बछवाड़ा और साहेबपुर कमाल विधानसभा सीटों पर यादवों का प्रभाव है, जबकि बखरी और चेरिया बरियारपुर में अति पिछड़ा वर्ग की भूमिका ज्यादा है. इसी तरह से बेगूसराय, मटिहानी और तेघड़ा विधानसभा क्षेत्रों में भूमिहारों की पैठ मजबूत है. महागठबंधन, एनडीए और वामदलों के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष में जातीय, सैद्धांतिक, स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर लामबंदी नए सिरे से होगी. कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों के लिए चुनावी जीत की गारंटी देना मुश्किल है. ऐसे में बेगूसराय सीट पर 1999, 2009 के बाद क्या 2019 में भी गैर-भूमिहार की जीत होगी? इसे महज सवाल ना समझकर संभावना माना जाना चाहिए.

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