गोरखपुर उपचुनावः इस बार ‘नाथ पंथ’ से कोई प्रत्याशी नहीं

संक्षेप:

  • बीजेपी ने इस बार नाथ पंथ से नहीं उतारा प्रत्याशी
  • उपेंद्र दत्त शुक्ल ने बीजेपी की तरफ से किया नामांकन
  • सीएम योगी के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई है यह सीट

गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में उपेंद्र दत्त शुक्ल के बाजेपी की करफ से नामांकन के साथ ही 29 साल से गोरखपुर संसदीय सीट पर `नाथ पंथ` की प्रत्याशिता देख रहे, लोगों के सामने नाथपंथ से आलावा प्रत्याशी का नाम सामने आ गया। हालांकि यह अप्रत्याशित नहीं था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सांसद पद से इस्तीफा देने के बाद से ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे।

हालांकि इस बार नाथ पंथ का कोई संत चुनाव मैदान में नहीं है लेकिन बीजेपी प्रत्याशी उपेंद्र शुक्ल गोरक्षपीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छत्रछाया में ही चुनाव लड़ेंगे। 1989 से अवैद्यनाथ के सांसद बनने के बाद से यह सिलसिला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफा देने के बाद थमा है। 1989 में ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा से गोरखपुर के सांसद चुने गए थे। 1991 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए। अगला संसदीय चुनाव भी महंत अवैद्यनाथ ने जीता और 1998 तक सांसद रहे।

1998 में योगी आदित्यनाथ ने संसदीय सीट की कमान संभाली और सबसे कम उम्र के सांसद चुने गए। फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा और उन्होंने पांच बार न केवल जीत हासिल की बल्कि रिकार्ड मतों से जीतते रहे। जब योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने तो उन्हें सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा और उसके बाद से ही इस सीट पर नए भाजपा प्रत्याशी की तलाश शुरू और बीजेपी की तलाश उपेंद्र दत्त शुक्ल के रुप में खत्म हुई।

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महंत दिग्विजयनाथ बने थे पहले सांसद

गोरक्ष पीठ से सांसद बनने की शुरुआत महंत दिग्विजयनाथ से हुई थी। उन्होंने यह जीत 1967 में बतौर निर्दल प्रत्याशी हासिल की थी। महंत दिग्विजयनाथ 1970 तक सांसद रहे, इसी क्रम में महंत अवैद्यनाथ सांसद बने। उसके बाद यह सीट कांग्रेस और भारतीय लोकदल के हिस्से आ गई। 1989 में एक बार फिर महंत अवैद्यनाथ ने संसदीय चुनाव जीता और बाद में इसी सिलसिले को 2017 तक योगी आदित्यनाथ ने बढ़ाया।

मंदिर’ की होती है निर्णायक भूमिका

गोरखपुर में नगर निगम का चुनाव हो, विधायक या सांसद का चुनाव हो गोरखनाथ मंदिर की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। यह इस बार भी होगा लेकिन इस बार `मंदिर` सीधे मैदान में नहीं है और माना जा रहा है कि यह चुनाव `मंदिर` का नहीं बल्कि भाजपा का है। 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले हमेशा भाजपा बनाम योगी होता था लेकिन योगी आदित्‍यनाथ के सीएम बनने के बाद स्थितियां बदल गई हैं।

संगठन अब `मंदिर` को साथ तो रखना चाहता है लेकिन अपनी पहचान पुन: कायम करने की तैयारी भी कर रहा है। योगी के सीएम बनने के बाद हिन्‍दू युवा वाहिनी की गतिविधियों का  न के बराबर होना इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा। फिलहाल इस लोकसभा के उप चुनाव में शायद मंदिर का वर्स्चव टूटेगा और बीजेपी का प्रत्याशी का कब्जा हो सकता है ।

 

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